ED पर हमला : संघीय व्यवस्था के लिए यह अच्छी बात नहीं ?

ED पर हमला : संघीय व्यवस्था के लिए यह अच्छी बात नहीं
मुझे लगता है कि जांच एजेंसियों के अफसरों पर इस तरह के हमले देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं हैं, राज्य और केन्द्र के रिश्तों के लिए अच्छे नहीं हैं। बंगाल में तेरह साल पहले लेफ्ट फ्रंट की सरकार को ममता ने इसी आधार पर चुनौती दी थी, उसे उखाड़ फेंका था।

पश्चिम बंगाल से हैरान करने वाली खबर आई।  तृणमूल कांग्रेस के नेता के घर छापा मारने पहुंचे  ED के अफसरों पर हमला किया गया, तीन अफसरों के सिर फोड़ दिए गए, उन्हें दौड़ा दौड़ा कर पीटा गया, ED की गाड़ियां तोड़ दी गईं, हालात ये हो गए कि ED के अफसरों को ऑटो में बैठकर वहां से भागना पड़ा। मौके पर  CRPF के 27 जवान मौजूद थे लेकिन भीड़ करीब एक हजार लोगों की थी। ED की टीम तृणमूल कांग्रेस के बाहुबली नेता शाहजहां शेख के घर छापा मारने गई थी।  शाहजहां शेख़ का नाम राशन घोटाले में आया है। शाहजहां शेख़ का लम्बा आपराधिक रिकॉर्ड है। राशन घोटाले के आरोपी ममता सरकार के मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक के क़रीबी हैं। ज्योतिप्रिय मल्लिक का नाम भी राशन घोटाले में है। वो पिछले साल ही गिरफ्तार हो चुके हैं। बीजेपी ने ममता सरकार पर घोटालेबाजों को संरक्षण देने, अफसरों को पिटवाने और संघीय ढांचे को तहस नहस करने का इल्जाम लगाया है। बीजेपी ने इस घटना के बाद ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग की। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने  क़ानून व्यवस्था पर चिंता जताई, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को तलब किया। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के बड़े  नेता ED की टीम पर हमले के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। एक नेता ने कहा कि ED ने छापा मारने से पहले स्थानीय पुलिस को सूचना नहीं भेजी।  लेकिन इलाके के एसपी का कहना है कि ED ने छापा मारने से पहले सुबह साढ़े 8 बजे पुलिस को ई- मेल भेजा था। जब तक पुलिस वहां पहुंचती, उससे पहले ED की टीम वहां पहुंच गई और बवाल हुआ। बंगाल में  जो हुआ उसकी आशंका तो पहले से थी क्योंकि जिस तरह से बंगाल में घोटालों के मामलों में  कार्रवाई हो रही है, उससे ममता बनर्जी परेशान और नाराज हैं। 

बंगाल में टीचर भर्ती घोटाला हुआ, जमीन घोटाला, रोज वैली स्कैम, शारदा चिटफंड स्कैम, राशन घोटाला, ऐसे तमाम घोटाले हुए।  इन घोटालों में पार्थो चटर्जी, ज्योतिप्रिय मल्लिक, मदन मित्रा, मुकुल रॉय, , सुदीप बंदोपाध्याय, तापस पाल जैसे ममता बनर्जी के कई करीबी नेता और उनकी सरकार के कई मंत्री या तो जेल में हैं या जेल जा चुके हैं। कई मामलों में ED और CBI की जांच हो रही है लेकिन बड़ी बात ये है कि ममता बनर्जी ने घोटालों में फंसे अपने नेता या अपने किसी चहेते अफसर  को disown नहीं किया, सबके साथ खड़ी रही हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने जब CBI की टीम पहुंची थी तो ममता खुद पुलिस कमिश्नर के दफ्तर पहुंच गई  और CBI के अफसरों को ही पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। अब उन्हीं राजीव कुमार को दूसरे सीनियर अफसरों को दरकिनार कर ममता ने बंगाल का डीजीपी बना दिया है।

जिस राज्य में खुद मुख्यमंत्री जांच को रोकने पहुंच जाए तो वहां अगर उनकी पार्टी के नेता ED के अफसरों पर हमला करवा दें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि जांच एजेंसियों के अफसरों पर इस तरह के हमले देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं हैं, राज्य और केन्द्र के रिश्तों के लिए अच्छे नहीं हैं। बंगाल में तेरह साल पहले लेफ्ट फ्रंट की सरकार को ममता ने इसी आधार पर चुनौती दी थी,उसे उखाड़ फेंका था। अगर वो बीजेपी पर ईडी के दुरुपयोग का आरोप लगाती हैं तो बंगाल पुलिस का बेजा इस्तेमाल करने को उचित कैसे बता सकती हैं? सरकारें बदलती हैं ,मुख्यमंत्री बदलते हैं, पर सरकारी तंत्र वही रहता है, अफसर वही रहते हैं, उनकी जिम्मेदारियां और अधिकार वही रहते हैं। अगर इस तरह से राज्यों में सेन्ट्रल एजेंसियों पर हमले होने लगे तो सिस्टम का क्या होगा ? कल को अगर रांची में हेमंत सोरेन से पूछताछ करने ED के अफसर जाते हैं, पटना में तेजस्वी यादव से पूछताछ के लिए अधिकारी जाते हैं तो क्या उन पर हमला होगा ? अफसर सिर्फ अपना काम करते हैं, ड्यूटी निभाते हैं, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता कि राज्य में किसकी सरकार है, वो जिस नेता से पूछताछ करने जा रहे हैं या रेड डालने जा रहे हैं वो किस पार्टी का है। इसलिए अफसरों पर हमला ठीक नहीं हैं और अगर किसी राज्य की पुलिस अधिकारियों पर हमले करने वालों को नहीं रोक पाती, तो पुलिस अफसरों के खिलाफ भी एक्शन होना चाहिए। हालांकि ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटनाएं सभी जगह हो रही हैं। शुक्रवार को ED की टीम ने हरियाणा और महाराष्ट्र में भी कई जगह रेड की लेकिन कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई

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