पश्चिमी यूपी की 58 सीटों पर मुकाबला … वोटिंग से 1 दिन पहले कौन पार्टी कितने पानी में

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने साल 2017 में 53 सीटें जीतकर चुनाव में एसपी-कांग्रेस गठबंधन और बीएसपी समेत तमाम राजनीतिक दलों को हाशिए पर धकेल दिया था. पश्चिमी यूपी की महज़ चार सीटों पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी.

पहले चरण में 58 सीटों पर मुकाबला 10 फरवरी को होना है. यहां बीजेपी पिछली बार 53 सीटें जीत पाने में कामयाब हुई थी. लेकिन इस बार एसपी और आरएलडी (SP-RLD) के एक साथ आने और किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी के लिए वो परफॉरमेंस दोहरा पाना टेढ़ी खीर प्रतीत हो रहा है. हालांकि इस बीच बीएसपी और कांग्रेस (Congress) के सियासी पैतरे से चुनावी गणित बदलने की उम्मीद की जा रही थी. पर क्या ऐसा कुछ हो रहा है? बीएसपी के उम्मीदवार बदलने में एसपी-आरएलडी गठबंधन के कुछ प्रभावित होने की उम्मीद की जा रही थी.

मायावती ने 58 में से 56 उम्मीदवारों को बदल दिया है, जबकि मांट से श्याम सुंदर शर्मा और गोवर्धन से राजकुमार रावत दो ऐसे नाम हैं जो पिछली दफा भी बीएसपी से चुनाव लड़ चुके हैं. पश्चिम यूपी में बीएसपी के 30 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे, लेकिन बीएसपी ने उनमें से सिर्फ एक को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाया है. पहले चरण में एसपी और आरएलडी गठबंधन सहित बीएसपी ने जो उम्मीदवार बदले हैं उसकी मुख्य वजह जातीय समीकरण और उम्मीदवारों की छवि है जो विरोधियों से लोहा लेने में इन्हें कारगर साबित करती हैं.

कांग्रेस द्वारा महिला वोट बैंक को साधने की कोशिश

कांग्रेस 2017 में 58 सीटों में से 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, क्योंकि उसका गठबंधन साल 2017 में एसपी के साथ था. इस बार कांग्रेस 58 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है. इन 58 उम्मीदवारों में से पांच उम्मीदवार पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन जीत पाने में नाकामयाब रहे थे. आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 के मुक़ाबले इस बार महिला उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा है और इसकी वजह कांग्रेस द्वारा ज्यादा महिलाओं को टिकट दिया जाना है. साल 2017 में कांग्रेस 58 सीटों में 23 पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें सिर्फ़ एक महिला उम्मीदवार थीं. इस बार कांग्रेस ने महिला उम्मीदवारों को ज्यादा संख्या में मैदान में उतारकर महिलाओं को साधने की कोशिश की है. महिलाओं को टिकट दिए जाने में बीजेपी दूसरे नंबर पर है जिसने 7 और एसपी और आरएलडी ने 4 महिलाओं को टिकट देकर मैदान में उतारा है.

58 में से 53 सीटें जीतने वाली बीजेपी दोहराएगी अपना इतिहास

बीजेपी ने साल 2017 में 53 सीटें जीतकर चुनाव में एसपी-कांग्रेस गठबंधन और बीएसपी समेत तमाम राजनीतिक दलों को हाशिए पर धकेल दिया था. पश्चिमी यूपी की महज़ चार सीटों पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी.


इस चुनाव में बीएसपी दो, एसपी और आरएलडी ने मिल कर 3 सीटें निकाली थीं. बीजेपी ने पिछली दफा मुक़ाबले को पूरी तरह से अपनी ओर मोड़ लिया था. जबकि साल 2012 में यहां बीएसपी सबसे अधिक 20 सीटों पर, एसपी 14 और बीजेपी 10 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही थी. आरएलडी साल 2012 में नौ सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जबकि कांग्रेस ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी.


साल 2012 में बीएसपी सबसे अधिक 24 सीटों पर उपविजेता थी, जबकि बीजेपी (9), आरएलडी (8), एसपी (7) और कांग्रेस (3) पर दूसरे नंबर पर थी. लेकिन 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकृत माहौल ने जाट वोटों के साथ-साथ दलित वोटों के एक हिस्से को बीजेपी की तरफ मोड़ दिया. यही वजह रही कि साल 2012 में यहां से 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे, जबकि साल 2017 में केवल तीन सीट पर ही ये सिमट कर रह गए.

बीजेपी परिणाम दोहराने की फिराक में

बीजेपी ने अपने राजनीतिक फैसलों को चिरपरिचित अंदाज में ज़मीन पर उतारा है. एंटी इनकम्बेंसी से निपटने के लिए 53 में से 19 उम्मीदवारों को बीजेपी ने बदल दिया है, वहीं दूसरे नंबर पर रहे 4 उम्मीदवारों की जगह भी नए लोगों को टिकट देकर मैदान में उतारा है.


इतना ही नहीं किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए योगी सरकार द्वारा गन्ना किसानों को लुभाने की कोशिश जोरदार तरीके से की गई है. आदित्यनाथ सरकार ने निजी नलकूपों के लिए बिजली की दरें भी कम कर दी है. सीएम आदित्यनाथ पिछली एसपी सरकार पर “दंगाइयों और आतंकवादियों को बचाने” का आरोप लगाते रहे हैं. ज़ाहिर है अपराध पर नियंत्रण और लॉ एंड ऑर्डर को बेहतर बहाल करने के नाम पर बीजेपी विरोधियों पर जीत हासिल करने की फिराक में है.


बीजेपी के लिए मथुरा भी बेहद महत्वपूर्ण सीट बन गई है, जहां से आदित्यनाथ ने बीजेपी की जन विश्वास यात्रा की शुरुआत की थी. कुछ हफ्ते पहले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट किया था, “अयोध्या- काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है मथुरा की तैयारी है.” ज़ाहिर है बीजेपी हिंदुत्व, कानून व्यवस्था और विकास के नाम पर प्रदर्शन दोहराने को लेकर कॉन्फिडेंट है, वहीं एसपी आऱएलडी कृषि कानून, एंटी इनकम्बेंसी और महंगाई को अस्त्र बनाकर बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए तैयार खड़ी है. ज़ाहिर है मुकाबला कांटे का है और जीत के लिए दो प्रमुख दल हर दांव खेल जीत का दावा करने में जुटे हैं.

एसपी और आरएलडी ने बीजेपी को घेरने की कि है पूरी तैयारी

एसपी और आरएलडी गठबंधन में 29 सीटों पर आरएलडी 28 सीटों पर एसपी और एक सीट पर शरद पवार की एनसीपी चुनाव मैदान में बीजेपी से दो हाथ करने को तैयार है. एसपी और आरएलडी गठबंधन ने बीजेपी की तर्ज पर 58 में से 43 उम्मीदवारों को बदल दिया है. इन 43 उम्मीदवारों में सभी ने साल 2017 का विधानसभा चुनाव न तो एसपी और न ही आरएलडी के टिकट पर लड़ा था. एसपी ने किसानों को मुफ्त बिजली और आरएलडी ने कर्जमाफी का वादा कर उन्हें लुभाने की कोशिश की है. इस चुनाव में कृषि आंदोलन के राजनीतिक प्रभाव और एमएसपी के लिए किसानों की मांग को हथियार बना एसपी और आरएलडी बीजेपी के लिए राहें मुश्किल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही.

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