सड़कों के मटेरियल में 10% प्लास्टिक वेस्ट होगा:भोपाल की 187 पंचायतों से रोज निकलता है 930 किलो प्लास्टिक वेस्ट, गांवों में इसी से बनेंगी सड़कें

राजधानी से सटे 465 गांवों की 187 पंचायतों से कचरा कलेक्शन की जिम्मेदारी अब महिलाओं के हवाले होगी। यहां से रोजाना 930 किलो प्लास्टिक वेस्ट निकलता है। इस वेस्ट में से प्लास्टिक को अलग करने का काम महिलाएं ही संभालेंगी। इसके लिए उन्हें प्रति किलो 14 से 20 रु. भुगतान किया जाएगा।

बाद में इस वेस्ट को भोपाल-रायसेन जिले के बीच बन रहे एफआरएफ (मटेरियल रिकवरी फैसिलिटेशन) सेंटर भेजा जाएगा। यहां प्रोसेसिंग के बाद प्लास्टिक सड़क बनाने वाली एजेंसियों को दे दिया जाएगा। ये एजेंसियां मटेरियल में 10% प्लास्टिक वेस्ट को मिलाकर सड़कें बनाएंगी। शहर में स्वच्छ भारत अभियान के तहत ऐसा प्रयोग पहली बार किया जा रहा है। कलेक्टर अविनाश लवानिया ने बताया कि गांवों की सड़कों में इस प्लास्टिक वेस्ट को खपाया जाएगा।

ऐसे बनेगी सड़क : डामर और गिट्‌टी में प्लास्टिक के टुकड़ों को मिलाएंगे
स्वच्छ भारत मिशन के जिला समन्वयक संतोष झारिया के मुताबिक भोपाल और रायसेन जिलों से हर दिन कुल 2600 किग्रा प्लास्टिक वेस्ट निकलता है। इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक भी शामिल है। एमएआरएफ सेंटर पर इसे गलाया जाएगा। इसके बाद इसे उन एजेंसियों को दे दिया जाएगा, जो सड़क बना रही हैं। एजेंसियां डामर-गिट्‌टी के साथ प्लास्टिक के टुकड़ों को मिलाकर सड़कों पर बिछाएंगी। इससे बनी सड़कों की लागत कम आएगी। एमआरएफ सेंटर पर गीले कचरे को डंप कराकर उससे जैविक खाद बनाई जाएगी, जबकि जो पानी निकलेगा, उसे डबल फिल्टर करके किचिन गार्डन तक पहुंचाया जाएगा। इसके लिए किसी घर में आगे तो किसी में पीछे की तरफ से उस हिस्से को गार्डन में तब्दील किया जाएगा, जहां वेस्ट वॉटर जाता है। इसके लिए दो फिल्टर चैम्बर बनेंगे। अक्सर गांव में पानी या तो सड़कों पर जाता है या गड्ढों में जमा होता है।

66 पंचायतों से शुरुआत, चूने से बना रहे नक्शा
स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव में किस तरह गीला, सूखा कचरा एकत्र करना है। इसकी शुरुआत ओडीएफ प्लस के तहत 66 पंचायतों से की गई है। इसमें स्वच्छ भारत मिशन की टीम गांव-गांव जाकर चूना डालकर लोगों को बता रही है कि कैसे कचरे को अलग करना है। खाद के लिए उसे कैसे स्टोर करना है। इसके लिए स्व सहायता समूहों को ट्रेनिंग भी दी जा रही है।

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