लाखों की नौकरी छोड़ गंदे तालाबों की सफाई कर रहा है इंजीनियर, अब तक 30 से ज्यादा तालाबों को जिंदा किया, PM भी कर चुके हैं तारीफ
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा का डाढ़ा-डाबरा गांव। करीब एक दशक पहले इस गांव में और आस पास के इलाकों में लोग पानी की कमी से जूझ रहे थे। ज्यादातर तालाब या तो सूख गए थे या गंदगी की वजह से उनका पानी पीने लायक नहीं था। इसको लेकर न तो प्रशासन कुछ कर रहा था न गांव के लोग जागरूक थे, लेकिन रामवीर तंवर को ये गंदगी रास नहीं आई। उन्होंने तालाबों को साफ करने का बीड़ा उठाया। यहां तक कि इसके लिए अच्छी खासी नौकरी भी छोड़ दी।
आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई, एक के बाद एक लोग उनके साथ जुड़ते गए। आज इस गांव के साथ-साथ वे यूपी के कई इलाके की तस्वीर बदल चुके हैं। 30 से ज्यादा तालाबों को जिंदा कर चुके हैं, सैकड़ों तालाबों की सफाई कर चुके हैं। इतना ही नहीं जहां पानी की दिक्कत थी, वहां कई तालाब भी उन्होंने खुदवाए हैं। इस काम के लिए उन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। देशभर में वे पॉन्डमैन के नाम से मशहूर हैं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात में रामवीर का जिक्र कर चुके हैं।
खेती के काम में हाथ बंटाने के साथ-साथ पढ़ाई करते थे
रामवीर की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गांव में ही हुई। उनके माता-पिता खेती करते थे। वे खुद भी पढ़ाई के साथ-साथ खेती बाड़ी में परिवार की मदद करते थे। रामवीर अपने परिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की। तब वे स्कूल टॉपर बने थे। इसके बाद उन्होंने 12वीं में दाखिला लिया। गांव में या आसपास कोई स्कूल नहीं था, जहां इंटरमीडिएट की पढ़ाई होती हो। लिहाजा 30 किलोमीटर दूर उन्हें एडमिशन लेना पड़ा।
रामवीर बताते हैं कि हमारे पास तब 20 भैंस थीं। पढ़ाई के साथ-साथ मैं उनकी देखभाल भी करता था। हर रोज स्कूल जाने के पहले उन्हें खिला-पिला देता और घर आने के बाद फिर से उनकी देखरेख में जुट जाता था। यह मेरा रूटीन वर्क था। 12वीं पास करने के बाद परिवार के लोग चाहते थे कि मैं इंजीनियरिंग करूं। पैसे नहीं थे तो घर वालों ने कुछ जमीन बेच दी। इसके बाद ग्रेटर नोएडा के एक कॉलेज में मैंने दाखिला ले लिया। पैसे की दिक्कत थी इसलिए खर्च निकालने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा।
बच्चों के साथ मिलकर शुरू की पानी बचाने के लिए अवेयरनेस
वे कहते हैं कि तब कुछ लोग समर्सेबल लगवा रहे थे, खास करके शहरों में। इस वजह से वाटर लेवल नीचे जा रहा था। दूसरी तरफ तालाबों में गंदगी भरी थी, लेकिन इसको लेकर किसी का ध्यान नहीं जा रहा था। जो बच्चे मेरे यहां पढ़ने आते थे, उनसे अक्सर इस बात को लेकर चर्चा होती रहती थी। मैंने बच्चों से कहा कि वे लोग अपने घर पर पानी को लेकर पेरेंट्स को जागरूक करें, परिवार के सदस्यों से बात करें, लेकिन दिक्कत ये थी कि बच्चों की बात कोई सुनता नहीं था। घर वाले ही उनकी बात को सीरियसली नहीं लेते थे।
इसके बाद मैंने तय किया कि बच्चों के साथ मिलकर खुद ही घर-घर जाएंगे और लोगों को पानी की बचत को लेकर जागरूक करेंगे। शुरुआत मैंने खुद के घर से ही की, इसके बाद गांव में हम लोगों के घर जाने लगे। शुरुआत में कई लोगों ने हमारी आलोचना की, लेकिन हमने इसकी परवाह नहीं की और अपने अभियान में जुटे रहे। धीरे-धीरे लोगों को हमारी बात समझ आने लगी और हमारी मुहिम आगे बढ़ने लगी।
धीरे-धीरे लोगों का साथ मिलता गया, कारवां आगे बढ़ता गया
रामवीर कहते हैं कि घर-घर जाने के बाद हमने तय किया कि अब हम अवेयरनेस को लेकर चौपाल लगाएंगे। हमने बच्चों और गांव के लोगों के साथ मिलकर चौपाल लगाना शुरू कर दिया। हम हर हफ्ते गांव के लोगों के साथ मिलकर चौपाल लगाते थे और पानी की समस्या को लेकर चर्चा करते थे। धीरे-धीरे इसके बारे में इलाके के लोगों को जानकारी हो गई। कुछ दिन बाद हमारी चौपाल के बारे में अखबार में खबर छपी। जिसके माध्यम से हमारी पहल की जानकारी जिले के डीएम तक पहुंच गई। उन्हें हमारा काम पसंद आया। इसके बाद उन्होंने मुझे मिलने के लिए बुलाया। तब मैं इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में था।
रामवीर से मिलने के बाद डीएम अपने काफिले के साथ गांव पहुंचे। उन्हें देखकर लोगों की भीड़ जुट गई। उन्होंने गांव के लोगों के सामने कहा कि बच्चे अच्छी पहल कर रहे हैं। इस चौपाल का नाम जल चौपाल रखा जाए और जल संरक्षण को लेकर एक डॉक्युमेंट्री बनाई जाए। जिसके जरिए हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पानी बचाने का मैसेज पहुंचा सकें। इसके बाद एक डॉक्युमेंट्री बनी, जिसे हर थिएटर में फिल्म से पहले चलाने का आदेश दिया गया। इसके बाद उनकी मुहिम रंग लाने लगी। ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ने लगे।
ग्राउंड पर काम नहीं पहुंच पा रहा था, इसलिए नौकरी छोड़ दी
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद रामवीर की जॉब लग गई। कुछ महीने काम करने के बाद उनका प्रमोशन भी हो गया। रामवीर कहते हैं कि पहले तो कुछ महीने मैंने नौकरी के साथ जल संरक्षण की मुहिम जारी रखी। जब भी वक्त मिलता मैं गांव की तरफ निकल जाता और लोगों को जागरूक करता। तब हमने गंदे तालाबों को साफ करने का अभियान भी शुरू किया था। बच्चों के साथ मिलकर हम लोग तालाबों की सफाई करते थे।
कुछ वक्त बाद मुझे रियलाइज हुआ कि नौकरी की वजह से मैं इस अभियान पर पूरा फोकस नहीं कर पा रहा हूं। ग्राउंड पर काम नहीं हो पा रहा है। सिर्फ जागरूकता से ही स्थिति बदलने वाली नहीं है, खुद भी इसके लिए जमीन पर उतरना होगा। इसके बाद साल 2015-16 में मैंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से इस काम में जुट गया।
रामवीर कहते हैं कि तालाबों की सफाई के दौरान मुझे पता चला कि इसके लिए अच्छे खासे बजट की जरूरत होगी, लेकिन हमारे पास बजट नहीं था। इसके बाद मैंने RTI लगाई। तब पता चला कि ज्यादातर तालाबों को बड़ी-बड़ी कंपनियों ने गोद तो लिया है, लेकिन ग्राउंड पर कुछ भी काम नहीं हुआ है। ज्यादातर तालाब या तो गंदे हैं या फिर सूखे पड़े हैं।
इसके बाद मैंने उन कंपनी वालों से बात की। उन्हें अपना आइडिया बताया, उनके दफ्तर में जाकर प्रजेंटेशन दी। तब जाकर कुछ हद तक हम सफल हुए। एक कंपनी की तरफ से हमें 2.5 लाख का फंड मिला था। इसके बाद हमारे काम ने रफ्तार पकड़ ली।
मन की बात में प्रधानमंत्री ने जिस गांव की तारीफ की, आज वह गांव टूरिस्ट स्पॉट बन चुका है
रामवीर सेअर्थ नाम से NGO चलाते हैं। अब तक वे 30 से ज्यादा तालाबों को जिंदा कर चुके हैं। कई नए तालाब भी उन्होंने खुदवाए हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब सहित कई राज्यों में उनकी टीम काम करती है। वे बताते हैं कि डाबरा गांव में एक तालाब कूड़ाघर बन गया था। हमने इस तालाब को साफ किया था। पीएम ने मन की बात में इसी तालाब का जिक्र किया था। आज ये तालाब ईको-टूरिस्ट स्पाॅट बन गया है। तालाब के आसपास के इलाके को ऑर्गेनिक फार्म में बदल दिया गया।
सफाई अभियान को लेकर रामवीर कहते हैं कि पहले हम अपने सोर्स से गंदे तालाबों के बारे में जानकारी जुटाते हैं, फिर प्रशासन से परमिट लेकर साफ करवाने का जिम्मा उठाते हैं। पानी की क्वालिटी टेस्टिंग होती है, फिर वहां की साफ-सफाई का काम शुरू होता है। फिलहाल वे सोशल मीडिया के जरिए भी लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं। उनकी टीम तालाबों के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण बचाने को लेकर भी काम कर रही है।