MP के पहले पुलिस म्यूजियम से रिपोर्ट …… दिखेगी पुलिस की वीरता की झलक, हथियार-वर्दी से लेकर पुराने दस्तावेज रखे; यहां कभी सेनानियों का कब्जा था

बैतूल में मध्य प्रदेश का पहला पुलिस म्यूजियम बनकर तैयार है। यहां पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों से लेकर विभाग के उपयोग में आने वाले तमाम पुरानी वस्तुओं को संग्रहित कर रखा गया है, जो पुलिस के रोजमर्रा के इस्तेमाल में आते हैं। खास है कि इस संग्रहालय में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को समर्पित एक गैलरी का निर्माण भी कराया गया है। इसमें जिले के सेनानियों की तस्वीरें और स्वतंत्रता संग्राम के समय के पुलिस दस्तावेज प्रदर्शित किए जाएंगे।

बैतूल से 22 किमी दूर रानीपुर गांव स्वतंत्रता आंदोलन के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण स्थल है। यहां बैतूल की एसपी सिमाला प्रसाद की पहल के बाद म्यूजियम तैयार किया गया है। यह एक ऐतिहासिक थाना है, जिस पर एक समय स्वतंत्रता सेनानियों का डेरा था। उनके निशान आज भी इस थाने के गेट के दो खंभों पर देखे जा सकते हैं।

इसलिए खास है थाना
बैतूल से 22 किमी दूर रानीपुर में यह थाना अंग्रेजी शासनकाल 1913 में बनाया गया था। सात कमरों वाले इस थाने में सौ साल से भी ज्यादा वर्षों तक थाना चला था। 2016 में यहां थाने की नई बिल्डिंग बनने के बाद पुराने थाने को खाली कर इसमें जब्त माल रखा जाने लगा। जानकारों के अनुसार, स्वतंत्रता सेनानी विष्णु सिंह गोंड ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय थाने पर हमला कर हथियार लूट लिए थे। साथियों के साथ हमला करने वाले सरदार विष्णु सिंह ने थाने में आग भी लगा दी थी। इसके दो लकड़ी के खम्बों पर आज भी कुल्हाड़ियों के निशान बने हुए हैं। जब सेनानी विष्णु सिंह यहां हमलावर हुए थे।

थाने की इसी ऐतिहासिकता की वजह से एसपी ने इस बिल्डिंग को म्यूजियम की शक्ल देने का विचार बनाया। जिसे दो महीने की कड़ी मेहनत के बाद म्यूजियम में ढाल दिया गया है।

म्यूजियम में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों क फोटो लगाई गई हैं। इसमें पुराने समय का लॉकअप भी है।
म्यूजियम में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों क फोटो लगाई गई हैं। इसमें पुराने समय का लॉकअप भी है।

इस म्यूजियम में खास
इस पुलिस म्यूजियम में पुलिस साहित्य, पुराने हथियार, पुलिस के काम करने के तरीके और पुलिस के पुराने रिकॉर्ड रखे गए हैं। म्यूजियम को बड़ा रूप देने के लिए इतिहासकारों, साहित्यकारों, चित्रकारों की मदद ली गई है। यहां अदालत और पुलिस के मालखानों से पुराने हथियार और पुलिस उपयोग में आने वाली पुरानी वस्तुएं प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं।

म्यूजियम में आठ गैलरियां तैयार की गई हैं। इसमें पहली गैलरी में जिले के उन पुलिसकर्मियों की तस्वीर और उनके विवरण प्रदर्शित किए गए हैं, जो ड्यूटी के दौरान कर्तव्य पर शहीद हो गए। इसे वॉरियर्स लेन नाम दिया गया है। गैलरी नम्बर दो में रानीपुर थाने के इतिहास को साझा किया गया है। तीसरी गैलरी सेंट्रल हाल में है, जहां पुलिस कर्मियों के दैनंदिनी की तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं। दर्शकों के लिहाज से चौथी गैलरी महत्वपूर्ण है, जहां पुराने हथियारों और आर्मर को प्रदर्शित किया गया है। जबकि, पांचवीं गैलरी में बुक्स और रिकॉर्ड्स रखे गए हैं, जिनमे पुलिस के पुराने दस्तावेजों के रखरखाव हैं। चौथिया कांड जैसी घटनाओं,पारदियों से संबंधित अभिलेख रखे गए हैं।

म्यूजियम में रखे गए अफसरों के रैंक वाले पुतले।
म्यूजियम में रखे गए अफसरों के रैंक वाले पुतले।

छठवीं गैलरी को तैयार करने में खास मेहनत की गई है। यहां प्लास्टिक पुतलों में उन सभी अधिकारियों, कर्मचारियो के रैंक, कैडर को दर्शाया गया है। पुलिस में डीजीपी से लेकर सिपाही के पुतलों को हूबहू यूनिफार्म पहनाई गई है। सातवीं गैलरी में पुलिस के पुराने उपकरण प्रदर्शित किए गए हैं, जिनमें पुलिस बैंड से लेकर टेलीप्रिंटर, टाइप राइटर, कैमरे, बर्तन, खेल सामग्री आदि शामिल हैं। जबकि, थाने के बंदी गृह को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गैलरी नम्बर आठ बनाया गया है। इसमें 20 से ज्यादा सेनानियों की तस्वीरें संजोई गई हैं।

ऐतिहासिक खंभों को कांच से सजाया
थाने के प्रवेश द्वार पर लगे लकड़ी के खंभों को कांच में बंद कर संरक्षित किया गया है। यही खंभे इस थाने को म्यूजियम की शक्ल में ढालने का आधार बने हैं। दोनों खंभों पर आज भी उन कुल्हाड़ियों के निशान देखे जा सकते हैं। जो इस थाने पर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान किए गए हमले में सेनानी विष्णु सिंह ने कुल्हाड़ी से काटने की कोशिश की थी। इतिहास के जानकार कमलेश सिंह बताते हैं कि थाना 1900 में बना था। तब यहां पहली एफआईआर हुई थी।

ये बिल्डिंग 1913 में बनी थी। यह कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रही है। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहां सेनानियों की क्रांति के निशान आज भी लकड़ी के पिलर पर मौजूद हैं। थाने के प्रभारी डीएसपी अजय गुप्ता के मुताबिक 1942 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई घटना को रिस्टोर करने का प्रयास है।

थाना सुनाएगा कहानी
थाने की पूरी कहानी खुद थाना ही सुनाएगा। इसके लिए 6 मिनट की एक मूवी भी तैयार की जा रही है, जिसका प्रदर्शन म्यूजियम के शुभारंभ के अवसर पर किया जाएगा। मूवी को तैयार करने में मुम्बई के डाक्यूमेंट्री विशेषज्ञों की मदद ली गई है।

इस मूवी में थाना खुद ही अपने आगाज से लेकर अंजाम यानी सिलसिलेवार उन घटनाक्रमों की जानकारी देगा। जब जब यहां सेनानियों की गतिविधि देखी गई थी। इस मूवी में 1930 के जंगल सत्याग्रह, महात्मा गांधी की बैतूल यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन, एमपी का पुनर्गठन, यहां की गई महत्वपूर्ण FIR और अन्य ऐतिहासिक संदर्भों को संजोया गया है।

म्यूजियम में ढालने का ऐसे आया विचार
इस थाने को म्यूजियम बनाने का विचार इस भवन की बनावट और यहां रखे दस्तावेजों की वजह से आया। इसे म्यूजियम में ढालने को लेकर पूरी पड़ताल से लेकर हर व्यवस्था को करीब से व्यवस्थित करने में एसपी सिमाला प्रसाद की खास भूमिका रही। उन्होंने इसे म्यूजियम बनाने की शुरुआत की।

वे बताती हैं कि इस थाने का ऐतिहासिक महत्व है। इस जिले में पुलिस का डॉक्यूमेंटेशन अच्छा है। कई अंग्रेज अफसरों के नोट्स, टीप कई रोचक घटनाएं हैं। जो लोगों को जानने में अच्छा लगेगा। सबसे खास यह है कि पुलिस बल ने अपने शुरुआती दिनों से अब तक जिन उपकरणों और संसाधनों की मदद से पुलिसिंग की है। उसे इस म्यूजियम में दर्शाया गया है।

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