दुनिया के सबसे बड़े जैन मंदिर कुंडलपुर से रिपोर्ट …. बड़े बाबा पर तलवार मारते ही ‘पहरेदार’ मधुमक्खियों ने औरंगजेब को सेना सहित खदेड़ा; हमले का निशान आज भी मौजूद
कुंडलपुर में होने जा रहे गजरथ महोत्सव की तारीख अभी तय नहीं हुई है, लेकिन भक्तों का आना शुरू हो गया है। बड़े बाबा की ऐतिहासिक प्रतिमा के साथ ही यहां की मधुमक्खियों का भी अपना एक इतिहास है। कहते हैं कि औरंगजेब यहां बड़े बाबा की प्रतिमा को क्षति पहुंचाने आया था, जैसे ही उसने बाबा की प्रतिमा पर तलवार मारी। यहां लगी मधुमक्खियों ने उस पर हमला बोल दिया। आखिरकार उसे सेना सहित यहां से भागना पड़ा। कुंडलपुर की खास बात यह है कि 5 अरब की लागत से यहां बन रहा नागर शैली का मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर होगा।
भागने पर मजबूर हो गया था औरंगजेब
आयोजन के मीडिया प्रभारी राजेंद्र जैन अटल ने बताया कि इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण है कि औरंगजेब बड़े बाबा की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाने के लिए कुंडलपुर पहुंचा था। जैसे ही उसने बड़े बाबा की प्रतिमा के पैर में तलवार से हमला किया उसमें से दूध की धार निकली और अचानक ही मधुमक्खियों ने औरंगजेब और उसकी पूरी सेना पर हमला कर दिया।
मधुमक्खियों का हमला इतना ताकतवर था कि औरंगजेब को वहां से उल्टे पैर भागना पड़ा था। पहाड़ी पर बने बड़े बाबा के पुराने मंदिर की जगह अब एक नया मंदिर आकार ले रहा है। इसलिए वहां तो मधुमक्खियां नहीं बची है, लेकिन पहाड़ी के नीचे मंदिरों में मधुमक्खियों के छत्ते देखे जा सकते हैं। प्रतिमा के अंगूठे में चोट का निशान और मधुमक्खियों के छत्ते आज भी इस घटनाक्रम का प्रमाण दे रहे हैं।
मधुमक्खियां किसी को नहीं पहुंचाती नुकसान
वैसे तो जरा सी आहट में ही मधुमक्खियां आक्रमक हो जाती है और लोगों को चोटिल कर देती हैं, लेकिन कुंडलपुर में हजारों भक्तों की भीड़ होने के बाद भी ये मधुमक्कियां किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाती। इन्हें देख कर ऐसा ही लगता है जैसे आज भी ये मधुमक्खियां मंदिर की सुरक्षा के लिए तैनात है।
इसलिए है खास
दमोह जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर पटेरा ब्लॉक में आने वाले कुंडलपुर में प्रसिद्ध जैन धार्मिक स्थल है। यहां मुख्य मंदिर बड़े बाबा का है। जिनकी प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है, जो 15 फीट की है। 5 अरब की लागत से बन रहा नागर शैली का ये मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर होगा। इसके निर्माण में 12 लाख घन मीटर पत्थर का उपयोग किया जाएगा। अभी तक साढ़े 3 सौ करोड़ रुपए खर्च हो चुका है। मंदिर के शिखर की ऊंचाई 189 फीट तय की गई है। इस मंदिर की खोज विक्रम संवत् 1757 में भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति द्वारा की गई थी। तब यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में था। बुंदेलखंड के शासक छत्रसाल की मदद से मंदिर का पुनः निर्माण कराया गया था।