चुनावों के बीच बीएसपी कोऑर्डिनेटर के ‘स्टिंग ऑपरेशन’ से बिगड़ सकता है मायावती का खेल
शमसुद्दीन राईन झांसी के रहने वाले हैं. उनका जन्म 7 मई 1978 को हुआ है. उनके पिता का नाम निज़ाम राईन है. झांसी में उनका सब्जी और फल का काम है. ये मुस्लिम समाज में फल सब्ज़ी का काम करने वाली ‘कुंजड़ा’ बिरादरी ‘पसंमादा’ यानि ‘पिछड़े वर्ग’ से आते हैं. ये राईन सरनेम लगाते हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) के पहले चरण के मतदान से पहले बीएसपी (BSP) के सबसे भरोसेमंद कोऑर्डिनेटर और पार्टी में नंबर दो हैसियत रखने वाले नेता शमसुद्दीन राईन पर आरोप लगा है कि वो 300 करोड़ के बदले पार्टी के 50 टिकट बीजेपी को बेचने को तैयार थे. एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ में वो कथित रूप से बीजेपी के एजेंट के साथ यह सौदेबाज़ी करते हुए ख़ुफिया कैमरे पर क़ैद हुए हैं. इस सौदेबाज़ी के तहत 200 करोड़ पार्टी फंड में जमा होन थे और 100 करोड़ रुपए शमस्सुद्दीन को मिलने थे. यह ‘स्टिंग ऑपरेशन’ एक अख़बार के मालिक और संपादक रहे गोपालदास ने किया है और इसे ‘दैनिक भास्कर’ ने छापा और दिखाया है.
ये स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद बीएसपी की चुनावी संभावनाओं पर नाकारात्मक असर पड़ सकता है. मुस्लिम समाज में पहल से ही उन्हें लेकर संशय बन हुआ है. उन पर शक किया जा रहा है कि अगर बीजपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो मायावती बीएसपी के समर्थन से उसकी सरकार दोबारा बनवा सकती हैं. ऐसे में स्टिंग ऑपरेशन बीएसपी की मुश्किलें बढ़ा सकता है. राजनीतिक गलियारों में कई दिन से चर्चा चल रही है कि इस चुनाव में बीएसपी सत्ता की लड़ाई से बाहर है, लिहाज़ा वो पर्दे की पीछे बीजेपी की मदद कर रही है. उसके उम्मीदवारों की लिस्ट से भी ऐसा ही लगता है कि वो खुद जीतने के बजाय सपा गठबंधन को हराने के लिए चुनाव मैदान में है. शमसुद्दीन राईन का ये स्टिंग ऑपरेशन इन अटकलों को सच साबित करता नज़र आता है. इससे चुनावों में मायावती का खेल बिगड़ सकता है.
क्या है स्टिंग ऑपरेशन में?
‘स्टिंग ऑपरेशन’ उस वक्त किया गया जब बीएसपी में टिकटों के लिए मारामारी मची थी. दनादन टिकट काटे और बांटे जा रहे थे. टिकट पाने से चूक गए कई दावेदार रो-रो कर बता रहे थे कि पार्टी में उनसे मोटी रकम जमा करवा ली गई, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया. इसी बीच 17 दिसंबर को पहली बार गोपालदास शमसुद्दीन राईन से लखनऊ में उनके घर पर मिले. खुद को उन्होंने बीजेपी और संघ के एजेंट के तौर पर पेश किया. उन्होंने शमसुद्दीन से कहा कि बीजेपी यूपी में योगी के बगैर अपनी सरकार बनाने में उनकी पार्टी की मदद चाहती है. अगर वो 50 सीटों पर बीजेपी की मर्ज़ी के उम्मीदवार उतार दें तो वो बीजेपी से उन्हें 300 करोड़ रुपए दिलवा सकते हैं. इनमें से 200 करोड़ रुपए पार्टी फंड मे जमा करा दिए जाएंगे और 100 करोड़ रुपए आपको मिलेंगे. आपसे 10 करोड़ रुपए मैं लूंगा.
शमसुद्दीन ने नहीं ठुकराया ऑफ़र
शमसुद्दीन ने स्टिंग करने वाले गोपालदास का ऑफ़र ठुकराया नहीं बल्कि इस पर विचार करने को कहा. इसे अमली जामा पहनाने के लिए गुणाभाग करने लगे. गोपालदास को अगले दिन फिर मिलने के लिए बुलाया और यह जानना चाहा कि वह फंड कैसे दिलाएंगे? किस तरह के उम्मीदवार देंगे? धार्मिक और जातीय संतुलन का भी ख्याल रखा जाएगा या नहीं? दूसरे दिन की बातचीत के आख़िर में शमसुद्दीन ने अपनी तरफ़ से डील पक्की होने की बात कह कर गोपालदास को विदा किया. उन्होंने मायावती से बात करके इस डील को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक-दो दिन का समय मांगा और दिल्ली में मिलने का वादा भी किया. जहां शमसुद्दीन बीजेपी और संघ परिवार के कथित एजेंट का ऑफर कुबूल करने को पूरी तरह तैयार थे. वहीं विपरीत बीएसपी के दूसरे कोऑर्डिनेटर नौशाद अली ने गोपालदास का ऑफर सुनते ही ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया.
दो-तीन करोड़ में टिकट बेचने की बात कुबूली
शमसुद्दीन राईन के इस स्टिंग ऑपरेशन से बीच चुनाव में बसपा की फजीहत हो रही है. बीएसपी प्रमुख मायावती पर टिकट बेचने के आरोप पहले से लगते रहे हैं, लेकिन किसी स्टिंग ऑपरेशन में पहली बार बीएसपी का कोई वरिष्ठ नेता ये क़ुबूल करते हुए कैमरे में क़ैद हुआ है कि उनकी पार्टी में दो से तीन करोड़ रुपए में विधानसभा का टिकट बिक रहा है और टिकट खरीदने वालों की लाइन लगी हुई है. स्टिंग ऑपरेशन में शमसुद्दीन राईन जिस तरह से बात करते हुए नजर आते हैं, उसे साफ लगता है कि अगर वाकई बीजेपी की तरफ से उन्हें पैसा दिया जाता तो वो टिकट बेच देते. स्टिंग ऑपरेशन ने पिछले कई दिनों से चल रही उन चर्चाओं को हवा दे दी है, बीएसपी और बीजेपी के बीच पर्दे के पीछे कोई सांठगांठ है. हालांकि शमसुद्दीन ने 300 करोड़ के ऑफ़र की बात को ग़लत बताया है लेकिन सेटिंग ऑपरेशन में वो इस पर चर्चा करते हुए साफ दिखाई दे रहे हैं.
मायावती के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार
यूपी के विधानसभा चुनाव में बीसपी प्रमुख मायावती ने पश्चिम उत्तर प्रदेश फतेह करने की ज़िम्मेदारी अपने सबसे भरोसमंद सिपहसालार शमसुद्दीन राईन को सौंपी थी. इस उम्मीद के साथ कि वो मज़बूत और जिताऊ उम्मीदवार उतार कर पार्टी की डूबती नैया को पार लगाएंगे. उन्हें पांच मंडल का प्रभारी बनाया गया था. इनमें से चार सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद और बरेली मंडल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं. पांचवा लखनऊ मंडल के सेक्टर-2 की जिम्मेदारी भी उन्हीं के पास है. इसके अलावा वो उत्तराखंड की भी पूरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. ज़ाहिर है शमसुद्दीन राईन बीएसपी में मायावती के बाद सतीश मिश्रा जैसे दूसरे नंबर के बड़े नेताओं की क़तार मे शामिल हैं. बीएसपी में कभी ये मुक़ाम नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को हासिल था. लकिन इस स्टिंग ऑपरेशन से शमसुद्दीन और बीसपी दोनों की फजीहत हो रही है. दोनों की साख़ मिट्टी में मिल गई है. शमसुद्दीन ने मायावती का भरोसा तोड़ दिया.
कौन हैं शमसुद्दीन राईन
शमसुद्दीन राईन झांसी के रहने वाले हैं. उनका जन्म 7 मई 1978 को हुआ है. उनके पिता का नाम निज़ाम राईनी है. झांसी में उनका सब्जी और फल का काम है. मुस्लिम समाज में फल सब्ज़ी का काम करने वाली ‘कुंजड़ा’ बिरादरी ‘पसंमादा’ यानि ‘पिछड़े वर्ग’ से आते हैं. ये राईन सरनेम लगाते हैं. शमसुद्दीन राईन अपने परिवार से पहले शख्स हैं, जिन्होंने सियासत में क़दम रखा है. 20 साल की उम्र में ही शमसुद्दीन बीएसपी से जुड़ गए थे. उन्होंने एक साधाराण कार्यकर्ता के तौर पर अपना सियासी सफ़र शुरू किया था. संगठन में बूथ अध्यक्ष से शुरुआत उन्होंने पहले विधानसभा और फिर ज़िला संगठन में जगह बनाई. वो पूरी तरह पार्टी को समर्पित रहे. न कभी चुनाव लड़े और न ही कभी एमएलसी बने. उन्होंने हमेशा संगठन में ही काम करने को तरजीह दी.
बीसपी से जुड़ाव और क़दम दर क़दम तरक़्क़ी
शमसुद्दीन ने 90 के दशक की शुरुआत में झांसी के बीएसपी के ज़िला अध्यक्ष रहे चौधरी नसीम क़ुरैशी की उंगली पकड़कर पार्टी में क़दम रखा. उन्हीं से राजनीति का क,ख,ग सीखा. उन्हीं के साथ वो वैचारिक तौर पर बीएसपी के साथ पर जुड़ गए. इसके बाद शमसुद्दीन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. धीरे-धीरे वो सियासत की सीढ़ी एक-एक पायदान चढ़ते चले गए. 1996 में वो बीएसपी संगठन में बूथ कार्यकर्ता के तौर पर जुड़े. बाद में वो बूथ अध्यक्ष बने. विधानसभा संगठन में भी उन्हें महत्वपूर्ण ज़िम्मदारी मिली. उन्हें 2003 में झांसी के जिला संयोजक की जिम्मेदारीदी गई. फिर पार्टी संगठन में नगर अध्यक्ष से लेकर जिला उपाध्यक्ष तक सफर तय किया. इसके बाद 2006 में मायावती ने उन्हें झांसी मंडल का मुस्लिम भाई-चारा कमेटी का संयोजक की जिम्मेदारी सौंपी. इसके बाद 2007 में झांसी के जिला प्रभारी नियुक्त किया. बाद में उन्हें झांसी मंडल में काम करने का मौक़ा मिला.
2014 में बढ़ा क़द
2012 के विधानसभा चुनाव के बाद बीएसपी में शमसुद्दीन राईन का क़द तज़ी से बढ़ा. उन्हें झांसी के बाहर प्रदेश स्तर पर पहचान मिलनी शुरु हुई. साथ ही प्रदेश स्तर पर बड़ी ज़िम्मदारी भी मिली. 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मायावती ने शमसुद्दीन राईन को बुंदेलखंड से बाहर कानपुर ज़ोन का इंचार्ज बनाया. हालांकि तब उन्हें ये ज़िम्मेदारी स्वतंत्र रूप से नहीं दी गई थी. वो पार्टी के वरिष्ठ नेता के सहायक के रूप में काम कर रहे थे. 2015 में कानपुर मंडल की पूरी ज़िम्मेदारी उन्हें सौप दी गई. दो साल काम करने के बाद 2017 में शमसुद्दीन राईन पूर्वांचल के गोरखपुर, फैजाबाद और आजमगढ़ मंडल के कोऑर्डिनेटर बने. इस दौरान उन्होंने देवी पाटन, लखनऊ और कानपुर की जिम्मेदारी संभाली.
नसीमुद्दीन की जगह शमसुद्दीन
2017 के विधानसभा चुनाव के बाद बीएसपी से नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को निकाले जाने के बाद शमसुद्दीन राईन को पश्चिम उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई. बीसपी की राजनीति में पश्चिम उत्तर प्रदेश सबसे अहम माना जाता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीसपी को चार सीटें सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा यहीं से मिली थीं. वहीं, मेरठ में बसपा मामूली वोटों से हारी थी. बाकी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. उस चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी शमसुद्दीन राईन के कंधों पर ही थी. इस ज़िम्मेदारी को उन्होंने बख़ूबी निभाया. पार्टी और अपनी साख़ को बचाया. इसका नतीजा ये रहा को वो बीएसपी में उसी मुक़ाम पर पहुंच गए जिस पर कभी नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी हुआ करते थे. मायावती ने उन पर भरोसा किया और विधानसभा चुनाव में उन्हें सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी. उन पर पांच मंडलों के टिकट तय करने की ज़िम्मेदारी थी.
नसीमुद्दीन पर भी लगे थे टिकट बेचने के आरोप
गौरतलब है कि बीएसपी में एक समय नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी की तूती बोलती थी. वो मायावती के सबसे क़रीबी नेताओं में गिने जाते थे. मायावती के सत्ता में रहते हुए नसीमुद्दीन के पास सारे भारीभरकम और मलाईदार महकमे थे. बसपा में उनकी दूसरे नंबर की हैसियत थी. पश्चिम यूपी की सारी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी.
लेकिन 2018 में नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को मायावती ने बसपा से निकाल दिया था. तब उन पर टिकटों के बंटवारे में बड़ी गड़बड़ी और पार्टी फंड के नाम पर टिकट के दावेदारों से मोटी रक़म वसूलने के गंभीर आरोप लग थे. बसपा से निकाले जाने क बाद नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ने पहले अपनी पार्टी बनाई थी. बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए थे. नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बसपा से बाहर होने के बाद पश्चिम की कमान शमसुद्दीन राईन ने संभाली. उन्होंने पार्टी में नसीमुद्दीन की कमी को कभी महसूस होने नहीं दिया. 2019 में बीएसपी का सबसे बेहतर प्रदर्शन पश्चिम उत्तर प्रदेश के इलाके में ही रहा है.
शमसुद्दीन राईन ने बीएसपी में बग़ैर किसी सियासी गॉडफॉदर के अपने बूते जगह बनाई. एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर अपने सियासी करियर का सफ़र शुरू करके पार्टी में दूसरे नंबर तक पहुंचने का सफऱ तय किया. लेकिन बीच चुनाव सामने आए उनके स्टिंग ऑपरेशन से उनकी और उनकी पार्टी की फ़जीहत हो रही है. इससे उन पर मायावती की गाज गिरने का ख़तरा पैदा हो गया है. उनका अंजाम भी नसीमुद्दीन की तरह ही हो सकता है.