ये जो कुर्सी है ना… बड़ी बेवफा है .. एक से बचाकर छुट्‌टी पर गए साहब, पीछे से दूसरे ने हथिया ली; मंत्री तो बन गए पर प्रोटोकॉल नहीं पता

कुर्सी का मोह किसे नहीं होता है। अगर मलाईदार हो तो फिर क्या कहना… पर यह होती बड़ी बेवफा है। कब छिन जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इतनी सी बात साहब को कौन समझाए कि कुर्सी से ज्यादा लगाव न रखें। हाल ही में दो अफसरों के साथ ऐसा ही हुआ है। निर्माण विभाग में रिटायर ईएनसी को इससे भी बड़ा ओहदा देकर नवाजा गया है। पहले जिसके पास यह कुर्सी थी, उसे इस बदलाव की कानोकान खबर तक नहीं लगी। वैसे तो यह कुर्सी ‘सरकार’ के करीबी हाल ही में रिटायर हुए सीनियर इंजीनियर को मिलने की उम्मीद थी।

सचिव ने अपना घोड़ा आगे बढ़ाकर ऐसी चाल चली कि उन्हें संविदा नियुक्ति नहीं लेने दी। कहते हैं ना कि दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा… यहां भी ऐसा ही हुआ, कुर्सी तीसरे को मिल गई। इसमें भी टाइमिंग का खेल था। दरअसल, सचिव महोदय कोरोना होने के कारण होम आइसोलेशन में थे और पीछे से खेल हो गया, जबकि वे निश्चिंत हो गए थे कि कुर्सी का प्रबल दावेदार खेल से बाहर हो चुका है। तो फिर डर काहे का… सरकार ने जिसे यह कुर्सी सौंपी है, उससे भी खतरा इसलिए नहीं था, क्योंकि उन्हें रिटायरमेंट के बाद राज्य योजना आयोग का सलाहकार बनाया जा चुका था, लेकिन उनके छुट्‌टी पर रहते सरकार ने तीसरे को यह कुर्सी सौंप दी।

साहब छुट्टी से लौटकर कुर्सी वापस पाने के लिए पुरानी शिकायतों को जिंदा करने में लग गए हैं। सुना है कि उन्होंने बीजेपी के एक बड़े नेता से सरकार को पत्र भिजवाया है, जिसमें कहा गया है कि विभाग स्तर पर सचिव की संपत्ति की जांच पेंडिंग है। उनके 9 फ्लैट और बंगले बताए जाते हैं। दो करोड़ का एक बंगला मुंबई में उनकी अविवाहित बेटी के नाम पर खरीदा है। इस जांच को दबा दिया गया है, लिहाजा इसे खोला जाए।

जब पीएस ने मंत्रीजी को कुर्सी से उठा दिया

यहां भी कुर्सी का खेल हुआ। किसी की कुर्सी पर कोई बैठ जाए तो हकदार क्या करे। जो कुर्सी की रखवाली कर रहा है उसका क्या हाल होगा? अगर कुर्सी से उठा दिया जाए कितनी बड़ी बेइज्जती हो जाएगी। हाल ही में स्व सहायता समूह को लोन देने के कार्यक्रम में सीएम के खास दिखने के चक्कर में एक कनिष्ठ मंत्री यही गलती कर बैठे। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ चार मंत्री मौजूद रहे। प्रोटोकॉल के हिसाब से सीएम के बाजू की कुर्सी में सबसे सीनियर मंत्री को बैठना था, लेकिन जैसे ही सीएम अपनी कुर्सी पर बैठे, जूनियर मंत्री उनके बगल वाली कुर्सी पर बैठ गए। कार्यक्रम शुरू भी हो गया। जब विभाग के प्रमुख सचिव ने देखा कि सीनियर मंत्री असहज हो रहे हैं तो उन्होंने जूनियर मंत्री को जाकर कान में कुछ कहा, तब जूनियर मंत्री ने कुर्सी छोड़ी। यहां एक नजारा और देखने को मिला… इस जूनियर मंत्री ने मंच पर सीएम का स्वागत बुके देकर किया और उनके पैर भी छुए। हालांकि, सीएम असहज भी हो गए थे।

पत्नी से बेवफाई में डूबे तो सहारा संघ से मिला

पत्नी को प्रताड़ित करने के आरोप में निलंबित सीनियर आईपीएस अफसर ने अपनी बहाली के लिए ‘सरकार’ पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। उन्होंने पहले बीजेपी के एक राष्ट्रीय नेता से फोन कराया, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद संघ के एक पदाधिकारी ने साहब को बहाल करने की पैरवी की है, लेकिन विरोधियों ने भी चाल चलना शुरू कर दिया है। पीएचक्यू के एक अफसर ने गृह विभाग के माध्यम से उनकी DE (विभागीय जांच) शुरू कराने की फाइल चलवा दी है। राज्य शासन ने हाल ही में केंद्र सरकार से इसकी अनुमति देने का प्रस्ताव भेज दिया है। अब देखना है कि साहब संघ के सहारे फिर से वर्दी पहन पाते हैं या फिर उन्हें जांच का सामना करना पड़ेगा?

तनाव भगाने मसाज का सहारा

एक सीनियर आईपीएस अफसर की नियुक्ति ग्वालियर जोन में हुई, लेकिन वे बीजेपी के दो बड़े नेताओं के बीच ऐसे फंस गए कि उन्हें तनाव ज्यादा होने लगा। इन दोनों नेताओं की आपस में जमकर तनातनी चल रही है। ऐसे में अफसर ने अपनी समस्या ‘सरकार’ तक पहुंचाई। जहां से निर्देश आया कि दोनों नेताओं के बीच भले ही विवाद रहे, लेकिन आप बैलेंस बनाकर काम करें, हालांकि ऐसा हो नहीं पा रहा है। लिहाजा वे तनाव में रहने लगे। अब उन्हें शुभचिंतक ने सलाह दी है कि वे मसाज कराकर तनाव को दूर करें, क्योंकि राजनीति उन्हें तनाव देती रहेगी। सुना है कि साहब अब दिन में करीब दो घंटे एक मसाज सेंटर को देते हैं।

एक विभाग, 3 पीएस

इस समय नगरीय विकास एवं आवास विभाग ऐसा है, जिसमें तीन प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी पदस्थ हैं। इसमें मनीष सिंह पहले से विभाग के प्रमुख सचिव हैं। हाल में वहीं आयुक्त निकुंज कुमार श्रीवास्तव को प्रमुख सचिव पद पर पदोन्न्त कर विभाग का पदेन प्रमुख सचिव पदस्थ किया है। इसी तरह विभाग के अंतर्गत आने वाले नगर व ग्राम निवेश के आयुक्त-सह-संचालक मुकेश चन्द गुप्ता भी पदोन्न्त होकर प्रमुख सचिव हो गए हैं। इसके मद्देनजर आयुक्त-सह-संचालक के पद को प्रमुख सचिव के समक्षक घोषित किया गया है। अब देखना है कि सरकार तीन में से किसे विभाग की कमान देगी? हालांकि इनमें से एक अफसर ने तो प्रमोशन के पहले ही मंत्रालय में विभाग का कामकाज समझना शुरू कर दिया था।

और अंत में… मंत्री जी की खदान पर वक्रदृष्टि

एक कद्दावर मंत्री छतरपुर की एक खदान लेना चाहते हैं। मंत्री जी ने जब खदान के बारे में पतासाजी की तो उन्हें जानकारी मिली कि जबलपुर के एक नेता का करीबी खदान संचालित कर रहा है। फिर क्या, अब मंत्री जी ने अपने स्टाफ और विभाग को खदान संचालक की जड़ें खोदने के लिए लगा दिया है। हालांकि मंत्री की इस मंशा के बारे में ‘सरकार’ को पता चल गया है। कैबिनेट की बैठक में किसी मंत्री का नाम लिए बिना सरकार की तरफ से कहा गया कि ठेकों से दूर रहें तो भलाई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *