मध्य प्रदेश सरका…. सख्त कानून …. पिछले पांच साल में मप्र में दंगों के मामले 44 फीसदी कम हो गए, दो साल में सबसे ज्यादा घटनाएं ग्वालियर में

मध्य प्रदेश सरकार ने हाल में प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एंड रिकवरी ऑफ डैमेज बिल 2021 ध्वनि मत से पारित किया। इस बिल के तहत दंगों या सार्वजनिक विरोध के दौरान क्षतिग्रस्त संपत्ति की लागत की वसूली अगर 15 दिन के भीतर नहीं की जाती है, तो प्रस्तावित कानून न्यायधिकरणों को नुकसान की लागत की दोगुनी राशि ब्याज सहित वसूल करने का अधिकार देगा।

जब भास्कर ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2015 से लेकर 2020 तक दंगों के आंकड़ो का आकलन किया तो पता चला कि पांच सालों में रॉयटिंग (दंगों) के मामलों में 43.75 फीसदी की कमी आई है। पिछले दो साल में सबसे ज्यादा दंगों के 133 मामले ग्वालियर में दर्ज किए गए हैं। इन छह वर्षों में एमपी में कुल 9308 दंगों के मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। हर राज्य की ‘दंगे’ की अपनी परिभाषा होती है, लेकिन यह मोटे तौर पर सार्वजनिक स्थान पर लड़ाई आदि कार्य किए जाने वाला अपराध है जिसका उद्देश्य लोक शांति में विघ्न पैदा करना होता है।

एनसीआरबी के आंकड़ों से जानिए… कब बढ़े और कब कम हुए दंगों के केस

एक नजर... पिछले छह साल में मध्यप्रदेश में दर्ज दंगों के केस
एक नजर… पिछले छह साल में मध्यप्रदेश में दर्ज दंगों के केस
दो साल में सबसे ज्यादा और सबसे कम दंगों वाले जिले
दो साल में सबसे ज्यादा और सबसे कम दंगों वाले जिले
के ज्यादातर मामले इन वजहों से
के ज्यादातर मामले इन वजहों से

9308 6 साल में कुल दंगों के मुकदमे मध्यप्रदेश में दर्ज

मध्यप्रदेश का कानून यूपी से भी सख्त...
उत्तर प्रदेश के विपरीत, मध्य प्रदेश बिल के तहत, जिलाधिकारियों और राजस्व अधिकारियों को वसूली शुरू करने और दावे की अंतिम राशि पर निर्णय लेने की शक्ति दी गई है। इस बिल के तहत एक पीड़ित व्यक्ति 30 दिन के भीतर एफआईआर के बिना मुआवजे के लिए दावा न्यायाधिकरण में कर सकता है। यूपी के दोनों बिलों के तहत, एक व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज होने और उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) से रिपोर्ट मिलने के बाद ही दावा न्यायाधिकरण से संपर्क कर सकता है। नुकसान के दावे पर अंतिम निर्णय भी राज्य सरकार में निहित है।

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