केजरीवाल जिस गुरिंदर सिंह के घर पर रुके थे क्या वह आतंकी है? जानिए दिल्ली CM से उसका कनेक्शन

पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले खालिस्तान और आतंकवाद को लेकर राजनीति अपने चरम पर है। बीजेपी, कांग्रेस, अकाली दल जैसी पार्टियां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पांच साल पहले गुरिंदर सिंह नामक शख्स के घर पर ठहरने के लिए उन्हें आतंकियों का समर्थक करार दे रही हैं। ये पार्टियां केजरीवाल पर चुनाव जीतने के लिए अलगाववादियों का समर्थन करने का आरोप लगा रही हैं।

चलिए जानते हैं आखिर कौन हैं गुरिंदर सिंह, जिसके नाम पर पंजाब में जमकर हो रही है राजनीति? क्या गुरिंदर सिंह वाकई आतंकी है? केजरीवाल का गुरिंदर से क्या रिश्ता है?

कौन हैं गुरिंदर सिंह?

गुरिंदर सिंह पंजाब के मोगा का रहने वाला है। मोगा स्थित गुरिंदर के पैतृक गांव घाल कलां में उसका एक घर है, जिसे वह लीज पर देता है। 2017 में गुरिंदर सिंह इंग्लैंड चला गया था और वहां की नागरिकता ले ली थी। अब वह अपना अधिकतर समय वहीं बिताता है।

बम धमाकों में आया था गुरिंदर सिंह का नाम, बरी हो गया था

1997 में पंजाब के मोगा जिले के बाघापुराना के पास स्थित एक मंदिर में हुए बम धमाके में गुरिंदर सिंह का नाम आया था। गुरिंदर पर इन धमाकों को अंजाम देने वाले खालिस्तान कमांडो फोर्स यानी KCF का मेंबर होने का आरोप लगा था।

गुरिंदर को अदालत ने 7 जनवरी 2003 को भगोड़ा घोषित किया था, जिसके बाद उसने सरेंडर कर दिया था। हालांकि बाद में अदालत ने गुरिंदर को इन आरोपों से बरी कर दिया था।

2008 में गुरिंदर सिंह पर मोगा में धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगा था। उस पर गाय की पूंछ काटकर मंदिर में फेंकने के मामले में केस दर्ज हुआ था। लेकिन इस मामले में भी कोर्ट ने उसे आरोपों से बरी कर दिया था।

गुरिंदर पर दिसंबर 2011 में भी एक बम ब्लास्ट में शामिल होने के आरोप में केस दर्ज हुआ था, लेकिन इस मामले से भी वह बरी हो गया था।

गुरिंदर पर बाघापुराना, मोगा, अमृतसर में हत्याओं और आर्म्स एक्ट के कई केस दर्ज हुए थे, लेकिन वह सब में बरी हो गया था।

 

गुरिंदर सिंह को लेकर केजरीवाल पर क्यों हमलावर है विपक्ष?

2017 पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी ने पंजाब की राजनीति में डेब्यू किया था। उस समय आप के प्रचार के लिए केजरीवाल ने पूरे राज्य में भ्रमण करते हुए जोरदार प्रचार किया था। इस दौरान केजरीवाल आप समर्थकों के घर पर रुके थे।

चुनावों से पहले 29 जनवरी 2017 को केजरीवाल गुरिंदर सिंह के घर पर रुके थे। हालांकि जब केजरीवाल गुरिंदर सिंह के घर पर रुके थे, तो वह वहां मौजूद नहीं था। केजरीवाल के गुरिंदर सिंह के घर पर रुकने के दो दिन बाद बठिंडा जिले के मौर मंडी में दो बम धमाके हुए थे, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई थी।

शुरुआती जांच में पुलिस ने इन धमाकों के पीछे खालिस्तानियों का हाथ होने का आरोप लगाया था। तब कांग्रेस और अकाली दल ने इन बम धमाकों का कनेक्शन केजरीवाल के गुरिंदर सिंह के घर जाने से जोड़ते हुए दिल्ली के सीएम पर हमला बोला था।

अब 2022 विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस, अकाली दल, बीजेपी समेत पंजाब की सभी विपक्षी पार्टियां 5 साल पहले केजरीवाल की गुरिंदर सिंह के घर की उसी यात्रा को लेकर उन पर और आप पर आतंकियों का समर्थक होने का आरोप लगा रही हैं।

2017 के विवाद से कांग्रेस को हुआ था फायदा

विश्लेषकों का मानना था कि 2017 में केजरीवाल के गुरिंदर सिंह के घर पर रुकने को लेकर हुए विवाद से कांग्रेस को फायदा और आम आदमी पार्टी को नुकसान हुआ था। तब प्रतिद्वंद्वी दलों ने इस बात के लिए भी आप को घेरा था कि कैसे उसने कभी भी मौर धमाके के दोषियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर आवाज नहीं उठाई। इस कंफ्यूजन का पूरा फायदा चुनावों में कांग्रेस को हुआ था।

2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी मोगा सीट 2 हजार से भी कम वोट के अंतर से हार गई थी। इन चुनावों में पंजाब की 117 सीटों में से कांग्रेस ने 77 सीटें जीतते हुए प्रचंड बहुमत हासिल किया था, तो आम आदमी पार्टी केवल 20 सीटें ही जीत पाई थी।

पुलिस की जांच में बाद में पता चला था कि मौर धमाकों का कोई खालिस्तानी लिंक नहीं था। उन धमाकों में भूमिका को लेकर डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ जांच अब भी जारी है।

AAP ने विवाद को बताया विपक्ष की सांठगांठ

पंजाब चुनावों से पहले इस विवाद की शुरुआत आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे कुमार विश्वास के उस बयान से हुई जिसमें उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल चुनाव जीतने के लिए अलगाववादी तत्वों से समर्थन लेने को तैयार थे।

कुमार विश्वास ने एक इंटरव्यू में कहा कि केजरीवाल ने उनसे कहा था कि वह या तो पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे या एक स्वतंत्र देश के पहले प्रधानमंत्री बनेंगे।

इस मामले पर विवाद बढ़ता देख अरविंद केजरीवाल ने सफाई देते हुए खुद को दुनिया का सबसे ‘स्वीट आतंकवादी’ बताया, जो लोगों के लिए स्कूल, सड़कें और अस्पताल बनवाता है। केजरीवाल ने इस विवाद को लेकर विपक्षी पार्टियों पर सांठगांठ कर अपने खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया।

2017 में गुरिंदर सिंह के घर पर रुकने को लेकर हुए विवाद पर तब पंजाब मामलों के आप के प्रमुख संजय सिंह ने कहा था कि केजरीवाल की गुरिंदर सिंह के घर जाने और वहां रुकने के लिए पूरे प्रोटोकॉल का पालन किया गया था और इसके बारे में पहले ही पंजाब पुलिस को जानकारी दे दी गई थी। अगर वहां जाने में कुछ भी आपत्तिजनक था, तो पुलिस को पहले ही आम आदमी पार्टी को सूचना देनी चाहिए थी।

संजय सिंह ने ये भी दावा किया था कि एक स्थानीय पुलिस अधिकारी और एक जॉइंट कमिश्नर लेवल के अधिकारी भी गुरिंदर के लीज के घर में रह रहे थे, तो क्या वे भी आतंकवादी हैं?”

उस समय पुलिस ने स्पष्ट किया था कि गुरिंदर को अदालतों ने बरी कर दिया था।

क्यों उठता है पंजाब चुनावों से पहले खालिस्तान का मुद्दा?

1980 के दशक में पंजाब को भारत से अलग करके खालिस्तान बनाने की मांग के साथ एक अलगाववादी आंदोलन ने जोड़ पकड़ा। खालिस्तान की मांग को लेकर 1980 और 1990 के दशक में पंजाब में बहुत हिंसा हुई, इसमें हजारों सिख और हिंदू मारे गए।

पंजाब लगभग एक दशक तक आतंकवाद से झुलसता रहा है। जानकारों का कहना है कि चुनावों से ठीक पहले राजनीतिक दल खालिस्तान, 1984 दंगे जैसे मुद्दे उछालकर वोट हासिल करने की कोशिश करते हैं। धार्मिक कट्टरपंथियों को अपनी ओर करने के लिए हर चुनाव से पहले खालिस्तान का मुद्दा उछाला जाता है। लेकिन अब खालिस्तान का समर्थन करने वाले लोगों की संख्या काफी कम हो चुकी है।

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