क्यों हिट विकेट हुए UP के दो डॉन … चुनावी मैदान में न मुख्तार, न अतीक; जानिए बाहुबलियों के कदम पीछे खींचने की ये 5 वजहें

यूपी के दो डॉन मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। हैरानी तो ये कि कोर्ट से चुनाव लड़ने की इजाजत मिलने के बाद भी मुख्तार ने मैदान छोड़ दिया है।

अचानक ऐसा क्या हुआ कि इतिहास में पहली बार दोनों ही बाहुबलियों ने चुनाव मैदान से तौबा कर ली। भास्कर ने इसकी पड़ताल की।

आइए बताते हैं कि मुख्तार और अतीक का ‘हृदय परिवर्तन’ क्यों हुआ। साथ ही आप इस सवाल का जवाब देकर पोल में भी हिस्सा ले सकते हैं।

योगी का डर या विरासत आगे बढ़ाने की कवायद

  • मऊ सदर से सपा के पूर्व प्रत्याशी अल्ताफ अंसारी ने निर्दलीय नामांकन कर रखा है। इस बार उन्हें सपा से टिकट नहीं मिला था। पिछली बार अल्ताफ घोषी से चुनाव लड़े थे। अल्ताफ के मैदान में होने से मुख्तार के लिए मुकाबला और टफ हो रहा था।
  • चुनाव हारने का भी खतरा बढ़ गया था। सपा के एक बड़े नेता ने बताया कि पार्टी यदि मुख्तार अंसारी को टिकट देती तो इसका सीधा असर पूरे पूर्वांचल पर होता। बीजेपी जो कि सपा पर कानून- व्यवस्था को लेकर पहले से ही हमलावर है, उसे और आक्रामक होने का मौका मिल जाता।
  • चुनाव आयोग की सख्ती भी एक बड़ी वजह बनती। आयोग ने नियम बना रखा है कि पार्टियों को दागी प्रत्याशियों पर चल रहे मामलों का खुलासा तुरंत करना होगा। इसके लिए अखबारों में विज्ञापन देने तक के निर्देश हैं। इससे सपा की स्थिति कमजोर होती। बीजेपी हमलावर होती तो इसका असर पूर्वी यूपी की करीब 100 सीटों पर पड़ता।
  • मुख्तार की जगह उनके बेटे को टिकट देने से सारे समीकरण सेट रहते। हालांकि, बीजेपी की ओर से प्रचार किया भी जा रहा है कि बाप और बेटे में अंतर क्या है?
  • यूपी के वरिष्ठ पत्रकार परवेज अहमद का कहना है कि एक वजह ये भी है कि मुख्तार पर कई संगीन मुकदमे चल रहे है। ऐसे में उनका नामांकन रद्द होने का भी खतरा था, जिसको देखते हुए मुख्तार ने अपने कदम पीछे खींच लिए।
मुख्तार के बेटे अब्बास (स्काई ब्लू टीशर्ट में) मऊ सदर सीट से सुभासपा के टिकट पर लड़ रहे हैं।

विरासत बेटे को सौंप किंगमेकर बनेंगे मुख्तार

कहा जा रहा है कि विधायक मुख्तार अंसारी ने अपनी सियासी विरासत अपने बेटे अब्बास अंसारी को सौंप दी है और पर्दे के पीछे से किंगमेकर की भूमिका अपना ली है।

अब्बास इस बार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर मऊ सदर सीट से मैदान में हैं। इसका समाजवादी पार्टी से गठबंधन है। अब्बास 2017 में घोसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। बीजेपी के फागू चौहान ने उनको हराया था।

नामांकन करने के बाद अब्बास ने मीडिया से कहा कि हमें भनक थी कि बीजेपी सरकार साजिश करके मुख्तार का पर्चा खारिज करा देगी।

इसे देखते हुए हमें दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ा। इस सीट से मुख्तार पांच बार विधायक रह चुके हैं।

मुख्तार की कसक को इससे समझा जा सकता है कि वह इस बार भी चुनाव लड़ने को तैयार थे। कोर्ट से इसकी इजाजत भी मिल गई थी।

उनके वकीलों ने नॉमिनेशन फॉर्म के दो सेट भी खरीद लिए थे। लेकिन बाद खबर आई कि अंसारी ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।

अतीक की पत्नी ने इसलिए किया चुनाव लड़ने से इनकार

वहीं प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) के दबंग विधायक रहे अतीक अहमद ने पत्नी शाइस्ता परवीन को चुनाव मैदान में उतारा।

शाइस्ता ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM जॉइन की और प्रयागराज के अटाला में ओवैसी ने चुनावी सभा करके शाइस्ता को पार्टी कैंडिडेट के तौर पर पेश भी किया।

यहां तक कि फूलपुर की सड़कों पर अतीक के पोस्टर भी लग चुके थे। लेकिन शाइस्ता ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने प्रयागराज में एक सभा में शाइस्ता को पार्टी कैंडिडेट घोषित किया था।

शाइस्ता के चुनाव न लड़ने की ये हैं खास पांच वजहें:

  • प्रयागराज पश्चिमी से पांच बार विधायक और एक बार फूलपुर से सांसद रहे अतीक अहमद के गुजरात जेल में बंद होने और प्रशासन की कार्रवाई से उनका सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है।
  • अतीक के दोनों बेटे फरार हैं। इससे माना जा रहा है कि 33 साल में पहली बार अतीक परिवार चुनाव से दूर है।
  • पत्रकार परवेज अहमद कहते हैं कि अतीक को अहसास था कि आज के माहौल में चुनाव जीतना आसान नहीं है। पानी की तरह पैसा बहाने का कोई मतलब नहीं है।
  • यह भी कहा जा रहा है कि सियासी दबाव में अतीक के परिवार ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है।
  • मायावती ने अतीक अहमद पर जबरदस्त नकेल कसी थी और 2017 में योगी आदित्यनाथ ने उनके सियासी साम्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। सपा ने भी पूरी तरह से किनारा कर लिया था। इससे अतीक के पास किसी बड़ी पार्टी का बैनर भी नहीं रहा।

मुख्तार-अतीक का नेटवर्क अब टूट चुका है

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार और पूर्वांचल की राजनीति को करीब से देखनेवाले डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह बताते हैं कि आज की तारीख में कई बाहुबली चुनाव लड़ने की हालत में नहीं है। सरकार से डरे हुए हैं।

अतीक और मुख्तार का नेटवर्क भी काफी हद तक टूट चुका है। पहले से जो जुड़े भी थे, उन लोगों ने भी दूरी बना ली है। ऐसे में ये क्या चुनाव लड़ेंगे।

अपराधी या बाहुबली नेटवर्क पर ही निर्भर रहते हैं। उसे बीजेपी सरकार ने तोड़ दिया है।

हालांकि, मुख्तार अंसारी का पुराना सियासी घराना रहा है। इसलिए उनके बेटे का कुछ प्रभाव रह सकता है।

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