भास्कर रिपोर्टर को रामनाथ गोयनका अवॉर्ड …… राजस्थान के आदिवासी इलाकों में जानवरों की तरह बेचे जा रहे थे बच्चे, आनंद चौधरी ने किया था खुलासा

राजस्थान के आदिवासी इलाकों में बच्चों की खरीदी-बिक्री का खुलासा करने वाले दैनिक भास्कर के रिपोर्टर आनंद चौधरी को प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवार्ड देने की घोषणा हुई है। यहां के चौखटियों पर 3 से 5 हजार रुपए में बच्चे खरीदे-बेचे जा रहे थे। आनंद चौधरी ने अपनी रिपोर्ट से इस काले कारोबार को उजागर किया। आनंद दैनिक भास्कर जयपुर में विशेष संवाददाता के तौर पर काम करते हैं। उन्हें मार्च में रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा।

यह प्रतिष्ठित अवॉर्ड रामनाथ गोयनका मेमोरियल फाउंडेशन की ओर से दिया जाएगा।
यह प्रतिष्ठित अवॉर्ड रामनाथ गोयनका मेमोरियल फाउंडेशन की ओर से दिया जाएगा।

भास्कर ने ऐसे किया था मामले का खुलासा
इस इलाके में कई दलाल थे, जो हर गांव से गरीब आदिवासियों से बच्चों को खरीदकर गुजरात के बीटी कॉटन के खेतों और कारखानों में भेज रहे थे। इन चौखटियों पर 3 से 5 हजार रुपए में बच्चे बिकते दिखे। भास्कर ने इस पूरी खरीद फरोख्त को कैमरे में कैद किया। इसके खुलासे पर लगातार सीरीज चलाई। इसमें तस्करों और पुलिस के गठजोड़ को भी सामने लाया गया।

44 बच्चे खरीदकर पुलिस को सौंपे, पुलिस की मिलीभगत भी उजागर
भास्कर ने 21 दिसंबर 2019 से लगातार आदिवासी इलाकों में बच्चों की तस्करी के अलग-अलग खुलासे किए। भास्कर ने 44 बच्चे खरीदकर पुलिस को सौंपे। गुजरात से सटे 3 जिलों के 127 गांवों में पड़ताल की। 200 बच्चों को मानव तस्करों से छुड़वाया और 30 दलालों को कैमरे में कैद किया। पड़ताल में सामने आया कि गुजरात नंबर की 500 से ज्यादा जीपें आदिवासी इलाकों में बच्चों को ले जाने में लगी हुई थीं। हर गांव में बच्चों की तस्करी के लिए दलाल काम कर रहे थे।

गरीबी का आलम ऐसा कि 5-5 हजार रुपए में मां बाप ने अपने अबोध लड़के-लड़कियों को साल भर के लिए सौंप दिया। उनसे फिर जो चाहे वह करवा सकते थे। मानव तस्करों की पुलिस से मिलीभगत भी सामने आई। भास्कर की टीम ने बच्चे पुलिस को सौंपे तो कोटड़ा थानाधिकारी तस्करों पर कार्रवाई की जगह टरकाने लगे।

बच्चों के कोमल हाथ ही उनकी तस्करी का कारण
भास्कर पड़ताल में यह सामने आया कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों से तस्कर मामूली रकम देकर बच्चों को जीपों में भरकर गुजरात भेज रहे थे। बीटी कॉटन के पौधों पर काम करने में बच्चों के कोमल हाथ सही रहते हैं।इसलिए इन खेतों में काम करने वाले ज्यादातर बच्चों को ही ले जाते हैं। बच्चों के कोमल हाथ ही उनकी तस्करी का कारण बन गए थे।

गुजरात गए बच्चे अपाहिज होकर लौटे
आदिवासी इलाकों से तस्करी कर गुजरात ले जाए गए बहुत से बच्चे अपाहिज होकर लौटे। भास्कर ने आदिवासी इलाकों में ऐसे सैकड़ों बच्चे देखे जो काम पर गए थे, लेकिन जब लौटे तो किसी के हाथ-पैर कटे थे तो किसी के शरीर का कोई न कोई अंग गायब था। इन बच्चों को बेहद खतरनाक हालात में बिना सुरक्षा फैक्ट्रियों में काम करवाया गया। कई बच्चे झुलस गए तो कोई मशीन से अपने हाथ-पैर गंवा बैठे।

पुलिस ने एंटी चाइल्ड ट्रैफिकिंग सेल बनाई
भास्कर के खुलासे के बाद सरकार ने आदिवासी इलाकों में बच्चों की तस्करी रोकने के लिए अलग से सेल बनाई। इस इलाके में अभियान चलाकर तस्करों को पकड़ा गया।

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