एमपी के 72.7 फीसदी बच्चे और 52.9%गर्भवती एनीमिया की शिकार:एक दिन में 22 हजार हेल्थ केयर वर्कर्स की ट्रेनिंग, जच्चा और बच्चा की मौतें रोकने हुई संभाग से गांव तक अमले की जवाबदारी तय
प्रसूताओं और पांच साल तक के बच्चों की मौतों के मामले में एमपी देश के सबसे खराब राज्यों में शुमार है। मप्र में पांच साल से कम उम्र के 72.7 फीसदी बच्चे और 15 से 49 साल की 51.9 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं गंभीर एनीमिया से ग्रस्त हैं। अंड़र-5 चाइल्ड़ और मैटरनल डेथ को कम करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने संभाग से लेकर जिला, ब्लॉक और गांवों में काम करने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स की जवाबदेही तय की है। एसीएस हेल्थ मो.सुलेमान, स्वास्थ्य आयुक्त सुदाम खाडे़, एनएमएम की एमडी प्रियंका दास ने एनएचएम में दिन भर में हुई तीन ट्रेनिंग में करीब 22 हजार कर्मचारियों को यह बताया कि प्रसूताओं और बच्चों की मौतें रोकने के लिए किस कर्मचारी को कब क्या करना है। एसआरएस 2016-18 के मुताबिक एमपी में प्रति हजार 173 प्रसूताओं की मौतें हो रहीं हैं। इसे 2024 तक प्रति हजार सौ तक लाने की योजना बनाई गई है। एसआरएस 2019 के अनुसार एक हजार में से 46 बच्चों की मौतें हो रहीं हैं अगले दो साल में इसे घटाकर 35 तक लाने की कवायद की जा रही है।
एमपी में बच्चों और प्रसूताओं की मौतों की स्थिति 2024 तक घटकर होगी
मृत्यु प्रति हजार माैत : स्त्रोत 2024 तक घटकर इतनी होगी
मातृ मृत्यु अनुपात :173 प्रति हजार (SRS 2016-18) 100
नवजात शिशु मृत्यु दर :35 प्रति हजार (SRS 2018) 35
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एमपी में मेटरनल हेल्थ इंडिकेटर (प्रतिशत में)
मातृ स्वास्थ्य सूचकांक – मप्र – भारत
पहले तीन महीनों में प्रसव पूर्व जांच(ANC) – 75.5 – 70
4 प्रसव पूर्व जांच (ANC) – 57.5 – 58.1
15 से 49 साल की गंभीर एनीमिक गर्भवती – 52.9 – 52.5
आयरन फॉलिक एसिड़ लेने वाली गर्भवती – 51.4 – 44.1
संस्थागत जन्म – 90.7 – 88.6
सरकारी अस्पताल में प्रसव – 80.2 – 61.9
सिजेरियन डिलेवरी – 12.1 – 21.5
प्रायवेट अस्पतालों में सिजेरियन डिलेवरी – 52.3 – 47.4
सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन डिलेवरी – 8.2 – 14.3]
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गर्भावस्था में कब करानी चाहिए प्रसव पूर्व जांच
पहली जांच: गर्भावस्था का पता चलते ही और 12 हफ्ते के भीतर
दूसरी जांच: 13 से 26 हफ्ते में
तीसरी जांच: 27 से 36 हफ्ते में
चौथी जांच: 36 हफ्ते बाद
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दर्ज नहीं हो रही गर्भवती और बच्चों की जानकारी
एनएचएम में ऑनलाइन दी गई ट्रेनिंग में यह बताया गया कि प्रदेश में गर्भवतियों, बच्चों और प्रसव की जानकारी समय से दर्ज नहीं की जा रही है। इसको लेकर आबादी के आधार पर यह बताया कि कितने फीसदी गर्भवती हाई रिस्क हो सकतीं हैं। बच्चों में निमोनियां की पहचान माता कैसे कर सकती है। समय से सही जानकारी दर्ज करने से गर्भवतियों, प्रसूताओं और बच्चों में हाई रिस्क का मूल्यांकन कर उन्हें उपचार मुहैया कराया जा सकेगा।
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ऐसे करें हाई रिस्क शिशुओं की पहचान
- एसएनसीयू से डिस्चार्ज होने वाले नवजात
- 34 हफ्ते से पहले जन्मे नवजात
- जन्म के समय दो किलो से कम वजन वाले नवजात
इन बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास में देरी, कुपोषण और मौत की संभावना ज्यादा रहती है।
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तीन स्तर पर 22 हजार कर्मचारियों की ट्रेनिंग
सुबह 11 बजे से 2 बजे : जिलों के एनआईसी स्टूडियो से हुई ट्रेनिंग में संभाग और जिला स्तर के अधिकारियों को मेटरनल एंड चाइल्ड हेल्थ प्रोग्राम के तहत ओरिएंटेशन दिया गया। इसमें 7 क्षेत्रीय संचालक, 14 क्षेत्रीय उप संचालक, 7 आरएमएनसीएच कॉर्डिनेटर, 51 सीएमएचओ, 51 सिविल सर्जन, 80 जिला स्वास्थ्य अधिकारी (डीएचओ1 और 2), 51 जिला टीकाकरण अधिकारी, डीपीएम, और जिला कम्युनिटी मोबिलाइजर्स को जवाबदेही बताई गई।
11 बजे से 3 बजे तक : सभी 313 ब्लॉक के बीएमओ, ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर, और 5170 कम्युनिटी हेल्थ ऑफीसर (CHO) की वेबैक्स से ट्रेनिंग हुई।
शाम 3 से 5 बजे तक: 1800 ब्लॉक कम्युनिटी मोबिलाइजर और मेल सुपरवाइजर्स के साथ प्रदेश भर की 15 हजार एएनएम को वेबैक्स के जरिए ट्रेनिंग दी गई।