प्रमोशन में आरक्षण का मामला:15 साल में फैसले लागू नहीं किए, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अब और सुनवाई नहीं; हाईकोर्ट के 11 आदेशों को भी चैलेंज करती रहीं सरकारें

मध्यप्रदेश में सरकारी पदों के प्रमोशन पर आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट 10 अक्टूबर को फैसला देने जा रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में 14 सितंबर को सुनवाई हुई। मध्यप्रदेश सहित सभी राज्यों और केंद्र सरकार का पक्ष सुनने के बाद शीर्ष अदालत को कहना पड़ा कि इस मामले में अब आगे सुनवाई नहीं होगी।

इसकी वजह यह है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही फैसला दे चुका है, लेकिन राज्यों ने इसे लागू नहीं किया, बल्कि उच्च न्यायालय के 11 आदेशों के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर कर दी गईं। इसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है।

सिलसिलेवार पढ़िए क्या है पूरा मामला…

संविधान के इस अनुच्छेद को समझना जरूरी
पहले समझिए कि अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-A) क्या कहते हैं – भारत के संविधान का अनुच्छेद 16 अवसरों की समानता की बात करता है। अगर सरकार के पास कोई नौकरी है, तो उस पर सभी का बराबर हक है। जिसके पास योग्यता है, उसे नौकरी दे दी जाएगी। संविधान का ही अनुच्छेद 16 (4) इस नियम में छूट देता है कि अगर सरकार को लगे कि किसी वर्ग के लोगों के पास सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वो उन्हें आरक्षण का लाभ दे सकते हैं। अनुच्छेद 16(4-A) राज्य को इस बात की छूट देता है कि वो प्रतिनिधित्व की कमी को दूर करने के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण दे।

राज्य सरकार के आरक्षण के फैसले की समीक्षा हो सकती है?
जानकारों का कहना है कि संविधान के मुताबिक, राज्य चाहें तो प्रमोशन में आरक्षण दे सकते हैं, लेकिन इस फैसले की कानूनी समीक्षा भी हो सकती है। इस दौरान देखा जाएगा कि क्या प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के पक्ष में ठोस आंकड़े भी हैं? देश में 80 के दशक में राज्य प्रमोशन में भी आरक्षण देने लगे। इन पर ब्रेक लगा नवंबर 1992 में, जब मंडल केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की व्यवस्था नियुक्ति के लिए है न कि प्रमोशन के लिए। रिजर्वेशन कुल भर्ती का 50% से ज्यादा नहीं हो सकता।

SC का आदेश कहां-कहां लागू होगा?
मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से इस मामले की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट मनोज गोरकेला ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सभी राज्य सरकारों की तरफ से मध्यप्रदेश ने लीड किया। गोरकेला के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला कई वर्षों से लंबित होने के कारण देश में कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है। अब 10 अक्टूबर को इस पर विस्तृत आदेश जारी किया जाएगा, जो केंद्र और देश के सभी राज्यों में लागू होगा।

केंद्र सरकार की क्या तैयारी है?
याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण का कहना है कि कई राज्य अभी भी नागराज जजमेंट को नहीं मान रहे हैं। सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि केंद्र सरकार ने नागराज जजमेंट के तहत कोई गाइडलाइन नहीं बनाई है। यानी कोई राज्य किस आधार और प्रक्रिया के तहत अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को तय करे, इसके लिए बेंचमार्क होना जरूरी है।

MP सरकार ने क्यों बढ़ाया 2 साल का सेवाकाल?
प्रमोशन में आरक्षण का मामला लंबित होने की वजह से अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नत हुए बिना ही सेवानिवृत्त होते जा रहे थे। इसे लेकर सरकार के खिलाफ कर्मचारियों में नाराजगी भी थी। इस कारण शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा कदम उठाते हुए सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी, जो अभी भी जारी है। बावजूद पिछले 5 साल में 75 हजार से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी बिना प्रमोशन का लाभ प्राप्त किए ही रिटायर हो चुके हैं।

मध्यप्रदेश में आरक्षण के नए नियम का ड्राफ्ट तैयार, फिर क्यों इंतजार?
मध्यप्रदेश सरकार नए पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह डॉ. राजेश राजौरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की समिति बनाई गई थी। समिति ने सभी पहलुओं पर विचार करने और विधि विशेषज्ञों से अभिमत लेने के बाद नए नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है। अब इसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है, जिसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रस्ताव भी भेज दिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सरकार इंतजार कर रही है।

SC के फैसले को पलटने के लिए 3 बार संविधान संशोधन
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए 1995, 2000, 2001 में कई संविधान संशोधन किए। 2002 में इन सभी संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। इस मामले को एम नागराज केस के नाम से जानते हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में फैसला देते हुए कहा- ये सारे संशोधन वैध हैं। यानी सरकारें अपने यहां प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं, लेकिन तीन बातों का ध्यान रखना होगा-

1. जिस समुदाय को ये लाभ दिया जा रहा है, उसका प्रतिनिधित्व क्या वाकई बहुत कम है?

2. क्या उम्मीदवार को नियुक्ति में आरक्षण का लाभ लेने के बाद भी आरक्षण की जरूरत है?

3. एक जूनियर अफसर को सीनियर बनाने से काम पर कितना फर्क पड़ेगा?

MP हाईकोर्ट में 24 याचिकाएं दायर हुईं, उनका क्या हुआ?
अनारक्षित वर्ग की ओर से एससी-एसटी को दिए जा रहे आरक्षण की वजह से उनके अधिकार प्रभावित होने को लेकर हाईकोर्ट में 2011 में 24 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें सरकार द्वारा बनाए मप्र पब्लिक सर्विसेज (प्रमोशन) रूल्स 2002 में एससी-एसटी को दिए गए आरक्षण को कठघरे में रखा गया था। 2015-16 में हाईकोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण को रद्द कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए थे, जिस पर फैसला होना बाकी है।

फैसले से पहले अब शीर्ष अदालत ने सरकारों से क्या पूछा है?
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, संजीव खन्ना और बीआर गवई की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा- हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि नागराज या जरनैल सिंह के मामले दोबारा नहीं खोलेंगे। अपने पूर्व के आदेश को रेखांकित करते हुए कहा कि आरक्षण को लेकर विस्तृत व्यवस्था दे रखी है, उन्हें लागू करने का काम राज्य सरकारों का है। कई राज्यों ने प्रमोशन में एससी/एसटी को आरक्षण देने में कठिनाइयां गिनाईं। इस पर शीर्ष अदालत ने राज्य सरकारों की ओर से पेश वकीलों से कहा कि वह राज्यों के उन मुद्दे की पहचान करें, जिससे बाधाएं आ रही हैं।

क्या प्रमोशन में आरक्षण का असर केंद्रीय कर्मचारियों पर भी पड़ा है?
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा- केंद्र सरकार के सामने परेशानी यह है कि हाई कोर्ट ने तीन अंतरिम आदेश दिए हैं। इनमें ये दो में कहा गया है कि प्रमोशन हो सकता है, जबकि तीसरे में प्रमोशन पर यथास्थिति रखने को कहा गया है। केंद्र सरकार में सचिव स्तर पर 1,400 पद पर नियुक्ति रुकी हुई हैं। सवाल यह है कि क्या नियमित नियुक्तियों पर प्रमोशन जारी रह सकता है और रिजर्व सीटों को यह प्रभावित करेगा।

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