गृहमंत्री अमित शाह के 58वें जन्मदिन पर खास …दोस्तों के ‘मन की बात’, अमित शाह दुनिया के लिए हैं, हम तो उन्हें ‘पूनम’ नाम से जानते हैं

देश के गृहमंत्री और BJP के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का आज 58वां जन्मदिन है। इस मौके पर हम आपको उनके बचपन के संस्मरण से रू-ब-रू करवाने जा रहे हैं। अमित शाह गुजरात की राजधानी गांधीनगर के पास स्थित एक छोटे से गांव माणसा के मूल निवासी हैं। उनके बचपन से जुड़ी यादों को जानने के लिए हमने उनके साथ स्कूल में पढ़े दोस्तों से खास बातचीत की है।

पहली बार शाह के गांव से दोस्तों का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
अमित शाह का जन्म माणसा गांव में हुआ। यहीं पर उनका बचपन भी बीता। अमित शाह ने इसी गांव के स्कूल में 9वीं तक पढ़ाई की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे अहमदाबाद चले गए। इसके बाद अहमदाबाद से ही उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी हुई। भास्कर की टीम ने इसी माणसा गांव में अमित शाह के साथ स्कूल में पढ़ने वाले दोस्तों से बातचीत की।

‘स्कूली दिनों में मैं तो अक्सर अमितभाई के घर पर ही रहता था’
केंद्रीय गृह मंत्री के पुराने दोस्त और पेशे से दर्जी सुधीर कुमार सकलचंद बताते हैं, “आज लोग उन्हें अमित शाह के नाम से जानते हैं, लेकिन बचपन में हम उन्हें ‘पूनम’ कहकर बुलाते थे। हमने किंडरगार्टन से कक्षा 9वीं तक एक ही बेंच पर साथ बैठकर पढ़ाई की। कक्षा 10वीं में आने के बाद वे अहमदाबाद चले गए।”

सुधीर आगे कहते हैं, “अमितभाई बचपन से ही बहुत शांत और गंभीर स्वभाव के हैं। हमें आज भी विश्वास नहीं होता कि इस मुकाम पर होने के बाद भी उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। वे आज भी हम दोस्तों से वैसे ही मिलते हैं जैसे बचपन में मिला करते थे। यह तो हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वे इतने ऊंचे पद पर पहुंचेंगे और देश के लिए इतना कुछ करेंगे। दरअसल, अमितभाई आज जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे घर से मिले संस्कार ही हैं। उनका घर बेहद संस्कारी रहा है। अमितभाई को बचपन से ही पढ़ने का काफी शौक भी रहा है। उन्होंने चाणक्य, मुगल साम्राज्य जैसी कई किताबें पढ़ीं।”

कक्षा 5वीं में पहली बार क्लास मॉनिटर का चुनाव लड़ा और जीता

सुधीर ये भी कहते हैं, “स्कूल के दिनों में मैं अक्सर उनके घर ही पर रहता था। उनके साथ में पढ़ता और उनके साथ ही खाना खाता था। मैं और मेरे पिता उनके कपड़े भी सिला करते थे। मुझे याद है कि कक्षा 5वीं में पहली बार उन्होंने क्लास मॉनिटर का चुनाव लड़ा और जीता भी था, लेकिन इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था कि राजनीति ही उनका करियर होगा। हम दोस्त तो यही दुआ करते हैं कि उन्हें हमारी उम्र लग जाए, जिससे वे देश के लिए और अधिक काम कर सकें।”

“अमितभाई आज ऐसे पद पर हैं, जहां से वे देश के विकास के लिए कई काम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। वहीं, प्रधानमंत्री के प्रोटोकॉल में वे ज्यादा काम नहीं कर पाते। इसलिए हमारी तो यही इच्छा है कि वे आगे भी इसी पद पर रहें। आज राजनीति में उनका कोई मुकाबला नहीं है। अमित भाई से यही उम्मीद है कि देश में सभी को रोजगार मिले और वे जिस तरह से काम कर रहे हैं उससे यह मुश्किल भी नहीं।”

‘कंप्लीट फैमिलीमैन’ हैं अमितभाई
सुधीर आगे कहते हैं कि अमितभाई को खाने-पीने का बहुत शौक है। उन्हें माणसा गांव की चेवडा-पूरी और अहमदाबाद की पाव-भाजी बहुत पसंद है। वे पारिवारिक व्यक्ति हैं। अमितभाई का जीवन बहुत व्यस्त है, इसके बाद भी वे पारिवारिक कार्यक्रमों में नियमित रूप से शामिल होते हैं। हमारे माणसा गांव के लिए बड़े गर्व की बात है कि उन्होंने दो दिन का समय गांव के लिए निकाला और माता के पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

शाह के एक और पुराने दोस्त योगेश कुमार मफतलाल जोशी ने बताया कि उनका भी बचपन अमितभाई के साथ ही बीता। योगेश बताते हैं कि प्ले-स्कूल के बाद साथ ही स्कूल गए। अमित भाई बचपन से ही बेहद सादा जीवन जीते आए हैं और शांत स्वभाव के रहे हैं। स्कूल में भी उनका कभी किसी से झगड़ा नहीं हुआ। हम दोस्तों के विवाद पर वे हमेशा यही कहते थे कि किसी से ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए। इससे ही उनके शांत स्वभाव को समझा जा सकता है। हम साथ में लखोटी, गिल्ली-डंडा और क्रिकेट खेला करते थे। अमितभाई जब भी माणसा गांव आते हैं तो सबसे पहले बहुचर माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। गांव में आज कई लोग बुजुर्ग हो चुके हैं, लेकिन अमितभाई उनसे भी मिलना नहीं भूलते।

अमित शाह के मामा मुकुंदभाई मोहनलाल शाह कहते हैं, “गांव में करीब बीस सालों से गोवर्धननाथजी की पुष्टिमार्गीय हवेली है। अमित जब भी गांव आते हैं तो यहां के दर्शन करने जरूर आते हैं। मैं अक्सर यहीं रहता हूं और आज भी अमित यहां आते हैं तो मेरे पैर छूने के बाद सीढ़ियों पर ही बैठ जाते हैं। उनका व्यक्तित्व हमेशा से ही सरल रहा है, जो आज तक नहीं बदला। वे भले ही इतने ऊंचे पद पर हैं, लेकिन आज तक उन्होंने किसी से ऊंची आवाज में बात नहीं की। गांव के लोगों से भी वैसे ही मिलते हैं, जैसे बचपन में मिला करते थे। माणसा में बहुचर माता मंदिर के सामने ही अमितभाई का पुश्तैनी घर है और इसी घर में उनका बचपन बीता है। इसलिए वे अक्सर यहां आते रहते हैं

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