Char Dham Project: क्या है चार धाम प्रोजेक्ट, इसके तहत क्या-क्या होगा… चालबाज चीन को कैसे मिलेगी चुनौती? जानें सबकुछ

Gangotri Yamunotri Badrinath Kedarnath: पहली नजर में यह चारधाम प्रोजेक्ट एक धार्मिक रूट परियोजना लगती है, लेकिन सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से यह बेहद अहम है.

गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीना​थ… हिंदू धर्म के इन चारों पवित्र धामों के लिए केंद्र सरकार (Modi Government) की चार धाम परियोजना (Char Dham Project) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हरी झंडी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट के तहत तीन डबल-लेन हाईवे (Double Lane Highways) बनाने की इजाजत दे दी है. रणनीतिक रूप से बेहद अहम माने जाने वाली 900 किलोमीटर लंबी इस सड़क परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड के चारों धामों के लिए हर मौसम में सुलभ और सुविधाजनक रास्ता देना है.

बता दें कि NGO ‘सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून’ ने पर्यावरण के प्रति चिंता जताते हुए प्रोजेक्ट को चुनौती दी थी. लेकिन कोर्ट ने देश की रक्षा जरूरतों के आधार पर इसे सही ठहराया, जबकि पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं पर नजर रखने के लिए पूर्व जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है. केंद्र की इस परियोजना के तहत एक चौड़ी सड़क सीधे भारत-चीन सीमा (Indo China Border) तक जाएगी. ऐसे में कहा जा रहा है कि चीन के सामने भारत की स्थिति मजबूत होगी.

आइए जानते हैं, क्या है यह चारधाम प्रोजेक्ट, इसके तहत कौन से काम होंगे, कैसी सड़कें बनेंगी, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और आम आदमी को कैसे फायदे होंगे, साथ ही चीन के लिए यह प्रोजेक्ट कैसे चुनौती खड़ी करेगा.

क्या है चारधाम प्रोजेक्ट?

चारधाम परियोजना एक तरह से ऑल वेदर रोड परियोजना है, जो उत्तराखंड में केवल चार धामों को जोड़ने की परियोजना भर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय महत्व की परियोजना है. इसके जरिए उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को जोड़कर पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही पड़ोसी चालबाज देश चीन को चुनौती देने के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण है. पहले इस प्रोजेक्ट का नाम ‘ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट’ ही था, जिसे बाद में नाम बदलकर ‘चारधाम प्रोजेक्ट’ किया गया.

पीएम मोदी ने 2016 में रखी थी आधा​रशिला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इस प्रोजेक्ट को 2013 की केदारनाथ त्रासदी में मृतकों के लिए श्रद्धांजलि बताया था. उत्तराखंड में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. इसी दौरान साल 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी, जिसके तहत चारधाम को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) को चौड़ा, बेहतर और मजबूत किया जाना है.

प्रोजेक्ट के तहत क्या-क्‍या काम हुए और होंगे?

इस प्रोजेक्ट के तहत कुल 889 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया जाना है, जिसका बजट करीब 12000 करोड़ रुपये बताया गया है. चार धाम परियोजना के पहले चरण में ही 3000 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की इस रुपये 12,000 करोड़ की परियोजना के तहत 889 किलोमीटर लम्बे हाइवे को चौड़ा कर, चारो धामों, यमनोत्री (NH-94), गंगोत्री (NH-108), केदारनाथ (NH-109) और बद्रीनाथ (NH-58) को आपस में जोड़ा जाना है.

वर्ष 2017 में इस प्रोजेक्ट के टेंडर पर काम शुरू हुआ. वर्ष 2018 में करीब 400 किलोमीटर सड़कों का चौड़ीकरण किया जा चुका है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगस्त 2021 तक की स्थिति में 645 किलोमीटर पर काम चल रहा है, जिसमें से 565 किलोमीटर क्षेत्र में चौड़ीकरण का काम हो चुका है. 526 किमी क्षेत्र में पेंटिंग का काम भी लगभग कंप्लीट है. सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के कारण काम की रफ्तार पर ब्रेक लगा था, जो अब तेजी से आगे बढ़ने की उम्मीद है.

किनके जिम्मे है प्रोजेक्ट का काम?

इस परियोजना को 53 छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा गया है, जिसकी जिम्मेदारी अलग-अलग एजेंसियां संभाल रही हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत 12 बाईपास, 15 फ्लाईओवर, 107 छोटे पुल और 3889 कलवेर्टर्स का निर्माण होना है. चार-धाम परियोजना का जिम्मा उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग(UKPWD), बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) और राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL), एनएचएआई यानी नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के पास है.

तीर्थयात्रियों और आम लोगों को क्या फायदे होंगे?

चार धाम यात्रा उत्तराखंड पर्यटन की रीढ़ मानी जाती है. प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इसका अहम रौल है. हालांकि सड़क मार्ग से यात्रियों को सफर के दौरान कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. खासकर बारिश के मौसम में भूस्खलन (Landslide), पहाड़ों से पत्थर टूट कर गिरने जैसे समस्याएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. इससे यात्रियों के जानमाल को खतरा रहता है. केंद्र सरकार की मंशा है कि देवभूमि उत्तराखंड में चार धाम की यात्रा, हर मौसम में सुगम हो और परेशानियों से मुक्त हो. इस लिहाज से यह प्रोजेक्ट बेहद महत्वपूर्ण है. इस प्रोजेक्ट को लेकर कहा जा रहा है कि इसके कंप्लीट होने के बाद करीब अगले 200 सालों तक इस सड़क मार्ग पर किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी.

पर्यावरण सुरक्षा को लेकर हुए विवाद भी!

केंद्र सरकार ने मार्च 2020 तक ही इस परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा था. मीडिया रिपोर्ट के अुनसार, लोकसभा में यह बताया गया था और एनजीटी और कोर्ट की आपत्तियों के कारण देर होने की बात कही गई थी. इस परियोजना के तहत 50000 पेड़ों के काटे जाने को लेकर भी सवाल खड़े किए गए. इनमें से करीब 32000 पेड़ काटे जा चुके हैं.

इस प्रोजेक्ट में सड़क चौड़ीकरण के लिए ब्लास्टिंग यानी विस्फोट भी जरूरी है, जिस कारण पहाड़ों को बेहद ज्यादा नुकसान होने पर भी पर्यावरणविद् चिंता और नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. चौड़ीकरण से निकले मलबे को भी जैसे-तैसे फेंके जाने पर भी सवाल खड़े किए गए.

चालबाज चीन को कैसे मिलेगी चुनौती?

उत्तराखंड में चारधाम सड़क परियोजना सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. पहली नजर में यह चारधाम प्रोजेक्ट एक धार्मिक रूट परियोजना लगती है, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से यह बेहद अहम है. उत्तराखंड में पहाड़ और भारत-चीन मसले पर विशेष रिपोर्टिंग कर चुके वरिष्ठ पत्रकार रियाज हाशमी कहते हैं कि इसे ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट कहना ज्यादा सही है. कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए लिपुलेख जाने वाली सड़क भी इसी तरह का महत्व रखती है, जिसके जरिये भारतीय सेना आसानी से चीन-नेपाल की सीमा तक पहुंच जाती है.

चारधाम परियोजना के तहत भारत की चीन तक पहुंच और आसान हो जाएगी और किसी भी मौसम में भारतीय सेना चीन से सटी सीमाओं पर पहुंच सकेगी. भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार ने कोर्ट अदालत में एक सीलबंद लिफाफा प्रस्तुत किया था. इसमें चीन की तरफ से किए गए कंस्ट्रक्शन की तस्वीरें थीं.

सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि चीन की तरफ से सीमा पर हवाई पट्टी, हेलीपैड, टैंकों, सैनिकों के लिए बिल्डिंग्स का निर्माण किया जा रहा है…और यहां तक कि रेलवे लाइन्स बिछाई जा रही हैं. टैंक, रॉकेट लांचर और तोप ले जाने वाले ट्रकों को इन सड़कों से गुजरना पड़ सकता है, इसलिए सड़क की चौड़ाई 10 मीटर की जानी चाहिए.

1962 के भारत-चीन युद्ध का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा था कि हमारे सैनिकों को सीमा तक पैदल चलना पड़ा था. ऐसे में हमें सशस्त्र बलों को स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. रियाज कहते हैं कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली जिला चीन बॉर्डर पर हैं, लिहाजा सामरिक दृष्टिकोण से भी यहां से सेना के हथियारों और जवानों को ले जाने के लिए बेहतर सड़क को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.

वे कहते हैं कि चारधाम राजमार्ग राजमार्ग चीन की सीमा तक जाएगा और हाल के दिनों में सीमाओं पर सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां सामने आई हैं, उसे देखते हुए ऐसा करना जरूरी है. इससे चीन के हौसले पस्त करने में भारतीय सेना को काफी मदद मिलेगी. हालांकि पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं का ध्‍यान रखते हुए काम होने चाहिए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *