बाढ़ के बाद मिली सिर्फ आफत…:बाढ़ के सताए लोग नेशनल हाइवे पर तंबू गाड़कर गुजार रहे जिंदगी, प्रशासन से एक बार मिला था राशन, हाइवे से गुजरते वाहनों से पल-पल रहती है दहशत

  • बाढ़ के बाद राहत कैंप की सच्चाई

ग्वालियर में डबरा-भितरवार के बाढ़ प्रभावित इलाकों में अभी भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। इंफ्रा स्ट्रक्चर तो दूर की बात राहत सामग्री तक समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रही है। डबरा के चांदपुर गांव के लोग नेशनल हाइवे-44 के किनारे तंबू गाड़ कर किसी तरह जिंदगी को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं।

हाइवे पर गुजरते तेज रफ्तार वाहनों से दिन-रात दहशत बनी हुई है। जब इनसे पूछा गया कि प्रशासन से राहत सामग्री मिली है तो कुछ का कहना है कि सिर्फ एक बार आटा मिला था, अभी तो यह कुछ समाजसेवियों के रहम और करम पर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।

हाइवे पर तंबू गाड़ कर रहे रहे चांदपुर गांव के लोगों की तस्वीर अपने आप में शासन के वादे और तत्काल राहत पहुंचाने के दावों की पोल भी खोल रही है। प्रशासन भी अभी तक उनके पास सर्वे के लिए नहीं पहुंचा है। गांव के लोगों का कहना है कि जब अभी तक हमारा सर्वे ही नहीं हुआ है तो राहत कब मिलेगी।

हाइवे किनारे बैठे बच्चे, तेज रफ्तार वाहन गुजरते हैं तो दहशत फैल जाती है, लक्ष्मीदेवी खाना बनाते हुए
हाइवे किनारे बैठे बच्चे, तेज रफ्तार वाहन गुजरते हैं तो दहशत फैल जाती है, लक्ष्मीदेवी खाना बनाते हुए

ग्वालियर-चंबल अंचल में आई बाढ़ को 14 दिन बीत गए हैं, लेकिन बाढ़ पीड़ितों की जिंदगी पटरी पर आते हुए नहीं दिख रही है। बात डबरा के चांदपुर गांव की ही कर लेते हैं। 1-2 अगस्त की दरमियानी रात यहां सिंध, पार्वती और नोन नदी में उफान आने पर पूरा गांव टापू बन गया गया था। करीब 580 मकान पानी में डूब गए थे। 260 कच्चे और पक्के मकान जमीन में मिल गए थे। अब बाढ़ का पानी उतर गया है और स्थितियां सामान्य होनी लगी हैं, लेकिन शासन की राहत के इंतजार में लोगों की आंखे पथरा गई हैं। जिनके मकान पूरी तरह टूट चुके हैं ऐसे करीब 1 हजार लोग हैं। इनके लिए शासन राहत कैंप बनाने का दावा कर रहा है, लेकिन जिनके आशियाने उजड़ गए हैं उनके लिए संकट खत्म नहीं हुआ है। वह हाइवे पर तंबू लगाकर रहने को विवश हैं।

हाइवे को बनाया घर गाड़ लिए तंबू

  • गांव के कई लोगों ने ग्वालियर-झांसी रोड (नेशनल हाइवे-44) को ही अपना घर समझ लिया है। हाइवे किनारे फटी पुरानी तिरपाल से अपने लिए तंबू गाड़ लिए हैं। प्रशासन से इनको तंबू बनाने के लिए तिरपाल तक नसीब नहीं हुई है। इसी तंबू के किनारे लोग चूल्हा बनाकर खाना बना रहे हैं बंजारों की तरह जीवन जी रहे हैं। राशन के नाम पर भी इनके साथ धोखा हुआ है। इनको अभी तक प्रशासन से एक 10 किलो आटा के अलावा कोई राहत नहीं मिली है। कुछ समाजसेवी इनको आटा, चावल और तेल दे गए थे। जिसके भरोसे यह जिंदगी को आगे बढ़ाने में लगे हैं।

हाइवे से गुजरते वाहनों से रहती है दहशत

  • हाइवे किनारे रहने वाली चांदपुर गांव की लक्ष्मी देवी कहती हैं कि हाइवे किनारे ही तंबू गाड़ने की जगह मिली है। गांव में घर बह गए हैं। जो जगह बची थी वहां कीचड़ भरा है। जिनमें कुछ घर खंडहर बन गए हैं उनमें अब सांप निकल रहे हैं। इसलिए मजबूरी है हाइवे पर तंबू लगाना पड़ा है। पर यहां हाइवे किनारे से निकलने वाले तेज रफ्तार वाहनों से हमेशा दहशत बनी रहती है। पल-पल का खतरा है, लेकिन क्या करें मजबूरी है।

14 दिन में भी नहीं हो पाया सर्वे, पशुओं के शव मांग रही टीम

  • बाढ़ आए 14 दिन हो गए हैं। इसके बाद भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जो घोषणाएं करके गए थे उनमें से एक भी पूरी नहीं हुई है। 14 दिन में प्रशासन सर्वे नहीं करा सका है। कुछ गांव के लोगों का कहना है कि एक सर्वे की टीम आई थी तो वह पानी में बहे पशुओं के शव मांग रही थी। अब यह कैसे संभव है। इस बात को हाल ही में चांदपुर गांव के दौरे पर आए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी उठाया था। उन्होंने कहा था कि सर्वे करने वाले मरे हुए जानवरों के शव मांग रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों के साथ मजाक किया जा रहा है

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