Myanmar में तख्‍तापलट करने वाले जनरल Hlaing पर टिकीं सबकी निगाहें, दुनिया की अपील को किया दरकिनार

जनरल मिन आंग लाइंग (Min Aung Hlaing) ने 2011 में सेना की कमान संभाली, उसी समय म्‍यांमार लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ रहा था. जनरल लाइंग कम बोलते हैं और अपने क्रूर फैसलों के लिए पहचाने जाते हैं.  माना जा रहा है कि वह राष्ट्रपति चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं.

नेपीता: म्यांमार (Myanmar) सैन्‍य तख्‍तापलट के बाद अब सबकी नजरें जनरल मिन आंग लाइंग (Min Aung Hlaing) पर टिक गई हैं. सोमवार की सैन्य कार्रवाई के बाद मिंट स्वे को राष्ट्रपति नामित किया गया और इसके तुरंत बाद उन्होंने देश के शीर्ष सैन्य कमांडर सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग को सत्ता की कमान सौंप दी. अमेरिका सहित दुनियाभर के तमाम देश सैन्य प्रशासन से गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की अपील कर चुके हैं, लेकिन अब तक इस अपील का कोई असर होता नजर नहीं आया है.

कानून की पढ़ाई की है 

मिन आंग लाइंग (Min Aung Hlaing) को क्रूर जनरल माना जाता है. वह सेना की कई हिंसक कार्रवाईयों का हिस्सा रह चुके हैं. लाइंग उस वक्त सेना से जुड़े, जब म्यांमार (Myanmar) लोकतंत्र की ओर अग्रसर था. लाइंग ने खुद को एक राजनेता और सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में परिवर्तित किया. उन्होंने 1972-1974 में यंगून विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की थी.

Average Cadet थे जनरल

जनरल मिन आंग लाइंग कम बोलते हैं और अपने क्रूर फैसलों के लिए पहचाने जाते हैं. कॉलेज के दिनों में जब उनके साथी विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे थे, उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला लिया. अपने तीसरे प्रयास में 1974 में उन्हें सफलता मिली और वह एकदम से नई भूमिका में आ गए. उनके साथियों का कहना है कि डिफेंस सर्विस एकेडमी में लाइंग एक एवरेज कैडेट थे.

खूब किया था प्रचार

जनरल मिन ने 2011 से सेना की कमान संभाली, उसी समय म्‍यांमार लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ रहा था. यंगून में मौजूद राजनयिकों का कहना है कि आंग सांग सू की के पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों के दौरान वर्ष 2016 में जनरल मिन ने खुद को सैनिक से एक राजनेता और सार्वजनिक व्‍यक्ति के रूप में बदल लिया.  सोशल मीडिया के जरिए अपनी गतिविधियों का प्रचार प्रसार करना इसी प्रयास का हिस्‍सा है. बता दें कि फेसबुक पर उनके प्रोफाइल को बंद किए जाने से पहले 2017 तक लाखों लोगों ने उनके प्रोफाइल को फॉलो किया था.

चलाया था खूनी Operation

म्‍यांमार की सेना ने अगस्‍त 2017 में रखाइन प्रांत में अभियान चलाकर कई रोहिंग्‍या मुसलमानों को मौत के घाट उतारा था. इस वजह से 5 लाख मुस्लिमों को देश छोड़कर पड़ोसी बांग्‍लादेश और अन्‍य देशों में भागना पड़ा था. मानवाधिकार संगठनों ने कहा था कि सेना ने रोहिंग्‍या मुस्लिमों को उनके घरों में बंद करके आग लगा दी थी. इतना ही नहीं, जनरल मिन के नेतृत्‍व वाली सेना पर मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के साथ गैंगरेप और यौन हिंसा का आरोप भी लगा था.

President बनने का सपना

जनरल मिन रिटायरमेंट की कगार पर हैं और जानकार मानते हैं कि वह राष्‍ट्रपति चुनाव में ताल ठोक सकते हैं. दरअसल, म्‍यांमार के 2008 में बने संविधान के तहत, आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति सैन्य कमांडर को सत्ता की कमान सौंप सकता है. वहीं, सेना ने यह कहकर तख्तापलट को सही ठहराया है कि सरकार चुनाव में धोखाधड़ी के उसके दावों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है.

25% सीटें सेना के नाम

आंग सांग सू-की की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी, जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था. लेकिन 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गई हैं जो संवैधानिक बदलावों को रोकने के लिए काफी है. कई अहम मंत्री पदों को भी सैन्य नियुक्तियों के लिए सुरक्षित रखा गया है. कहा जाता है कि सू-की को राष्ट्रपति बनने से रोकने में जनरल मिन ने अहम भूमिका निभाई थी. सू-की के पति विदेशी नागरिक हैं और इसी वजह से वह राष्‍ट्रपति नहीं बन पाईं.

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