संसद में कानून वापसी के बाद ही उठेंगे किसान …….दिल्ली-हरियाणा-यूपी की सीमा पर आंदाेलन कर रहे किसान अभी इंतजार करेंगे
लगभग सवा साल तक आंदोलन। केंद्र के तीन कृषि कानूनों का विरोध। दिल्ली के पास गाजीपुर, टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर सियासत गरमाई रही। सर्दी, गर्मी और बरसात, किसान डेरा जमाए रहे। पुलिस और सरकार के नुमाइंदों के साथ कभी गर्म तो कभी नरम रवैया। किसानों ने डेरा जमाए रखा। लंगर चले। आंदोलन हुए। मारपीट, लाठीचार्ज और सियासत।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। बॉर्डर पर जमा किसानों ने इसे उनके संघर्ष की जीत बताया। खुशियां मनाई गईं। मिठाई बांटी गईं, लेकिन इन तीनों ही बॉर्डर पर जमा किसानों का कहना है कि आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। संसद में तीनों कानून रद्द किए जाएं। भास्कर के संवाददाताओं ने जाने तीनों बॉर्डर के हाल… पेश है ग्राउंड रिपोर्ट
टिकरी बॉर्डर से धीरज शर्मा
कानून वापसी के बाद लगे किसान एकता के नारे
कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही टिकरी बाॅर्डर पर किसान एकता के नारे गूंज उठे। एक साल से सड़कों पर बैठे किसानों ने मिठाई बांटकर खुशी मनाई। किसान सेक्टर-9 चौक पर पहुंच गए और ढोल बजने शुरू हो गए। वहीं, गुरु पर्व पर संंगतों को कीर्तन के जत्थों ने गुरु की शिक्षाओं से निहाल किया। हालांकि स्टेज से बार-बार घोषणा की गई कि 26 व 29 नवंबर के प्रदर्शन का कार्यक्रम पहले की तरह से रहेगा। शुक्रवार दोपहर को घोषणा की गई कि कोई किसान वापस नहीं जाएगा। किसान नेता बलबीर राजेवाल ने कहा कि आंदोलन खत्म करने को लेकर फैसला होना बाकी है।
सेक्टर-2 से आए राजबीर खोखर ने कहा कि वैसे तो रोज घूमने आते हैं, लेकिन आज का दिन यादगार बन गया है। दोपहर तक युवकों द्वारा बाइक पर पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। टिकरी बॉर्डर पर बाइकों के लिए खुले ढाई-ढाई फीट के रास्तों को शुक्रवार सुबह 5 से 6 फीट तक खोल दिया गया है। कार चालकों, ई-रिक्शा व ऑटो वालों को भी दिल्ली से सीधे बहादुरगढ़ आने-जाने का रास्ता मिला। राहगीर खुश थे। बहादुरगढ़ के फैक्ट्री संचालक आरबी यादव का कहना है कि किसी के हिस्से जीत आई, किसी के हिस्से माफी, हमारे हिस्से में केवल बर्बादी।
गाजीपुर बॉर्डर से एम रियाज हाशमी
आंदोलनकारी तो उत्साहित हो उठे, लेकिन नेता नहीं
दिल्ली-एनसीआर में कोहरे की चादर लिए शुक्रवार की सुबह। गाजीपुर बॉर्डर पर कृषि कानूनों को वापस लेने की खबर आई। किसान उत्साहित हो उठे, लेकिन किसान नेता नहीं। सबकी निगाहें भाकियू नेता राकेश टिकैत को ढूंढ रही थी। पता चला वे महाराष्ट्र में हैं। कुछ किसान उत्साहित होकर जलेबियों की थाल लेकर लोगों का स्वागत करने लगे।
तभी राकेश टिकैत का ट्वीट आया, ‘आंदोलन तत्काल खत्म नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा। एमएसपी का मुद्दा साफ हो। टिकैत से फोन पर बात हुई तो वे बोले- ये कानून तो किसानों पर थोपे गए थे। मोर्चा तय करेगा कि अगला कदम क्या होगा। गाजीपुर में बुजुर्ग किसान देशपाल सिंह कहते हैं- आप लोग कल से ही यहां किसानों का जमावड़ा देखना।
मोदी जी का धन्यवाद कि उन्होंने इस आंदोलन में नया उत्साह पैदा कर दिया। भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत के बेटे गौरव टिकैत इसे चुनावी चाल बता रहे हैं। यहां मीडिया को दी जाने वाली हर एक प्रतिक्रिया किसानों के बीच विस्तृत चर्चा का रूप लेती सुनी और देखी जा सकती है। लखीमपुर के युवा किसान गुरप्रीत सिंह कहते हैं कि यूपी के चुनाव में इस फैसले से भाजपा के लिए तस्वीर बदलने वाली नहीं है।
सिंघु बॉर्डर से जितेन्द्र बूरा
मनाया जश्न पर संसद कूच को तैयार कर रहे ट्रैक्टर
सिंघु बॉर्डर पर शुक्रवार को जोश नजर आया। जैसे-जैसे दिन चढ़ा, गाड़ियों, ट्रैक्टर और अन्य वाहनों में भी किसानों के काफिले पहुंचने लगे। कोई मिठाई तो कोई गांव में गुलाल उड़ाते हुए जश्न मनाकर पहुंचा। कई जगह युवा हाथों में वी वॉन के बैनर लेकर नारे लगाते नजर आए। मंच से दिनभर वक्ता एक ही बात दोहराते रहे कि अभी जश्न का समय नहीं आया है।
अभी कानून वापसी की घोषणा है। बॉर्डर पर पंजाब और हरियाणा से लेकर पहुंचे लोगों ने मिठाई बांटी। आंदोलन स्थल पर किसान अपने ट्रैक्टरों की मरम्मत करते दिखे। जालंधर जिले के जसपाल, कृपाल सिंह ने ट्रैक्टर ठीक करवाते हुए कहा कि 29 को संसद कूच है। इसको लेकर ट्रैक्टर तैयार कर रहे हैं। कानून वापसी की घोषणा हुई है, मोर्चा के निर्णय अनुसार ही घर वापसी हाेगी।
वहीं युवाओं, किसानों ने ट्रैक्टरों पर आंदोलन स्थल पर जुलूस निकाले और जय किसान के नारे लगाए। आगे चल रही भीड़ में मिठाइयां बांटी गई। कुंडली से लगातार आंदोलन में सुबह-शाम लंगर सेवा में पहुंचने वाली महिला देवेंद्र कौर ने कहा कि किसान परिवार से जुड़ी हैं। उनका कहना है कि अभी आंदोलनकारी घर वापसी नहीं करेंगे। वापसी तभी होगी जब तीनों कानून संसद में भी वापस होंगे।
विपक्ष के नेता बोले- अहंकार काे झुका दिया
- जीत उनकी है जो घर न लौटे…हार उनकी है जो अन्नदाता की जान बचा न पाए। अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सिर झुका दिया। – राहुल गांधी, कांग्रेस नेता
- उन किसान को बधाई, जिन्होंने लगातार संघर्ष किया। भाजपा की क्रूरता के आगे नहीं झुके। – ममता बनर्जी, प. बंगाल की सीएम
- प्रधानमंत्री द्वारा प्रकाश पर्व पर कृषि कानूनों को निरस्त करने व किसानों से माफी मांगने से बड़ा कुछ नहीं हो सकता। भाजपा के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं। – कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व सीएम
- आंदोलन में 700 जानें गई हैं। संसद में पीएम से कहा था कि काले कानूनों को किसान नहीं मानते। – सुखबीर सिंह बादल, पूर्व सीएम
वर्ल्ड मीडिया – पीएम आखिर नरम पड़े, फैसले में राज्यों के आगामी चुनाव
न्यूयॉर्क टाइम्स: किसानों के चलते बदलना पड़ा अपना रुख
अमेरिकी अखबार ने लिखा, ‘किसान आंदोलन के सामने मोदी सरकार को आखिर रुख बदलना पड़ा। सरकार ने सॉफ्ट अप्रोच अपनाने का फैसला किया और विवादित कृषि कानून वापस ले लिए गए। किसानों ने भी इस फैसले का स्वागत किया।’
द गार्डियन: यह केंद्र के सबसे महत्वपूर्ण फैसलों में एक है
ब्रिटिश अखबार ने लिखा कि भारत के किसानों के लिए एक बड़ी जीत है। इसके लिए उन्होंने करीब एक साल आंदोलन किया। यह केंद्र सरकार द्वारा की गई सबसे महत्वपूर्ण फैसलों में से एक है, क्योंकि इस पर सरकार अडिग थी। इस कदम पर सभी की नजरें थीं।
द डॉन: मोदी को कदम खींचने पड़े, किसानों की बड़ी जीत
पाकिस्तानी अखबार ने लिखा- कृषि कानूनों पर मोदी को कदम पीछे खींचने पड़े। 1 साल के आंदोलन के बाद किसानों की बड़ी जीत। वहीं, जर्मनी के अखबार डायचे वेले ने कहा- भले कानून वापस ले लेंं, पर इससे किसानों का सरकार पर भरोसा कम ही है।
द ग्लोबएंडमेल: मोदी ने चौकाया, इसमें सियासी समीकरण संभव
कनाडा के अखबार ने लिखा- पीएम मोदी ने एक बार फिर चौंका दिया। प्रकाश पर्व पर मोदी के इस ऐलान के कई मायने निकाले जा सकते हैं। इसके राजनीतिक कारण भी अहम हैं। इन कानूनों के पास होने बाद से ही सरकार की परेशानियां बढ़ती जा रहीं थीं।
मृत किसानों के परिवारों की व्यथा
पीएम पहले निर्णय कर ले लेते तो मेरे पिता की जान बच जाती
कृषि कानून वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद है। यदि यह फैसला पहले ले लिया जाता तो मेरे पिता व अन्य किसानों की जान बच सकती थी। किसान आंदोलन के दौरान एक दिन घर लौटते समय मेरे पिता की हार्ट अटैक से जान चली गई। अब परिवार को संभलने में बड़ी दिक्कतें आ रही हैं।
मैं और मेरी बहन पिता को अक्सर याद करते हैं। बहन की शादी व मां की देखभाल सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। एमएसपी का क्या होगा, यह सवाल अभी भी बना हुआ है। मेरे पिता जब भी आंदोलन के दौरान घर पर आते थे तो यही कहते थे कि देखना एक दिन सरकार सभी मांगों को मानेगी।
(जैसा समैण के दिवंगत किसान शमशेर सिंह के बेटे अमित कुमार ने बताया)
परिवार उजड़ा, तीन बेटियां हैं, भरोसा मिला पर नौकरी नहीं
मेरे पति अजय मोर (32) की आठ दिसंबर को कुंडली बॉर्डर पर मौत हो गई। मेरा, तीन बेटियां और मेरे सास-ससुर का सब कुछ उजड़ गया। बेटी पूर्वी और परी सात साल और वंशिका 5 साल की है। मुझे परिवार के भरण-पोषण की चिंता सता रही है। सिर्फ डेढ़ एकड़ जमीन है। शुरुआत में कुछ किसान नेता और राजनेता घर आए थे।
मदद का केवल आश्वासन ही मिला। अब प्रधानमंत्री ने कानून रद्द करने की घोषणा की है, लेकिन मृतक किसानों के परिवारों के लिए कोई घोषणा नहीं की। प्रधानमंत्री को आंदोलन में मारे गए किसानों को शहीद का दर्जा देते हुए परिवार के एक सदस्य को नौकरी देनी चाहिए।
(जैसा बरोदा के दिवंगत किसान अजय मोर की पत्नी भावना ने बताया)
बच्चे रोज अपने पिता को याद करते हैं, मैं कहां से लाऊं?
आंदोलन में भाग लेने गए मेरे पति अमरपाल की दिल्ली में 25 दिसंबर को मृत्यु हो गई। फोन सुनते ही आंखों के आगे अंधेरा छा गया। आंदोलन तो अब खत्म हो जाएगा। मेरी व दो बच्चों की जिंदगी तो 11 महीने पहले ही खत्म हो गई। 5 और 7 साल के दो बच्चे हैं। रात को नींद से जागकर पिता को पुकारते हैं।
मैं उन्हें कहां से लेकर आऊं? पति खेती कर गुजारा कर रहे थे। रहने के लिए एक ही कमरा है। अब बच्चों को पढ़ाना भी मुश्किल हो रहा है। क्योंकि कमाई का कोई जरिया नहीं है। न कोई कमाने वाला। बच्चों को छोड़कर कहीं काम पर भी नहीं जा सकती। सरकार मदद करे तो परिवार का गुजारा चल पाएगा।
(जैसा सेरधा के दिवंगत किसान अमरपाल की पत्नी कुसुम देवी ने बताया)
तस्वीरों में तारीख: दिल्ली की सीमा तक पहुंचने के बाद एक साल तक चला संघर्ष अंजाम तक पहुंचा