जिसकी लाठी उसकी भैंस, आपने बना दिया …. यूपी में साफ-सुथरे के मुकाबले दागी नेताओं के जीतने की संभावना डेढ़ गुना अधिकआइए जानते हैं कैसे?

यूपी में साफ-सुथरे के मुकाबले दागी नेताओं के जीतने की संभावना डेढ़ गुना अधिक…आइए जानते हैं कैसे?

जिसकी लाठी उसकी भैंस, आपने बना दिया

नोट की खन-खन सुना के, वोट को गूंगा किया…

गुनगुनाइए, क्योंकि आप लखनऊ में हैं। किसी पुरानी फिल्म का ये गाना यूपी की राजनीति पर कितना सटीक बैठता है….ये यहां के नतीजे बताते हैं। 2004 से अब तक के यूपी चुनाव के नतीजे देखें तो साफ छवि वालों से अपराधियों के चुनाव जीतने की संभावना डेढ़ गुनी होती है। यूपी में जो जितना बड़ा दागी, वो उतना ही धनी और जिताऊ भी है। आइए, हम आपको बताते हैं यूपी के चुनाव में ये डराने वाले आंकड़े क्या कहते हैं ?

चुनावों में दागी नेताओं के जीतने की संभावना बेदाग नेताओं से ज्यादा है।
चुनावों में दागी नेताओं के जीतने की संभावना बेदाग नेताओं से ज्यादा है।

दागियों के जीतने की संभावना 18%, बेदाग की 11%

यूपी के चुनाव में दागियों के जीतने की संभावना बेदाग छवि वाले नेताओं से ज्यादा है। पिछले 18 सालों में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों के नतीजे यही बता रहे हैं। इस बीच यूपी में 21229 लोगों ने चुनाव लड़ा। इसमें से 3739 नेताओं ने बताया कि उनके ऊपर आपराधिक मुकदमे भी चल रहे हैं। फिर भी पार्टियों ने उन्हें टिकट दिया, क्योंकि उनके जीतने की संभावनाएं ज्यादा थी। 2004 से अब तक 18 फीसदी दागी नेताओं ने जीतकर इस संभावना पर मुहर भी लगाई है। वहीं, 17490 नेता बेदाग छवि वाले थे। फिर भी, इनमें से 1923 यानी करीब 11 फीसदी नेता ही अपनी बेदाग छवि के चलते चुनाव जीत पाए।

जो पैसे वाले हैं, वही जीतते हैं…ऐसा क्यों ?

दागी और बेदाग छवि के अलावा चुनाव में एक और चीज मायने रखती है। वो है पैसा, क्योंकि जो पैसे वाले हैं, वही जीतते हैं। पिछले 18 सालों में लोकसभा और विधानसभा के जितने भी चुनाव हुए, उनमें जीतने वाले उम्मीदवारों की औसत संपत्ति उन लोगों से कहीं ज्यादा थी जो चुनाव हार गए। इन्होंने चुनाव में खर्चा भी औरों से ज्यादा ज्यादा किया। इन सालों में 573 वो लोग सांसद या विधायक चुने गए जिनकी औसत संपत्ति साढ़े छह करोड़ से ज्यादा थी। जीत दर्ज कराने वाले बाकी प्रत्याशियों की संपत्ति भी साढ़े तीन करोड़ से लेकर पांच करोड़ रुपए तक थी। वहीं, हारने वाले प्रत्याशियों की बात की जाए तो उनकी औसत संपत्ति डेढ़ करोड़ या उससे कम ही थी।

जो दागी, वही ज्यादा जीते।
जो दागी, वही ज्यादा जीते।

जो गंभीर अपराधी, उन्हीं के पास ज्यादा पैसा

यूपी में जो नेता गंभीर मामलों में अपराधी या आरोपी हैं, पैसा भी उन्हीं के पास सबसे ज्यादा है। यह बात भी पिछले कई चुनावों में शामिल हुए प्रत्याशियों की पड़ताल में सामने आई है। 2004 से लेकर अब तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले 21229 प्रत्याशियों की औसत संपत्ति 1.46 करोड़ और खुद की दागदार छवि बताने वाले 3739 प्रत्याशियों की औसत संपत्ति 3.30 करोड़ है। 2229 नेताओं के अपराध गंभीर प्रवृत्ति के हैं और उनकी संपत्ति औसतन 4.11 करोड़ से अधिक है।

इसे एक उदाहरण से भी समझा जा सकता है। डिप्टी सीएम केशव मौर्य पिछले चुनाव में भी प्रत्याशी थे। अगस्त 2011 में ईद के दिन ननमई गांव में लाउड स्पीकर बजाने के विवाद में मोहम्मद गौस की हत्या के मामले में केशव मौर्य के खिलाफ मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर मामला दर्ज किया गया था। इसी तरह से छात्रों को भड़काने, हत्या की साजिश जैसे 10 गंभीर मुकदमे कौशांबी और इलाहाबाद में दर्ज हैं। 2014 के हलफनामे में उन्होंने 9 करोड़ की संपत्ति होना बताया था। बता दें कि कामधेनु फिलिंग स्टेशन, कामधेनु सप्लायर्स और कामधेनु कृषि ट्रेडिंग कंपनी मौर्य ही चलाते हैं। वहीं, उनकी पत्नी राजकुमारी देवी भी दो कंपनियों कामधेनु लॉजिस्टिक और कामधेनु कृषि ट्रेडिंग की डायरेक्टर हैं। जीवन ज्योति क्लीनिक एंड हॉस्पिटल की पार्टनर भी हैं। केशव मौर्य का बेटा योगेश कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक है, दो अन्य कंपनियों के डायरेक्टर और एक हॉस्पिटल के पार्टनर भी हैं।

आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर अपराधी नेता पढ़े-लिखे होते हैं
आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर अपराधी नेता पढ़े-लिखे होते हैं

ज्यादा पढ़े-लिखे नेता मतलब ज्यादा गंभीर अपराध

आमतौर पर आपराधिक छवि वाले नेताओं को लेकर हम अंदाजा लगा लेते हैं कि वे कम पढ़े-लिखे होंगे। यकीन मानिए, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जो नेता जितना ज्यादा पढ़ा-लिखा है, उसके अपराध भी उतने ही गंभीर हैं। 2004 से अब तक चुनाव लड़ने वालों में से 9663 नेता ग्रेजुएट या उससे ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। कई ने तो विदेशों में रहकर शिक्षा हासिल की है। इन्हीं पढ़े लिखे नेताओं में 2017 यानी करीब 21 फीसदी ऐसे नेता हैं जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में अपराध पंजीबद्ध किए गए। 12वीं या उससे कम पढ़ाई करने वाले 1722 नेता दागी छवि वाले हैं। इसे रामपुर से सपा के प्रत्याशी बनाए गए आजम खान के उदाहरण से भी समझा जा सकता है। आजम खान ग्रेजुएट हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से LLB (ऑनर्स) की पढ़ाई करने वाले आजम के खिलाफ दर्ज 90 गंभीर अपराधों की सुनवाई जारी है। वे 86 मामलों में जमानत पर हैं जबकि 4 मामलों में जमानत का केस अब भी कोर्ट में हैं जिसके चलते वे जेल में बंद हैं। आजम खान पर 500 करोड़ की संपत्ति हथियाने का मामला भी है। इसी तरह कैराना से सपा के प्रत्याशी बनाए गए नाहिद हसन ने 2003 में दिल्ली के एयरफोर्स स्कूल सेकेंड्री, 2010 में ऑस्ट्रेलिया के हेलमास इंस्टीट्यूट से BBA की पढ़ाई की, लेकिन उन पर 17 गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं।

दागी सबसे अधिक सपा में, गंभीर अपराधी भाजपा में

भाजपा नेता कहते हैं कि सपा अपराधियों की पार्टी है। 18 सालों के आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो पता चलता है कि सपा ने 1329 और भाजपा ने 1102 दागी उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा है। हालांकि, इसमें सपा के 98 और भाजपा के 163 उम्मीदवार गंभीर अपराधी हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि सपा में दागी नेता सबसे ज्यादा हैं लेकिन भाजपा में गंभीर अपराधियों की संख्या सपा से ज्यादा है।

सबसे ज्यादा अमीर भाजपा के विधायक-सांसद

चुनावी मैदान में अपने प्रत्याशियों पर दांव लगाने वाली पार्टियों में BJP से चुने गए MLA और MP बाकी पार्टियों से ज्यादा अमीर हैं। भाजपा नेताओं की इस अमीरी की बात करें तो 18 सालों में चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों से पता चलता है कि भाजपा के 573 विधायक-सांसदों की औसत संपत्ति बाकियों से दोगुनी यानी साढ़े छह करोड़ रुपए के आसपास थी। जबकि कांग्रेस के 88 नेता ही ऐसे थे जिन्होंने अपनी संपत्ति सवा पांच करोड़ रुपए बताई।

अपराध आधे, पर संपत्ति महिलाओं के पास दोगुनी

पिछले 18 सालों में हुए चुनावों में भले ही महिला नेताओं को भागीदारी कम रही हो, भले ही उनके अपराध पुरुष नेताओं से आधे हों, लेकिन उनकी संपत्ति पुरुष नेताओं से दोगुनी है। इन 18 वर्षों में 1641 महिलाओं ने चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ 163 पर ही आपराधिक मामले दर्ज थे। इनमें से महज 88 महिलाओं के अपराध ही संगीन थे। जबकि इन सभी महिलाओं की संपत्ति बाकी पुरुष नेताओं से दोगुनी यानी औसतन 8.31 करोड़ रुपए है।

(रिपोर्ट : एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अध्ययन के मुताबिक।)

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