ये UP है भइया, यहां राजनीति की खेती होती है ….
उन पति-पत्नी, बाप-बेटी और देवरानी-जेठानी की कहानियां; जो अलग-अलग पार्टियों में नेतागिरी चमका रहे….
एक बाप-बेटी हैं। रोज सुबह उठकर नेताओं वाले कपड़े पहनते हैं। फिर क्षेत्र में निकल जाते हैं। बाप लोगों को बीजेपी के खिलाफ भड़काता है, तो बेटी सपा के खिलाफ लोगों के कान भरती है। ऐसे ही एक पति-पत्नी हैं। चाय की गर्म चुस्कियां लेते हुए जोशीले भाषण तैयार कराते हैं। बाहर निकलकर अलग-अलग पार्टियों के लिए भाषणबाजी करते हैं। मतलब हद है। एक और जुड़वा भाइयों का किस्सा भी ऐसा ही है, नाक-कान, भौहें, नैन-नक्श सब एक से हैं। लेकिन पार्टियां अलग-अलग।
आज हम आपको 20 ऐसे नेताओं से मिलवाने वाले हैं, जिन्होंने राजनीति जैसे बैनामा करा ली है। अपने मन से फसलें बोते-काटते रहते हैं। जनता गई तेल लेने-
बाप सपा में, बेटी भाजपा में
साल 2007.. मायावती दलितों की सबसे बड़ी नेता और स्वामी प्रसाद मौर्य पिछड़ों के। माया ने मौर्य को मंत्री बनाया। पार्टी में नंबर 2 या नंबर 3 हैसियत बना ली। 2012 के चुनाव तक सब मस्त रहा। मंत्री जी मस्त रहे। रिजल्ट आया तो हाथी पस्त हो गया था। अब मंत्रीजी को अपनी कुर्सी याद आने लगी। सोते तो सपने में लोग आकर मंत्रीजी-मंत्रीजी कहते।
उन्होंने तय कर लिया। पार्टी की विचारधारा, बहुजन समाज की बातें तो कुर्सी के लिए थीं। नेताजी ने जुगाड़ लगाना शुरू किया। लेकिन UP की सपा सरकार खुद ही फूले नहीं समा रही थी। इसलिए तब सपा में कोई जुगाड़ बैठा नहीं। मौर्याजी ने टारगेट सेट किया कि 2017 तक कुर्सी पानी ही है, कुछ भी हो जाए। इसलिए 2017 में उन्हें BJP की विचारधारा प्रदेश को आगे ले जाने के लिए सबसे मुफीद लगी।
हुआ भी वही। प्रदेश आगे बढ़ा। स्वामी प्रसाद मौर्य कैबिनेट मिनिस्टर। बेटी संघमित्रा को 2019 में लोकसभा का टिकट। बेटी जीत भी गई। अब आया साल 2022, इस बार मौर्य ने 2007 वाली गलती नहीं की। उन्होंने समय से पहले ही हवा का रुख समझ लिया। BJP गद्दी से उतारे, इससे पहले ही एक लेटर जारी किया-
दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के कारण मैं उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देता हूं।
तब संघमित्रा के मोबाइल की घंटियां बजी जा रही थीं। वही दो सवाल। पहला, संघमित्रा आप बीजेपी कब छोड़ रही हैं? दूसरा, पापा के साथ सपा जॉइन नहीं करेंगी? उन्हें जवाब देने में 8 दिन लगे। उन्होंने 22 जनवरी को कहा, “पीएम मोदी मुझे बेटी की तरह मानते हैं।” मुमकिन है उन्होंने 8 दिनों UP के उन नेताओं की कहानियां देख-पढ़ ली हों, जो एक परिवार में रहकर दूसरी-दूसरी पार्टियों की नेतागिरी करते हैं।
पति कांग्रेस में, पत्नी BJP में
अदिति सिंह, वही जिनके बारे में चर्चा उड़ी थी कि राहुल गांधी इनसे शादी कर सकते हैं। रायबरेली की हैं। जब 2017 में यूपी में BJP का तूफान उड़ा और कांग्रेस साफ हो गई, तब भी अदिति ने कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली सदर सीट निकाल ली थी। इनके पापा अखिलेश सिंह खांटी कांग्रेसी थे। उन्होंने पंजाब के कांग्रेस विधायक अंगद सैनी के साथ अदिति का रिश्ता तय कर दिया था। शादी भी करा दी।
अखिलेश सिंह 20 अगस्त 2019 को चल बसे। आदिति ने हवा का रुख भांपा और 25 नवंबर 2021 को BJP का दामन थाम लिया। उधर पतिदेव अब भी कांग्रेस के साथ बने हुए हैं। संयोग से चुनाव भी उत्तर प्रदेश और पंजाब में साथ-साथ है। इसलिए दोनों सुबह उठकर अपने-अपने क्षेत्र में जाते हैं। जोशीले भाषण देते हैं। एक BJP के लिए दूसरे कांग्रेस के लिए। दोनों के बयान खूब जोशीले होते हैं।
सोमवार को ही अदिति सिंह ने कहा, “कांग्रेस चापलूसी से चलती है। मैं चाहती हूं कि प्रियंका आएं और रायबरेली में चुनाव लड़ें।” पंजाब में अंगद सैनी ने आज ही कहा, “पंजाब में कांग्रेस ही सबसे बेहतर विकल्प है। मुझे पार्टी पर पूरा भरोसा है।”
शक्लें एक सी, लेकिन पार्टियां अलग-अलग
अगर आप आज सहारनपुर चले जाएं। आपको हर चाय-चुक्कड़ की दुकान पर दो नाम सुनाई देंगे। इमरान मसूद और नोमान मसूद। दोनों 8 बार सांसद रह चुके काजी रशीद मसूद के भतीजे हैं। काजी खांटी कांग्रेसी थे। लेकिन ये दोनों कांग्रेस में नहीं हैं। इमरान का रंग-रूप तो नोमान से मिलता है। लेकिन वो 2-4 मिनट नोमान से बड़े हैं। इसलिए उनका अनुभव भी 5 मिनट बड़ा है।
इमरान ने इस बार की हवाओं के बहाव का कुछ अंदाजा लगाया है। उन्होंने पिछले हफ्ते सपा जॉइन कर ली है। इधर, नोमान को भरोसा है उनकी नाव को किनारे तक बसपा ही ले जाएगी। इसलिए ये दोनों भाई रोज सफेद कुर्ता-पैजामा पहनकर लोगों के बीच बैठते हैं। चुनाव जीतने का तिकड़म लगाते हैं। लेकिन दो अलग-अलग पार्टियों के सहारे।
भाई सपा में, बहन BJP में
मुलायम सिंह यादव के भाई हैं, अभयराम यादव। इनके बेटे हैं धर्मेंद्र यादव और बेटी संध्या यादव। दोनों राजनीति में हैं। धर्मेंद्र बदायूं से 3 बार सांसद रहे हैं सपा के टिकट पर। अब भी सपा में ही हैं। इस चुनाव में लोगों से सपा के लिए वोट मांग रहे हैं। लेकिन उनकी बड़ी बहन लोगों से सपा को वोट न करने के लिए कह रही हैं। क्यों? पांच साल पहले जाना पड़ेगा।
जनवरी 2017 में मैनपुरी में बवाल मचा था। मुलायम की भतीजी संध्या के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था। 32 में से 23 जिला पंचायत सदस्यों ने उनके खिलाफ आवाज उठाई थी। ये सदस्य सपा के ही थे। खफा होकर संध्या ने BJP का हाथ थाम लिया। बाद में जब वो BJP के समर्थन से चुनाव लड़ने आ,ईं तो सपा कैंडिडेट ने उन्हें हरा दिया।
पिछले साल पंचायत चुनाव के वक्त संध्या ने बाकयदा BJP जॉइन कर ली। साथ में पति अनुजेश यादव को भी लेती गईं। अब धर्मेंद्र अलग राग अलापते हैं और उनकी बहन-जीजा दूसरा।
एक भाई बसपा में, दूसरा सपा में
पूर्वांचल के डॉन मुख्तार अंसारी को तो आप जानते ही हैं। इनके दो भाई हैं। दोनों खिलाड़ी हैं। पहले, अफजाल अंसारी बसपा में हैं। सांसद हैं। दूसरे, सिबगतुल्ला अंसारी ने समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली है। मोहम्मदाबाद में डेरा जमाए हैं। चुनाव लड़ना चाहते हैं। पहले दो बार विधायक रहे हैं। इस बार भी किसी हाल में विधायक बनने में लगे हैं। कोई पार्टी मिले। इससे फर्क नहीं पड़ता।
संयोग से मुख्तार अंसारी जेल में हैं। बाहर रहते तो किसका प्रचार करें ये चुनौती रहती। अच्छा ऑप्शन होता कि तीसरी पार्टी को जॉइन करके उसका प्रचार कर रहे होते।
बाप बसपा में, बेटा सपा में
अंबेडकरनगर वाले पांडेय परिवार को जानते हैं कि नहीं। पूरा पूर्वांचल में इनके शराब के ठेके हैं। बड़े व्यापारी लोग हैं। लेकिन इनकी एक और पहचान है। राकेश पांडेय, 2009 में बसपा से लोकसभा के सांसद बने थे। तब से मायावती के भरोसेमंद इंसान हैं। साल 2019 आते-आते राकेश के बेटे भी चुनाव लड़ने लायक हो गए थे। राकेश ने कहा और माया ने रितेश को टिकट दे दिया।
लेकिन रितेश एक ही चुनाव हारकर समझ गए कि पापा की राजनीति अब नहीं चलेगी। इसलिए इस बार के चुनाव आने से पहले सपा जॉइन कर ली। खुद अखिलेश यादव ने उन्हें लाल टोपी पहनाई थी। तब से बेटा साइकिल चला रहा है, लेकिन पापा अब भी हाथी पर बैठकर ही बाहर निकलते हैं। इनके एक भाई भी हैं, पवन पांडेय। पूरे फायरब्रांड नेता हैं। पहले शिवसेना में रहे हैं। अभी सही ठिकाने की तलाश में हैं।
बेटी BJP में, पापा सपा में
औरेया के विधूना से विनय शाक्य स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी माने जाते हैं। शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी। बाद में मायावती के भरोसेमंद बन गए। पहली दफा 2002 में बसपा की टिकट पर विधायक बने। जब 2007 में चुनाव हारे तो माया ने MLC बना दिया। लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य ने उन्हें समझाया कि अब फ्यूचर BJP का है। साल 2017 की मोदी लहर में वे भगवामय हो गए। अभी जब मौर्य ने सपा का दामन थामा तो विनय भी इधर आ गए। अब सपाई हो गए हैं।
विनय शाक्य ने बेटी रिया को पढ़ाया-लिखाया खूब था। विनय शाक्य की लहर में बह कर उसे भी पार्टी जॉइन कर दी थी। रिया को BJP ने विधूना से टिकट दे दिया। टिकट लेने के बाद वो तो पार्टी बदल नहीं सकतीं। 25 वर्षीय रिया शाक्य ने देहरादून के बोर्डिंग स्कूल से पढ़ाई की है। पुणे के सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी से डिजाइन की पढ़ाई की है। समझदार भी हैं। इसलिए पापा के सपा जॉइन करते ही गुस्से में वीडियो बनाकर डाल दिया था। बोलीं, “ये सब मेरे चाचा कर रहे हैं।”
सतरंगी आगरा का सुमन परिवार
आगरा के सुमन परिवार का ब्रज क्षेत्र की राजनीति में ऊंचा ओहदा रहा है। रामजीलाल सुमन मुलायम सिंह के साथ के नेता रहे हैं। केंद्रीय मंत्री और कई बार सांसद रहे हैं। पार्टी के पूर्व महासचिव भी रहे हैं। वे खांटी सपाई हैं। लेकिन उनके परिवार में भाजपाई और सपाई दोनों हैं।
उनके छोटे भाई दिवंगत नारायण सिंह सुमन बसपा सरकार में मंत्री थे। नारायण सुमन की बहु इति सिंह एत्मादपुर से भाजपा की ब्लाक प्रमुख हैं। नारायण सुमन के छोटे बेटे स्वदेश सुमन बसपाई हैं। वे बसपा से विधायक रह चुके हैं।
मथुरा का सिंह परिवार हर पार्टी में हाथ पैर
मथुरा के इस राजनीतिक खानदान की सियासत भी बदलाव की साक्षी रही है। कुंवर मानवेन्द्र सिंह कांग्रेसी थे। वे यहां से तीन बार सांसद रहे। एक बार तो उन्होंने चौधरी चरण सिंह की पत्नी और अजित सिंह की मां गायत्री देवी को भी हराया था। इनके छोटे भाई कुंवर नरेंद्र सिंह भी राजनीति में इनका साथ दिया करते थे। नरेंद्र सिंह मथुरा से ब्लॉक प्रमुख रहे हैं।
राजनीतिक चौसर की चाल देखिये कि अब उन्ही मानवेन्द्र सिंह के भाई स्वर्गीय अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का झंडा थामे हुए हैं। नरेंद्र सिंह 2017 का विधानसभा चुनाव व 2019 का चुनाव रालोद से लड़ चुके हैं। अभी रालोद में बने हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ कुंवर मानवेंद्र सिंह और उनके पुत्र ऋषिराज सिंह अब भाजपा में हैं।
दो कहानियां और हैं। पहले लगा कि इनको रहने देते हैं। लेकिन अब बात छिड़ी है तो उनके साथ नाइंसाफी क्यों। क्योंकि मामला यूपी का ही है।
देवरानी BJP में, जेठानी कांग्रेस चीफ
संजय गांधी के वक्त ही मेनका की गांधी से परिवार से अनबन बताई जाती है। जब संजय नहीं रहे, तो मेनका खुद और बेटे वरुण को BJP में ले गईं। फिलहाल मेनका सुल्तानपुर और वरुण पीलीभीत से सांसद हैं। सोनिया गांधी भी रायबरेली की सांसद हैं। तीनों की राजनीति यूपी में ही चलती है, पर अलग-अलग।
मां-बेटी में ही चल रही है लड़ाई
यूपी की अजीब कहानी है। मां-बेटी ही साथ नहीं। एक है अपना दल (कमेरावादी)। इसकी नेता कृष्णा पटेल। एक और पार्टी है अपना दल (सोनेलाल)। इसकी नेता अनुप्रिया पटेल हैं। दोनों लड़कर अपना दल नाम की पार्टी के दो फाड़ किए हैं।
असल में इसकी कहानी है। अपना दल का गठन सोनेलाल पटेल ने किया था। उनके निधन के बाद अनुप्रिया पटेल और उनकी मां कृष्णा पटेल के बीच ही सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ गई। अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने पल्लवी पटेल को अपनी जगह पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का फैसला किया था।
तब अनुप्रिया पटेल ने विरोध किया। इसके बाद अनुप्रिया ने खुद को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया था। इस पर उनकी मां ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। फिर अपना दल दो हिस्सों में बंट गई। एक की कमान अनुप्रिया पटेल ने अपने हाथों में ले ली, तो दूसरी की कमान उनकी मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल के हाथों में है।