लड़की, जो ब्राह्मणों को BJP से दूर कर सकती थी:जिस खुशी दुबे के लिए ब्राह्मण योगी सरकार से नाराज थे, वो अब कहां है
नेहा तिवारी। एक महीने पहले तक इनकी कोई पहचान नहीं थी। एक विधवा थीं। घर में दो बच्चों को पाल रही थीं। कांग्रेस ने ढूंढा और कानपुर की कल्याणपुर सीट से प्रत्याशी बना दिया। ऐसा क्यों हुआ?…ऐसा हुआ एक लड़की के कारण। जो ब्राह्मणों का वोट काट सकती है। जेल में बंद है। नाम है खुशी दुबे। आज उसकी पूरी कहानी बताते हैं।
हाथ में कंगन नहीं हथकड़ी
29 जून 2020 की रात के 10 बजे थे। कानपुर के रतनपुर में गाना बज रहा था, ‘छोटे-छोटे भाइयों के बड़े भइया, आज बनेंगे किसी के सइंया।’ शादी के लाल जोड़े में खुशी दुबे ठुमके लगा रही थी। सिर्फ 88 घंटे बीते थे, हांथों में कंगन नहीं, हथकड़ी लगी थी।
आरोप था, ‘बिकरू कांड की साजिश रचने का।’ बिकरू कांड यानी कानपुर के चौबेपुर में 8 पुलिसवालों की हत्या। शादी की चौथी रात, खुशी पुलिस की हिरासत में थीं। 10वें दिन पति अमर दुबे का एनकाउंटर हुआ और खुशी की गिरफ्तारी हुई। जमानत के लिए दरवाजा खटखटाया, पर मिली नहीं।
खुशी को छोड़ दीजिए वह बेकसूर है
विपक्ष ने मांग की कि उसे छोड़ दें। यहां तक कि BJP के MLC उमेश द्विवेदी ने सीएम को लेटर लिखा, ‘खुशी को छोड़ दीजिए वह बेकसूर है।’ सरकार ने पुलिस पर मामले को छोड़ दिया। हवा उड़ी कि खुशी के लिए यूपी के ब्राह्मण, सरकार से नाराज हैं। राजनीति का मौका मिल गया।
19 महीने बीते। सपा, बसपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी खुशी की मां को टिकट देने पहुंच गईं, लेकिन उन्होंने लिया नहीं। खुशी है कहां? किस हाल में है? परिवार कहां है? वह चाहते क्या हैं? आइए बारी-बारी से पूरी कहानी में उतरते हैं…
हुआ क्या था
2 जुलाई 2020 की रात 12 बजे। चौबेपुर पुलिस टीम सीओ देवेंद्र मिश्रा के साथ गैंगस्टर विकास दुबे को गिरफ्तार करने पहुंची थी। विकास अपने गुर्गों के साथ मिलकर 8 पुलिसवालों की हत्या कर दी। सारे हमलावर फरार हो गए। पुलिस और एसटीएफ ने 8 दिन के अंदर विकास दुबे, अमर दुबे सहित 6 बदमाशों को एनकाउंटर में मार गिराया। जांच शुरू हुई। विकास की पत्नी से पूछताछ के बाद छोड़ दिया, लेकिन घटना के चार दिन पहले ब्याह के चौबेपुर आई अमर दुबे की पत्नी खुशी को गिरफ्तार कर लिया।
खुशी दुबे कहां है
खुशी दुबे इस वक्त कानपुर देहात की माती जेल में बंद हैं। इसके पहले बाराबंकी के किशोरी संरक्षण गृह में बंद थीं। वहां बीमार हो गईं। खून की उल्टियां होने लगीं। नाक से खून आने लगा। लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज चला। 15 दिन बाद हालत सुधरी। इसके बाद 25 सितंबर 2021 को कानपुर जेल भेज दिया गया।

खुशी दुबे का अपराध क्या है
खुशी पर बिकरू में मारे गए 8 पुलिसवालों की हत्या में साजिश रचने, पति अमर दुबे को पुलिस की लोकेशन बताने, कारतूस देने के गंभीर आरोप हैं। 8 जुलाई को पुलिस ने गिरफ्तार किया। एक महीने बाद कानपुर देहात के एंटी डकैती कोर्ट ने फैसला दिया कि घटना के समय वह नाबालिग थी। उस वक्त के एसएसपी दिनेश कुमार ने कहा कि आईपीसी की धारा 169 के तहत खुशी को जेल से छोड़ने का आदेश दे दिया गया है। लेकिन छोड़ा नहीं गया। क्यों?
खुशी जेल में क्यों है
कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस ने खुशी को नहीं छोड़ा। वकील शिवाकांत दीक्षित ने पुलिस से पूछा, ‘किस आरोप में अब बंद किए हैं?’ जवाब नहीं मिला। शिवाकांत ने आरटीआई डाल दी। पता चला कि सितंबर 2020 में खुशी पर हत्या, हत्या का प्रयास, डकैती, साजिश रचने, चोरी की संपत्ति को बेईमानी से लेने, बलवा से जुड़े 17 अन्य धाराओं में केस दर्ज कर लिया गया है।
चुनाव में हावी हो गया खुशी दुबे मुद्दा
खुशी की मां गायत्री देवी मीडिया के सामने आईं। उन्होंने कहा, ‘कोर्ट ने धारा 169 के तहत पुलिस को छोड़ने का आदेश दे दिया लेकिन सरकार ने अड़ंगा लगा दिया।’ वकील ने कहा, ‘खुशी निर्दोष है वह जातिगत राजनीति का शिकार हो गई है।’ जातिगत राजनीति शब्द आते ही स्थिति बदल गई। सारी पार्टियां खुशी के घर पनकी रतनपुर पहुंचने लगीं।
ब्राह्मणों का सम्मान बन गई खुशी
12 जून 2021 को आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह खुशी की मां गायत्री के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘योगी हमेशा गरीबों पर अपनी ताकत दिखाते हैं। अगर कोई आवाज उठाता है तो उसे जेल भेज देते हैं।’

गायत्री देवी के बगल बैठे ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष राहुल त्रिपाठी ने मोर्चा खोल दिया। कहा, ‘खुशी के खिलाफ जितनी धाराएं लगाई गई हैं उतनी तो आतंकियों पर नहीं लगतीं।’ यहां से स्थिति बदल गई। खुशी की रिहाई के लिए जमीन से लेकर सोशल मीडिया तक आवाज उठने लगी।
ब्राह्मण सम्मान में-सपा-बसपा-कांग्रेस भी मैदान में
ब्राह्मण वोटों को अपने पाले में करने की कोशिशों के बीच सपा, बसपा और कांग्रेस खुशी दुबे का मुद्दा उठाने लगी। समर्थक सोशल मीडिया पर योगी से सवाल पूछने लगे।

21 जनवरी को खुशी की मां गायत्री कहती हैं, ‘आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस, बसपा और सपा ने विधानसभा चुनाव लड़ने का ऑफर दिया। पर मैंने मना कर दिया।’ मना करने के कारणों का जिक्र करते हुए गायत्री ने कहा, ‘हमारी बेटी जेल में है, हम चुनाव कैसे लड़ लें। हमारे पास केस लड़ने तक का पैसा नहीं है। संजय सिंह के सहयोग के लिए आभारी हूं, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में खुशी के लिए विवेक तनखा जैसे बड़े वकील दिए।’
चुनाव लड़ने से मना किया और मुद्दा हो गया ठंडा
कानपुर के पत्रकार नितिन अग्रवाल बताते है, ‘खुशी की मां ने जब चुनाव न लड़ने का फैसला किया तभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए।’ फिर गायत्री देवी ने कहा, ‘हमने आज तक सिर्फ और सिर्फ भाजपा को वोट दिया है, हम कहीं भी मंदिर में कसम खा सकते हैं।’
नितिन कहते हैं, ‘विपक्षी पार्टियां खुशी दुबे मामले में आक्रामकता चाहती थीं। वे चाहती थीं कि परिवार योगी आदित्यनाथ पर हमलावार हो जिससे मीडिया कवरेज मिले, लेकिन परिवार डिफेंसिव मोड में है। राजनीतिक माइलेज न मिलता देख पार्टियों ने खुद ही किनारा कर लिया।’
‘जेल से बाहर आई तो खूंखार बन जाऊंगी’
निर्भया और हाथरस केस में पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा कहती हैं, ‘इस सरकार ने अपनी ईगो की वजह से उस बच्ची को जेल में रखा है। उसकी बिकरू कांड में उसकी कोई भूमिका नहीं है।’

सीमा कुशवाहा खुशी दुबे के बारे में एक चौंकाने वाली बात बताती हैं, ‘पुलिस-प्रशासन ने कोर्ट में बताया है कि खुशी दुबे ने कहा है कि जेल से बाहर आई तो खूंखार बन जाऊंगी। इसी डर से उसे अंदर रखा गया है।’
आखिरकार चुनाव में उतर आया परिवार
मां ने तो नहीं, लेकिन चुनाव से ठीक 10 दिन पहले खुशी की बड़ी बहन नेहा तिवारी ने कांग्रेस से टिकट ले लिया है। 30 साल की नेहा के पति की एक एक्सीडेंट में मौत हो चुकी है। अब वह कल्याणपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगी।
फिलहाल खुशी जेल में हैं। एक साल पहले वह यूपी की राजनीति में सबसे चर्चित चेहरा थी, लेकिन अब नहीं हैं। पिछले एक महीने से खुशी दुबे नाम कानपुर के बाहर चर्चा में नहीं हुई। ब्राह्मण वोट की राजनीति में अब दूसरे मुद्दे शामिल हो गए हैं।