दक्षिण अफ्रीका नहीं मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के हथनोरा में हुई थी मानव की उत्पत्ति
1982 में पांच दिसंबर को भूविज्ञानी डा. अरुण सोनकिया ने खोजा था 70 हजार साल पुरानी मानव खोपड़ी का जीवाश्म ।
सीहोर। जब विश्व भर में छात्रों को मानव सभ्यता के इतिहास के बारे में पढ़ाया जाता है तो सबसे पहले जिक्र आता है सीहोर जिले के हथनोरा का। यह नर्मदा नदी के किनारे बसा एक गांव है। यह गांव पांच दिसंबर 1982 को तब विश्व पटल पर आ गया था, जब पता चला था कि मानव की उत्पत्ति यहीं हुई है। इस प्राचीन मानव को विज्ञानियों ने ‘नर्मदा मानव’ नाम दिया। इसके बाद अब तक दुनिया में कहीं भी इससे पुराने मानव जीवाश्म नहीं मिले हैं।
इस खोज के पूर्व माना जाता था कि आदि मानव की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीका के तंजानिया अंतर्गत ओल्डवाईगाज नामक स्थान में हुई थी। जिओलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआइ) के तत्कालीन भूविज्ञानी डा. अरुण सोनकिया ने नर्मदा घाटी में हाथी, घोड़े, दरियाई घोड़ा, जंगली भैंसों के जीवाश्म के साथ ही 70 हजार साल पुराने मानव कपाल के अवशेष खोजे थे।
इसके अलावा हथनोरा के सामने के धांसी और सूरजकुंड में नर्मदा के उत्तरी तट पर प्राचीनतम विलुप्त हाथी (स्टेगोडान) के दोनों दांत और ऊपरी जबड़े का जीवाश्म भी उन्होंने खोजा था। नर्मदा किनारे से शुरू हुई मानव विकास की कहानी इस खोज के बाद भूविज्ञान की किताबों में भी नर्मदा किनारे मानव विकास की कहानी पढ़ाई जाती है। आदि मानव के चीन से आगे जाने के साक्ष्य मिलते हैं। डा. सोनकिया की इस सफलता और अनुभव पर उनके बेटे सिद्घार्थ और पुत्री श्वेता ‘सील आफ सोल’ नामक पुस्तक लिख रहे हैं।
डा. शशिकांत भट्ट ने भी किया जिक्र
डा. सोनकिया की इस खोज का जिक्र भूविज्ञानी और ख्यात लेखक डा. शशिकांत भट्ट की पुस्तक ‘नर्मदा वैली : कल्चर एंड सिविलाइजेशन’ में भी किया गया है। इस पुस्तक में नर्मदा घाटी की सभ्यता के बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यहां डायनासोर के अंडों के जीवाश्म भी पाए गए, तो दक्षिण एशिया में सबसे विशाल भैंस के जीवाश्म भी मिले हैं। इतिहासकार और साहित्यकार पंकज सुबीर ने भी बताया है कि यह सीहोर जिले के साथ पूरे भारत के लिए महत्वपूर्ण खोज है।
हथनोरा के पास नर्मदा घाटी में मिले मानव जीवाश्म को यह माना गया कि यह इरेक्टस का कोई जीवाश्म होगा और यह होमो इरेक्टस नर्मदेंसिस के जीव वैज्ञानिक नाम से प्रसिद्ध भी हुआ। डा. सोनकिया की खोज के बाद 1988 में अलग-अलग अध्ययन शुरू हुए। पहला अध्ययन फ्रांस के मार्सिली स्थित लेबोरेट्री आफ ह्यूमन एन्थ्रोपोलाजी में और दूसरा अमेरिका के इथका स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय में हुआ। इस पर अब तक कई तरह के रिसर्च किए जा रहे हैं।