भजनलाल सरकार ने राजस्थान में CBI जांच से रोक हटाई ..
भजनलाल सरकार ने राजस्थान में CBI जांच से रोक हटाई ..
4 पूर्व मंत्री, 2 IAS की फाइलें खोलने की तैयारी; फोन टैपिंग-पेपर लीक जैसे 5 मामले
भजनलाल सरकार ने गहलोत राज में लगी CBI जांच पर रोक को हटाकर सभी रास्ते खोल दिए हैं। अब सिफारिश मिलते ही CBI अफसर राजस्थान के किसी भी मामले में रेड मार सकेंगे।
इस फैसले के बाद वो 5 मामले फिर से चर्चा में हैं, जिनकी जांच का मुद्दा चुनाव से पहले बीजेपी ने जोर-शोर से उठाया था। घोषणापत्र में किए वादे के अनुसार, हाल ही में पेपर लीक मामले में एसआईटी का गठन तो कर ही दिया है। केंद्र का इशारा मिला तो मामले की जांच CBI को भेजी जा सकती है।
अगर CBI ने सभी 5 मामलों की फाइलें खोली तो उसकी जांच की आंच पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उनकी कैबिनेट में रहे 4 पूर्व मंत्रियों सहित दो सीनियर IAS अफसरों तक पहुंच सकती है।
संडे बिग स्टोरी में पढ़िए- वे चर्चित मामले कौन से हैं और उनकी जांच कहां तक पहुंची?
1. फोन टैपिंग केस : जांच की आंच पहुंच सकती है पूर्व सीएम गहलोत तक
क्या है मामला? : ये मामला जुलाई, 2020 का है, जब इस घटना से राजस्थान के साथ पूरे देश में हंगामा मच गया था। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खेमे की बाड़ाबंदी के दौरान 15 जुलाई 2020 को 3 ऑडियो क्लिप मीडिया को वॉट्सऐप ग्रुप्स में शेयर की गई थीं।
दावा किया गया था कि कांग्रेस के विधायकों की खरीद-फरोख्त से संबंधित ऑडियो क्लिप की आवाज केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और पायलट खेमे के विधायकों विश्वेंद्र सिंह और भंवरलाल शर्मा के बीच है।
कहां तक पहुंचा मामला?
बीजेपी ने आरोप लगाया था कि गैर कानूनी तरीके से फोन टैपिंग की गई, जो अपराध है। पूर्व संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने राजस्थान विधानसभा में विधायकों की खरीद-फरोख्त के ऑडियो क्लिप को लेकर कहा था कि सीएम के पूर्व ओएसडी लोकेश शर्मा ने ऑडियो क्लिप वायरल की तो क्या गलत किया?
विधानसभा में आए इस स्टेटमेंट के बाद 25 मार्च 2021 को केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने लोकेश शर्मा एवं अन्य के खिलाफ दिल्ली क्राइम ब्रांच में एफआईआर दर्ज करवाई थी। लोकेश शर्मा से कई बार पूछताछ हो चुकी है। हालांकि, लोकेश शर्मा की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगा रखी है।
क्या CBI के पास जाएगा मामला?
बीजेपी ने राजनेताओं की प्राइवेसी भंग करने से जुड़े इस मामले को जोर-शोर के साथ उठाया था। ये मामला इतना गंभीर है कि बड़ी-बड़ी सरकारों को झुकना पड़ा है। भारत में 2 बार फोन टैप और जासूसी की वजह से सरकार गिर चुकी है। साल 1988 में कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली सरकार इसी वजह से गिरी थी।
सीएम के पूर्व ओएसडी होने के नाते लोकेश शर्मा के साथ पूर्व सीएम अशोक गहलोत तक जांच की आंच पहुंच सकती है। केंद्रीय जांच एजेंसी होने के नाते CBI के पास जांच, छापेमारी, गिरफ्तारी करने के साथ अदालत के जरिए सजा तक पहुंचाने का अधिकार है।
अगर विधायक खरीद-फरोख्त में करोड़ों रुपए के लेन-देन के आरोप को साबित करना पड़ेगा तो सीबीआई प्रवर्तन निदेशालय (ED) की मदद ले सकती है। ED पता लगा सकेगी कि किस रूट से पैसा आया और किसके हाथ तक तक पहुंचा।
2. पेपर लीक : ED के बाद डोटासरा व गर्ग के घर तक पहुंच सकती है CBI
क्या है मामला? : राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (REET) भर्ती परीक्षा 2021 का पेपर लीक होने के बाद पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा और राज्यमंत्री सुभाष गर्ग के खिलाफ भाजपा ने CBI से जांच करवाने की मांग की थी। भाजपा ने रीट पेपर आउट मामले में गर्ग के मुख्य सूत्रधार होने के आरोप लगाए थे।
इसके बाद सीनियर टीचर ग्रेड-II प्रतियोगी परीक्षा, 2022 के सामान्य ज्ञान का पेपर लीक होने के मामले में कथित रूप से डोटासरा के बेटों से जुड़े कलाम कोचिंग सेंटर का नाम भी चर्चा में आया था।
रीट पेपर आउट में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन डीपी जारौली बर्खास्त और सचिव अरविंद कुमार सेंगवा सस्पेंड किया गया था। 24 दिसंबर 2022 को लीक हुए वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा के पेपर मामले में भी आरपीएससी सदस्य बाबूलाल कटारा को गिरफ्तार भी किया गया था।
कहां तक पहुंचा मामला? : CBI पर रोक के कारण, हाल ही में कैबिनेट मंत्री बने किरोड़ी लाल मीणा ने तब पेपर लीक मामले की शिकायत ED में की थी। ED ने विधानसभा चुनाव से पहले अक्टूबर में गोविंद सिंह डोटासरा के जयपुर और सीकर स्थित घरों पर रेड डाली थी। इस मामले में डोटासरा को पूराने ई-मेल डिलीट नहीं करने के निर्देश दिए थे।
ED डोटासरा के दोनों बेटों, अभिलाष को 7 नवंबर और छोटे बेटे अविनाश को 8 नवंबर को दिल्ली मुख्यालय में अपना जवाब पेश करने के निर्देश दिए थे। सूत्रों की मानें तो डोटासरा के दोनों बेटों को लेकर ED को कुछ इनपुट मिला था और इसी आधार पर जांच की जा रही है। इस मामले में पूर्व मंत्री गर्ग सवालों के घेरे में तो हैं, लेकिन जांच उन तक नहीं पहुंची।
CBI के पास गया तो? : पेपर लीक में करोड़ों के लेन-देन के आरोप हैं। पेपर लीक माफिया की जड़ तक जाने के लिए CBI जैसी मजबूत जांच एजेंसी की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। राज्य की एजेंसियां भले ही राजनेताओं तक हाथ डालने में झिझकें, लेकिन CBI के हाथ राजनेताओं तक पहुंच सकते हैं।
CBI अपनी जांच में एक-एक कागज (सबूत) पहुंचकर गहन जांच से इकट्ठा करती है और जो मामले को मजबूती देता है। अगर सरकार ने CBI को की तो केस दर्ज कर जांच फिर से शुरू कर सकती है।
3. चंबल रिवर फ्रंट : टेंडर की जांच में घिर सकते हैं धारीवाल, 500 करोड़ के घोटाले के आरोप
क्या है मामला? :पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के पूर्व मंत्री प्रहलाद गुंजल ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। उन्होंने पूर्व यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल पर निविदाओं में 500 करोड़ के घोटाले और एनजीटी के नियम तोड़ने के आरोप लगाए थे।
जब विवाद उठा तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आधी रात को रिवर फ्रंट के उद्घाटन तक को टाल दिया था। CBI पर रोक के कारण प्रहलाद गुंजल ने भी तब इस मामले को एनजीटी में लेकर गए थे। उन्होंने ED जैसी एजेंसियों को भी शिकायत भेजने को कहा था।
कहां तक पहुंचा? : प्रहलाद गुंजल की शिकायत पर एनजीटी ने एक जांच समिति बनाई थी, जिसकी जांच जारी है।
CBI के पास गया तो? : राज्य सरकार भाजपा नेताओं के दबाव में कोटा रिवर फ्रंट की जांच के लिए CBI को सिफारिश भेज सकती है। यदि CBI ने जांच के लिए रजामंदी दे दी तो कांग्रेस के हाड़ौती में बड़े नेता माने जाने वाले धारीवाल तक आंच पहुंच सकती है।
4. जल जीवन मिशन : फंस सकते हैं पूर्व मंत्री महेश जोशी और सीनियर IAS सुबोध अग्रवाल
क्या है मामला? : विधानसभा चुनाव से पहले जल जीवन मिशन को लेकर ED के छापों को कौन भूल सकता है। 26 जगह एक साथ रेड में करीब 12 करोड़ रुपए कैश और 7 करोड़ का सोना मिला था। सीनियर आईएएस सुबोध अग्रवाल के सचिवालय स्थित ऑफिस सहित मंत्री महेश जोशी के स्टाफ के कमरों से कंप्यूटर, हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव, डायरी व दस्तावेज सहित अन्य रिकॉर्ड जब्त किया गया था।
जांच में सामने आया था कि जहां पाइप लाइन डालना बताया, वहां लाइन डाली ही नहीं गई। वहीं, पुरानी पाइप लाइन को नया बता दिया गया। कई किलोमीटर पाइप लाइन डालने के पैसे उठाए गए, मौके पर कुछ नहीं था। मामले में ठेकेदार पदमचंद जैन ने फर्जी कंपनी के सर्टिफिकेट लगाकर टेंडर लिया, जिसकी अधिकारियों को जानकारी होने के बाद भी उसे टेंडर दिया गया। आरोप लगे कि मंत्री के करीबी होने के कारण अधिकारियों ने ऐसा किया।
कहां तक पहुंचा मामला? : ED ने सुबोध अग्रवाल और महेश जोशी के ओएसडी संजय अग्रवाल को पूछताछ के लिए दिल्ली बुलाया था। महेश जोशी के करीबी प्रॉपर्टी कारोबारी संजय बड़ाया के सहयोगी प्रॉपर्टी डीलर रामवतार शर्मा के आवास से भी कैश मिला था। इस मामले की जांच जारी है और अधिकारियों व ठेकेदारों और दलालों से जवाब तलब चल रहा है।
CBI के पास गया तो? : यदि सीबीआई पर रोक नहीं होती तो भाजपा इसकी जांच CBI को ही सौंपने का दबाव जरूर बनाती। लेकिन अब भाजपा के सत्ता में आने के कारण CBI को इस केस की जांच के लिए सिफारिश की जा सकती है। CBI जब इस केस को हैंडल करेगी तो जांच सीनियर आईएएस सुबोध अग्रवाल से आगे पहुंचेगी और गहलोत के करीबी पूर्व मंत्री महेश जोशी तक तक इसकी आंच पहुंच सकती है।
5. सचिवालय की अलमारी में 2.31 करोड़ कैश व गोल्ड …
भाजपा ने सीनियर IAS अखिल अरोड़ा की भूमिका पर उठाए थे सवाल
क्या है मामला? : 20 मई 2023 को योजना भवन में स्थित डीओआईटी कार्यालय में 2.31 करोड़ और 1 किलो सोना बरामद किया गया था। गिरफ्तार हुए संयुक्त निदेशक वेद प्रकाश यादव ने अपने ही कार्यालय की अलमारी में इसे छिपाया था। आरोप लगे थे कि टेंडरों में हेर-फेर करने की एवज में रिश्वत की राशि छिपाने के लिए इसे लॉकर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। भाजपा ने डीओआईटी विभाग का काम देख रहे सीनियर आईएएस अखिल अरोड़ा की भूमिका तक पर सवाल खड़े किए थे।
कहां तक पहुंचा? : अन्य मामलों की तरह ही इस मामले की जांच के लिए ED ने राजस्थान में दस्तक दी थी। गिरफ्तारी के बाद वेद प्रकाश यादव के जयपुर स्थित मुरलीपुरा और यूपी के आजमगढ़ स्थित दो ठिकानों पर छापा मारा गया था। यादव ने अपने नजदीकी लोगों के नाम बताए थे। अभी ईडी की जांच जारी है।
CBI के पास गया तो? : सचिवालय में इतना कैश मिलने के बाद आरोप लगाए गए थे कि ये मामला ऊपर तक के अफसरों से जुड़ा है। पकड़े गए अधिकारी यादव की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपने दम पर इतनी रिश्वत इकट्ठी कर सकें। अगर CBI बारीकी से इस मामले में जांच करेगी तो रिश्वत के इस बड़े नेटवर्क का खुलासा कर सकती है।
गहलोत सरकार ने आखिर क्यों और किन स्थितियों में किए थे CBI के रास्ते बंद
पिछली गहलोत सरकार ने सियासी संकट के दौरान केंद्र पर सरकार गिराने के आरोप लगाते हुए CBI को जांच और छापेमारी की अनुमति वापस ले ली थी। पूर्व सीएम गहलोत का आरोप था कि केंद्र सरकार दबाव बनाने के लिए CBI का दुरुपयोग कर सकती है। गहलोत सरकार ने जुलाई 2020 में CBI को राजस्थान में जांच के लिए दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी।
रोक लगाने के बाद से CBI बिना राज्य सरकार की मंजूरी के कोई जांच या एक्शन नहीं कर पा रही थी। CBI को किसी भी मामले में जांच करने या छापा मारना होता था तो पहले राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होती थी, जो मिलती नहीं थी।
क्या कहते हैं नियम?
सीबीआई का संचालन दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट (DSPE) एक्ट के तहत होता है। इसका सेक्शन 6 सीबीआई को दिल्ली समेत किसी भी केंद्र शासित प्रदेश से बाहर संबंधित राज्य सरकार की अनुमति के बिना उस राज्य में जांच करने से रोकती है।
इसे ऐसे भी समझें- चूंकि सीबीआई के डायरेक्ट ज्यूरिस्डिक्शन में सिर्फ केंद्र सरकार के विभाग और कर्मचारी आते हैं, इसलिए उसे राज्य सरकार के विभागों और कर्मचारियों अथवा राज्यों में संगीन अपराधों की जांच के लिए अनुमति की जरूरत पड़ती है।