भोपाल-इंदौर में कमिश्नर सिस्टम से क्या बदलेगा …… पुलिस के पावर बढ़ जाएंगे, आम जनता को मिलेगा सीधा लाभ, नहीं लगाने पड़ेंगे चक्कर
क्या है कमिश्नर सिस्टम?
आजादी से पहले अंग्रेजों के दौर में कमिश्नर प्रणाली लागू थी। इसे आजादी के बाद भारतीय पुलिस ने अपनाया। इस वक्त यह व्यवस्था देश के 72 से अधिक महानगरों में लागू है। भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861 के भाग 4 के तहत जिला अधिकारी के पास पुलिस पर नियंत्रण करने के कुछ अधिकार होते हैं। इसमें दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को कानून और व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ शक्तियां देती है।
कमिश्नर का मुख्यालय बनाया जाता है। एडीजी स्तर के सीनियर आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाकर तैनात किया जाता है। शहर को कई जोन में विभाजित किया जाता है। हर जोन में डीसीपी की तैनाती होती है। डीसीपी अपने जोन में एसएसपी की तरह काम करता है, वो उस पूरे जोन के लिए जिम्मेदार होता है। सीओ की तरह एसीपी तैनात होते हैं ये 2 से 4 थानों को देखते हैं।
आम आदमी को इससे क्या लाभ?
मध्यप्रदेश के पूर्व डीजीपी दिनेश कुमार जुगरान बता रहे हैं कि इससे लोगों को दफ्तरों के चक्कर कम हो जाएंगे। अभी तक कई ऐसी अनुमतियां होती थीं जिनके लिए लोगों को पुलिस, राजस्व अधिकारियों के पास अलग-अलग जाना पड़ता था। पुलिस कमिश्नर सिस्टम से कई व्यवस्था एक जगह हो जाएंगी, जिससे लोगों को काफी राहत मिलेगी।
क्या पुलिस की अलग से कोर्ट होगा?
कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद धारा-151 और 107/16 के तहत पाबंद किए जाने के लिए एक पुलिस कोर्ट बनेगी। इसमें पुलिस के कानून-व्यवस्था संबंधित मिले अधिकारों को अनुपालन कराने के लिए निर्णय होगा। बाकी अन्य आपराधिक मामलों के लिए न्यायिक न्यायालय ही सुनवाई करेगी।
सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था से कैसे अलग है यह?
कमिश्नर सिस्टम मौजूदा सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था से कई मायनों में अलग है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम में CRPC के सारे अधिकार आईपीएस को मिल जाते हैं। इस स्थिति में कानून व्यवस्था से जुड़े कोई भी निर्णय पुलिस कमिश्नर तत्काल ले सकते हैं। सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में यह अधिकार कलेक्टर (DM) के पास होते हैं। यानी किसी भी फैसले जैसे- दंगे जैसी स्थिति में लाठीचार्ज या फायरिंग करने के लिए कलेक्टर या एसडीएम से अनुमति लेनी पड़ती है। सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में CRPC जिलाधिकारी को कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए कई शक्तियां प्रदान करता है।
कमिश्नरी व्यवस्था में पुलिस तुरंत कार्रवाई कर सकती है, क्योंकि इस व्यवस्था में जिले की बागडोर संभालने वाले आईएएस अफसर डीएम की जगह पावर कमिश्नर के पास चली जाती है। यानी धारा-144 लगाने, कर्फ्यू लगाने, 151 में गिरफ्तार करने, 107/16 में चालान करने जैसे कई अधिकार सीधे पुलिस के पास रहेंगे। ऐसी चीजों के लिए पुलिस अफसरों को बार-बार प्रशासनिक अधिकारियों का मुंह नहीं देखना होगा।
नए सिस्टम से क्या बदलेगा?
151 की कार्रवाई
पुरानी व्यवस्था: मजिस्ट्रेट अपने स्तर से कार्रवाई कर अधिकतर मामलों में तत्काल जमानत देते हैं।
नई व्यवस्था: मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस कमिश्नर को दिए गए अधिकार के तहत कार्रवाई होगी।
गुंडा एक्ट
पुरानी व्यवस्था : ऐसे मामलों में लंबी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है।
नई व्यवस्था : इस तरह के मामलों को निपटाने में तेजी आएगी।
107-116 की कार्रवाई
पुरानी व्यवस्था : यह सिर्फ रस्म अदायगी बनकर रह गई थी। इसके तहत पाबंद किए गए लोग यदि दूसरी घटना में शामिल होते थे, तो कोई कार्रवाई नहीं होती थी।
नई व्यवस्था : अब पुलिस सीधे तौर पर निर्धारित पाबंदियों के अनुसार कार्रवाई करने के लिए अपने स्तर से ही निर्णय ले सकेगी। कार्रवाई के लिए जिलाधिकारी के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
कमिश्नर प्रणाली लागू होने पर पुलिस के नए पदनाम क्या होंगे?
- पुलिस आयुक्त या कमिश्नर- सीपी
- संयुक्त पुलिस आयुक्त या जॉइंट कमिश्नर-जेसीपी
- डिप्टी कमिश्नर- डीसीपी
- सहायक आयुक्त- एसीपी
- पुलिस इंस्पेक्टर- पीआई
- सब इंस्पेक्टर -एसआई
क्या चेक ऐंड बैलेंस पर असर पड़ेगा?
पुलिस पर सबसे अधिक सवाल अपने अधिकारों के दुरुपयोग को लेकर उठते हैं। कमिश्नर सिस्टम को हाशिए पर डालने के लिए आईएएस लॉबी भी कमोबेश यही तर्क देती है। पुलिस से कोई शिकायत हो तो व्यक्ति डीएम के पास जाता है। कमिश्नर सिस्टम से इस ‘चेक ऐंड बैलेंस’ पर असर पड़ेगा। हालांकि, कमिश्नर सिस्टम के समर्थकों का तर्क है कि बहुत बार प्रक्रियात्मक देरी के कारण पुलिस प्रभावी कदम नहीं उठा पाती, क्योंकि उसके पास मजिस्ट्रियल पावर नहीं होते।
कौन बनेगा पुलिस कमिश्नर?
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक पुलिस कमिश्नर सिस्टम के पिरामिड में डीजी, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, एडीजी स्तर के अधिकारी को पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है। उसके नीचे एडीजी या आईजी स्तर के दो जॉइंट पुलिस कमिश्नर होंगे। पिरामिड में एडिशनल पुलिस कमिश्नर होंगे, जिसकी जिम्मेदारी आईजी या डीआईजी स्तर अफसरों को मिलेगी। इसी तरह डिप्टी पुलिस कमिश्नर डीआईजी या एसपी स्तर के होंगे। जूनियर आईपीएस या वरिष्ठ एसपीएस अधिकारियों को असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकेगा।
पुलिस कमिश्नर को मिलते हैं मजिस्ट्रेट के पावर: भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के अंतर्गत जिलाधिकारी यानी डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस पर नियंत्रण के अधिकार भी होते हैं। इस पद पर IAS अधिकारी बैठते हैं, लेकिन पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो जाने के बाद ये अधिकार पुलिस कमिश्नर को मिल जाते हैं, जो एक IPS होता है। जिले की बागडोर संभालने वाले डीएम के बहुत से अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास चले जाते हैं।
पुलिस कमिश्नर को ज्यूडिशियल पावर: पुलिस कमिश्नर सिस्टम में पुलिस कमिश्नर सर्वोच्च पद होता है। पुलिस कमिश्नर को ज्यूडिशियल पावर भी होते हैं। CRPC के तहत कई अधिकार इस पद को मजबूत बनाते हैं। इस प्रणाली में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस ही मजिस्ट्रेट पावर का इस्तेमाल करती है।
बेहतर छवि वाले अधिकारी हों नियुक्त
पहले भी सिस्टम ठीक करने के नाम पर एसएसपी और डीआईजी बना दिए, इससे कोई फायदा नहीं हुआ। जब तक पुलिस को मजिस्ट्रियल पावर नहीं मिलेंगे, पुलिसिंग कैसे होगी? जब पावर मिलेंगे तो जवाबदेही तय होगी। आम लोगों को इससे फायदा मिलेगा। बेहतर छवि वाले अधिकारियों की तैनाती की जाए, जिससे सिस्टम बेहतर काम कर सके।
– अरुण गुर्टू, रिटायर्ड डीजी
प्रतिक्रिया देना जल्दबाजी होगी फिलहाल मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की है। इस पर अभी कोई प्रतिक्रिया देना जल्दबाजी होगी। आईसीपी केसरी, अध्यक्ष, मध्यप्रदेश आईएएस एसोसिएशन
पुलिस-नेता व अपराधियों का बनेगा गठजोड़
बिहार में कुछ समय पहले ही पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया गया है। चूंकि यह एक ट्रेंड बन गया है, इसलिए मप्र के मुख्यमंत्री भी हवा के विरुद्ध नहीं चल सकते। पुलिस सुधार के नाम पर कमिश्नर सिस्टम को लागू करने का अपराध से कोई संबध नहीं है। यदि ऐसा होता तो बेंगलुरू और दिल्ली में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद अपराधों में कमी आती। दोनों शहरों में महिला अपराध बढ़े हैं। नए सिस्टम से पुलिस-नेता व अपराधियों का गठजोड़ बनने से इनकार नहीं किया जा सकता। मुंबई का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा- मुंबई में अग्रेजों के जमाने से पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू है। हाल ही में गृहमंत्री और पुलिस का बार से उगाही का गठजोड़ उजागर हुआ है। केवल एक एजेंसी को पूरे अधिकार नहीं दिए जाने चाहिए। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) कानून व्यवस्था से जोड़े रखना जरूरी है।
– केएस शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश