UP और बिहार के भइये घर लौटे तो घुटनों पर आ गया था पंजाब; जानिए इस चुनाव में कितने अहम होंगे प्रवासी मजदूर

पिछले दिनों पंजाब में चुनाव प्रचार करते समय CM चरणजीत सिंह चन्नी की जुबान फिसल गई। उन्होंने कहा, ‘बिहार, UP और दिल्ली के भइयों को यहां आकर राज नहीं करने देना है।’ CM चन्नी के इस बयान पर पलटवार करते हुए बिहार के CM नीतीश कुमार ने कहा, ‘यहां के लोगों ने अपने खून और पसीने से पंजाब को बेहतर बनाया है और बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला है। किसी को इस तरह की बात करने से बचना चाहिए।’

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत दूसरे दलों ने CM चन्नी को जमकर घेरा और इस बयान की निंदा की। जिसके बाद चन्नी को अपनी सफाई में दूसरा वीडियो जारी करना पड़ा। उन्होंने कहा कि वह प्रवासियों के लिए नहीं, बल्कि केजरीवाल और संजय सिंह जैसे लोगों के लिए ऐसी बात कह रहे थे।

आज भास्कर इंडेप्थ में जानते हैं कि अपने राज्यों की दुर्दशा से भागकर UP-बिहार के प्रवासी मजदूरों ने पंजाब की अर्थव्यवस्था को कैसे संवारा? इन मजदूरों को भइये क्यों कहते हैं? इन भइयों के जाने से पंजाब कैसे डगमगा जाता है और इतनी मेहनत के बावजूद इन प्रवासी मजदूरों को क्या मिलता है? पंजाब चुनाव में कितने अहम होंगे प्रवासी मजदूर?

पंजाब में भइया किसे और क्यों कहते हैं?

1960 में हरित क्रांति के बाद से ही बिहार और UP से बड़ी संख्या में प्रवासी रोजगार के लिए पंजाब जाते हैं। पंजाब की कृषि, इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर को आगे बढ़ाने में प्रवासियों ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पूर्वांचल के लोग आपस में बात करते वक्त एक दूसरे को भइया कहकर संबोधित करते हैं।

इसी वजह से पंजाब के लोग भी वहां काम करने वाले UP और बिहार के लोगों के लिए भइया शब्द का इस्तेमाल करने लगे। धीरे-धीरे ये शब्द पंजाब में प्रवासी मजदूरों की पहचान बन गई।

जानें कैसे पंजाब के विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं UP-बिहार के भइये

सीएम चन्नी जिन्हें भइये कहकर पुकार रहे थे उनकी कमी के कारण पंजाब की इकोनॉमी घुटनों के बल आ गई थी। इन प्रवासियों की पंजाब के विकास में अहम भागीदारी है। जिसकी हकीकत लॉकडाउन में पता चली। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान करीब 18 लाख प्रवासी मजदूरों ने घर लौटने के लिए पंजाब सरकार की वेबसाइट पर अप्लाई किया था। इनमें से 10 लाख UP जबकि 6 लाख बिहार जाने वाले थे।

राज्य की अर्थव्यवस्था में सर्विस सेक्टर, इंडस्ट्री और कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मजदूरों के पंजाब छोड़ने की वजह से इन तीनों ही सेक्टर पर बुरा प्रभाव पड़ा। अब एक-एक कर तीनों सेक्टर की बात करते हैं…

  • इंडस्ट्री सेक्टर: पंजाब की इकोनॉमी को मजबूत बनाने में कपड़ा, साइकिल और चमड़ा उद्योग ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लॉकडाउन के दौरान ऑल इंडिया साइकिल मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष ओंकार सिंह पाहवा ने कहा था कि प्रवासी मजदूर के वापस जाने से साइकिल इंडस्ट्री पूरी तरह से तबाह हो गई।
  • फरवरी 2021 में कोरोना काल के दौरान साइकिल की मांग तेजी से बढ़ी, लेकिन कल-पुर्जे और मजदूरों के अभाव में कंपनियों ने ऑर्डर लेना बंद कर दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि जो लोग 2 लाख प्रतिमाह कमाते थे, इस दौरान उनकी आय 50 हजार हो गई थी। इसी तरह मजदूरों के अभाव में टेक्सटाइल इंडस्ट्री की आमदनी में भी 70% की कमी आई।
  • सर्विस सेक्टर: इकोनॉमिक सर्वे 2022 की रिपोर्ट में पंजाब उन तीन राज्यों में शामिल है, जहां 2020-21 में सर्विस सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। 2019 से 2020 तक पंजाब की इकोनॉमी में सर्विस सेक्टर का GVA (ग्रॉस वैल्यू एडेड) 42.34% था, जबकि 2020 से 2021 में यह घटकर 41.83% है। किसी राज्य या सेक्टर का GVA उस राज्य की GDP में सब्सिडी और टैक्स घटाकर निकाला जाता है।

एक्सपर्ट का कहना है कि कोरोना काल में हर राज्य का सर्विस सेक्टर प्रभावित हुआ है, लेकिन पंजाब के ज्यादा प्रभावित होने की वजह वहां से मजदूरों का पलायन रहा है।

  • कृषि: पंजाब में कृषि क्षेत्र में काम करने वाले खेत मजदूरों की संख्या करीब 15 लाख है। हर साल खेती के काम के लिए वहां अतिरिक्त 6 लाख प्रवासी मजदूरों की जरूरत होती है। कोरोना काल में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर अपने घर लौट गए थे। पंजाब में 5% से 7% प्रवासी मजदूर ही रह गए थे। ऐसे में स्थानीय मजदूरों ने अपनी मजदूरी 25% से 55% तक बढ़ा दी थी। 2020-21 में पंजाब में प्रति हेक्टेयर 3% कम गेहूं की उपज हुई। इसकी एक मुख्य वजह मजदूरों या मानव कामगारों के आभाव में बुआई प्रभावित होना भी था।

पंजाब के कई पंचायत ने तो अपने गांव के मजदूरों के लिए फरमान जारी कर दूसरे गांव में मजदूरी करने तक से मना कर दिया था। भारतीय किसान यूनियन के जनरल सेक्रेटरी जगमोहन सिंह का कहना है कि पंजाब में स्थानीय खेत मजदूरों की संख्या 15 लाख है। इसके बावजूद यहां के लोग बिहार और UP के मजदूरों से काम करवाना ज्यादा पसंद करते हैं। इसकी वजह है कि वह कम पैसे लेते हैं, अपने काम में एक्सपर्ट होते हैं, समय से फसल की बुआई-कटाई आदि कर देते हैं।

वीडियो में देखिए लॉकडाउन के दौरान जब प्रवासी मजदूर घर लौटे तो पंजाब के किसानों की हालत ये हो गई कि उन्हें पंचायत कर अपने गांव के मजदूरों को बाहर मजदूरी नहीं करने का फरमान जारी करना पड़ा था।

पंजाब चुनाव में प्रवासी मजदूरों की क्या कोई भूमिका है?

लुधियाना की पांच सीटों- लुधियाना पूर्व, लुधियाना दक्षिण, लुधियाना उत्तर, साहनेवाल और लुधियाना पश्चिम में प्रवासी मतदाताओं की महत्वपूर्ण आबादी है। पंजाब में सबसे ज्यादा प्रवासी मतदाता साहनेवाल में रहते हैं, जिनकी संख्या 50,000 से ज्यादा हैं। फतेहगढ़ साहिब, जालंधर, अमृतसर, बठिंडा, फगवाड़ा, होशियारपुर इलाकों में भी इनका असर है, लेकिन सबसे ज्यादा असर लुधियाना में ही है। यही वजह है कि पंजाब में चुनाव के दौरान प्रचार के लिए भोजपुरी स्टार, बिहार और UP के नेता भी आते हैं।

पंजाब में दिन-रात मेहनत करने वाले प्रवासी मजदूरों को बदले में क्या मिलता है?

पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के कुछ प्रोफेसर्स ने मिलकर पंजाब में रहने वाले प्रवासी मजदूरों पर एक रिसर्च कि है। इस रिसर्च में 1567 प्रवासी मजदूरों को शामिल किया गया है। जिसके जरिए इन मजदूरों के काम करने के तरीके उनकी आमदनी और रहन-सहन की जानकारी हासिल की गई।

इसमें पाया गया कि पंजाब में दिन-रात काम करने वाले 58% से ज्यादा प्रवासियों की आमदनी 8 हजार रुपए से कम है। महज 18.39% प्रवासी कामगारों को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी मिल पाती है। EPF के तहत भविष्य निधि में महज 5.55% प्रवासी मजदूरों का पैसा जमा होता है।

पंजाब के अलावा किन राज्यों में कितने सिख रहते हैं

ऐसा नहीं है कि सिर्फ UP और बिहार के लोग ही पंजाब या दूसरे प्रदेश में रहते हैं। यह तो हिंदुस्तान की रवायत है कि कन्याकुमारी में पैदा होने वाला, पढ़ाई दिल्ली और नौकरी मुंबई में कर सकता है। इतिहास की ओर मुड़ कर देखें तो पूरी दुनिया घूमने वाले गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को तख्त श्री पटना हरमिंदर साहिब में हुआ था। इसके बाद 1670 में वह अपने पिता और परिवार के साथ पंजाब लौट आए। फिर मार्च 1672 में वह आनंदपुर में भी रहे थे।

इसी तरह 2011 की जनगणना के मुताबिक पंजाब के अलावा बिहार और UP में क्रमश: 23,779 और 6,43,500 सिख समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग रहते हैं। आजादी के बाद बड़ी संख्या में सिख समुदाय के लोग पीलीभीत, सहारनपुर, लखीमपुर खीरी, कुशीनगर, रामपुर, बिजनौर जिले में आकर बस गए। इस क्षेत्र को अब लोग मिनी पंजाब कहते हैं। उत्तराखंड में भी 2,36,340 यानी कुल जनसंख्या का 2.34% सिख लोग रहते हैं। दिल्ली की कुल जनसंख्या का 3.40% यानी 5,70,581 लोग सिख समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जम्मू कश्मीर में भी कुल जनसंख्या का 1.87% सिख समुदाय है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *