UP के डिप्टी सीएम की डिग्री पर सवाल:केशव प्रसाद मौर्य की डिग्री के खिलाफ कोर्ट में याचिका, फर्जी डिग्री लगाकर चुनाव लड़ने और पेट्रोल पंप हासिल करने का आरोप
चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की डिग्री पर एक बार फिर से सवाल खड़े हुए हैं। आरोप है कि केशव प्रसाद ने फर्जी डिग्री लगाकर चुनाव लड़ा और पेट्रोल पंप हासिल किया। केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ कोर्ट में इस आशय की अर्जी दाखिल कर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की गई है। प्रार्थना पत्र स्थानीय मजिस्ट्रेट की अदालत में प्रस्तुत किया गया है, जिस पर कोर्ट ने संबंधित थाने से रिपोर्ट तलब की है। मामले की सुनवाई 27 जुलाई को होगी।
इस गंभीर मामले की सुनवाई कर रहीं एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नम्रता सिंह ने कैंट के थाना प्रभारी को आदेश दिया है कि इन आरोपों की जांच कर रिपोर्ट पेश करें। यह भी पूछा है कि क्या इस संबंध में उनके थाने में केशव मौर्य के खिलाफ कोई मामला दर्ज है या नहीं। कोर्ट ने ऑफिस को भी निर्देशित किया है कि यह प्रार्थना पत्र- 27 जुलाई को सुनवाई के लिए नियत समय पर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें।
RTI एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने दायर की है कोर्ट में अर्जी
करबला में रहने वाले RTI एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने यह प्रार्थना पत्र दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के अंतर्गत दिया है। अदालत से मांग की है कि इस प्रकरण में कैंट थाना के प्रभारी को आदेशित किया जाए कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर विधि अनुसार विवेचना करें।
फर्जी है हिंदी साहित्य सम्मेलन की डिग्री
साल 2007 में शहर के पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से केशव प्रसाद मौर्य ने विधानसभा का चुनाव लड़ा। इसके बाद कई बार चुनाव लड़े। उन्होंने अपने शैक्षणिक प्रमाण पत्र में हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वारा जारी प्रथम, द्वितीया आदि की डिग्री लगाई है, जोकि प्रदेश सरकार या किसी बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। इन्हीं डिग्रियों के आधार पर उन्होंने इंडियन ऑयल कारपोरेशन से पेट्रोल पंप भी प्राप्त किया है।
शैक्षिक प्रमाण पत्र में अंकित है अलग-अलग साल
अर्जी में यह भी आरोप लगाया गया है कि शैक्षणिक प्रमाण पत्र में अलग-अलग वर्ष अंकित है। इनकी मान्यता नहीं है। दिवाकर ने बताया कि उन्होंने स्थानीय थाना, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से लेकर उत्तर प्रदेश, सरकार भारत सरकार के विभिन्न अधिकारियों मंत्रालयों को प्रार्थना पत्र दिया पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मजबूर होकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।