अगर राष्ट्र और समाज को हमारी संतान की जरूरत हो तो संतान को रोकना नहीं चाहिए

कहानी

शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय स्वामी का पालन-पोषण 6 कृतिकाओं ने किया था, इस वजह से उनका नाम कार्तिकेय पड़ा था। जब भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने सेवक भेजकर बालक कार्तिकेय को कैलाश पर्वत पर बुला लिया था।

शिव जी और पार्वती जी बहुत आनंद में थे कि उनका पुत्र उनके पास वापस आ गया है। देवताओं ने इस बच्चे को विद्या, शक्ति, अस्त्र-शस्त्र दे दिए। लक्ष्मी जी ने एक दिव्य हार दिया। सरस्वती जी ने सिद्ध विद्याएं दीं। कैलाश पर महोत्सव मनाया जा रहा था। उस समय सभी देवता शिव-पार्वती के पहुंचे और बोले, ‘तय ये हुआ है कि ये बालक तारकासुर नाम के असुर को मारेगा, जिसने हमें बहुत परेशान कर रखा है। आपका ये बालक जिसे हम सब कुमार कहते हैं, आपके पास आ गया है। अब आप इसे हमें सौंप दीजिए। इसके पास इतनी योग्यता है कि ये देवताओं का सेनापति बन सकता है।’

शिव-पार्वती ने विचार किया कि पुत्र अभी-अभी आया है, लेकिन लोक कल्याण के लिए हमें इसे सौंप देना चाहिए। उन्होंने कार्तिकेय को आशीर्वाद देकर भेज दिया। कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया।

सीख

इस कथा का संदेश ये है कि माता-पिता अपनी संतान को योग्य बनाएं, इसमें कोई कमी न रखें, योग्य संतान को समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाएं। जब समाज और राष्ट्र को हमारी योग्य संतान की जरूरत हो तो उन्हें रोकना नहीं चाहिए। जब बच्चे समाज और राष्ट्र के लिए अच्छे काम करेंगे तो पूरे परिवार और वंश को मान-सम्मान मिलता है, जैसा कार्तिकेय स्वामी ने शिव-पार्वती का नाम ऊंचा किया था।

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