खुद्दार कहानी …. MNC में जॉब करने वाले रामवीर ने वीक ऑफ पर घूम-घूमकर गांवों में लाइब्रेरी खोलीं, ताकि बच्चे पढ़ें और नशे से बचें

आज की खुद्दार कहानी में जानते हैं कि कैसे रामवीर ने गरीब बच्चों के अधिकार को पूरा करने की पहल की और किस तरह सैकड़ों गांव में लाइब्रेरी खोलने की शुरुआत हुई।

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रामवीर अपनी नौकरी के साथ-साथ समाज में बदलाव लाने का काम करने में जुटे हैं।

बच्चों को नशे की ओर बढ़ता देख आया आइडिया
33 साल के रामवीर बीटेक की पढ़ाई करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे हैं। अपनी नौकरी के साथ-साथ समाज में बदलाव लाने का काम करने में जुटे हैं। इन्हें गरीब बच्चों के लिए लाइब्रेरी खोलने का आइडिया साल 2018 में आया। जब उन्होंने अपने गांव झुंडपुरा में देखा कि बच्चे पढ़ाई की तरफ नहीं, बल्कि नशे की चपेट में आ रहे हैं। गांव में बना पंचायत कार्यालय एक खंडहर में तब्दील हो रहा था, जो नशे का अड्डा भी बनता जा रहा था। यह देख रामवीर ने सोचा कि क्यों न इस कार्यालय को एक लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया जाए।

मिशन हंड्रेड रूरल लाइब्रेरी के साथ ग्राम पाठशाला की हुई शुरुआत
रामवीर ने मिशन हंड्रेड रूरल लाइब्रेरी नाम से अपने इस नए सफर की शुरुआत की। उनके इस सफर में कई चुनौतियां भी आईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार 100 लाइब्रेरी खोलने के साथ उनका सपना पूरा हुआ। लाइब्रेरी शुरू करने के बाद वे रुके नहीं। उन्होंने ग्राम पाठशाला बनाने का निर्णय लिया।

ग्राम पाठशाला की शुरुआत अगस्त, 2020 में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के गनौली गांव में एक लाइब्रेरी के निर्माण के साथ हुई। गांव के सरकारी नौकरियां कर रहे युवाओं ने इस काम में उनकी मदद की। उन्होंने खंडहर पड़े पंचायत घर को ग्राम प्रधान की सहमति से अपने जिम्मे लिया। इसे अपने पैसे से एक नि:शुल्क आधुनिक लाइब्रेरी में बदल दिया, ताकि गांव के बच्चे किसी भी समय इसमें आकर पढ़ाई कर सकें। इस मॉडर्न लाइब्रेरी में 67 बच्चों के बैठने की व्यवस्था की गई।

लाइब्रेरी में बच्चों की संख्या बढ़ी और जगह कम पड़ने लगी
इस पुस्तकालय में धीरे-धीरे बच्चों की भीड़ लगने लगी। आसपास के गांवों के बच्चे भी यहां आकर पढ़ने लगे। इस तरह लाइब्रेरी में बच्चों के बैठने की जगह कम पड़ने लगी। ऐसे में टीम के सदस्य लाल बहार जो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में बतौर इंस्पेक्टर तैनात हैं, ने अपनी टीम के सामने एक विचार रखा कि क्यों न हम आसपास के गांवों में जाकर वहां के जिम्मेदार लोगों से बात करें और उन्हें भी उनके गांव में लाइब्रेरी बनाने के लिए प्रेरित करें। टीम के सभी साथी इस सुझाव से सहमत हुए और अब टीम का नाम ‘ग्राम पाठशाला’ रखकर अलग-अलग गांवों में जाना शुरू किया गया।

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रामवीर की पहली लाइब्रेरी में 67 बच्चों के बैठने की व्यवस्था है।

गांव के ही सफल लोगों का समूह कर रहा ग्राम पाठशाला के लिए काम
टीम ग्राम पाठशाला न तो कोई औपचारिक संगठन है और न ही कोई NGO है। ये कुछ उच्च शिक्षित और सफल लोगों का समूह है। टीम के ज्यादातर सदस्य नौकरी-पेशा हैं, जो सरकारी या प्राइवेट नौकरियां करते हैं। इनमें प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर और खिलाड़ी शामिल हैं। इस संगठन में न तो कोई पद है और न ही कोई पदाधिकारी है। टीम ग्राम पाठशाला के लोगों का संकल्प है कि जब तक देश के हर गांव में पुस्तकालय नहीं बन जाता, तब तक कोई भी छुट्टी के दिन अपने घर पर नहीं रहेगा।

250 से भी ज्यादा गांवों में खुली लाइब्रेरी
इसी का परिणाम रहा कि दूसरे गांवों के लोगों ने टीम ग्राम पाठशाला को भरपूर समर्थन दिया और अपने गांव में लाइब्रेरी बनानी शुरू कर दी। इस तरह टीम ग्राम पाठशाला की प्रेरणा से अभी तक उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा के 250 से भी ज्यादा गांवों में पुस्तकालय बन चुके हैं।

हर छुट्टी के दिन गांव-गांव जाते हैं लाइब्रेरी का महत्व समझाने
टीम ग्राम पाठशाला की खासियत यह है कि ये किसी भी तरह के आर्थिक लेनदेन में शामिल नहीं होती है। इसका काम केवल गांव के लोगों को लाइब्रेरी निर्माण के लिए प्रेरित करना है। टीम के साथी हर छुट्टी के दिन गांव-गांव जाते हैं और जन-जागरण के उद्देश्य से पैदल यात्रा, साइकिल यात्रा करके लोगों के साथ मीटिंग करते हैं। इस मीटिंग में लोगों को लाइब्रेरी का महत्व समझाया जाता है। उन्हें प्रेरित किया जाता है कि वे अपने गांव के बच्चों के लिए गांव में ही पुस्तकालय का निर्माण करें। फिलहाल ग्राम पाठशाला की टीम में करीब 250 लोग एक्टिव काम कर रहे हैं।

साइकिल यात्रा कर प्रवीण कर रहे जागरूक
प्रवीण बैसला रामवीर के मिशन का हिस्सा हैं। वे साइकिल यात्रा कर जन-जन को लाइब्रेरी खोलने के लिए जागरूक कर रहे हैं। ये साइकिल मैन के तौर पर जाने जाते हैं। प्रवीण ने कड़ाके की ठंड में भी साइकिल यात्रा कर लोगों को जागरूक करने का काम किया है।

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इस टीम का सपना है कि भारत विश्व पुस्तकालय वाला देश जाना जाए।

कई गांव में नजर आए चमत्कारिक बदलाव
अब युवा सोशल मीडिया पर समय गुजरने के बजाय अपनी लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ने लगे हैं। युवा अपराध और नशे की दुनिया में जाने के बजाय पढ़ाई की तरफ रुख कर रहे हैं। मतलब एक लाइब्रेरी पूरे गांव का माहौल बदल रही है। इसी के साथ कई गांव के युवा अब पहले से ज्यादा तादाद में रोजगार हासिल करने में सफल हो रहे हैं।

मकसद से भटके नहीं इसलिए टीशर्ट पर लिख रखा है संकल्प
टीम ग्राम पाठशाला का संकल्प है कि जब तक देश के हर गांव में लाइब्रेरी नहीं बन जाती, तब तक मिशन चलता रहेगा। देश में इस समय कुल 6,64,369 गांव हैं। वे इन सभी गांवों में पुस्तकालय बनवाना चाहते हैं। ताकि बच्चे-बच्चे को उनके गांव में ही पढ़ने के लिए लाइब्रेरी मिल जाए और भारत पुस्तकालय वाला देश जाना जाए। वे अपने इस मकसद से भटके नहीं इसलिए टीशर्ट पर अपने लक्ष्य को छपवा रखा है। कल को वर्तमान टीम के मेंबर दुनिया में नहीं भी रहे तो कोई न कोई सदस्य इस मिशन को आगे बढ़ाता जाएगा। इसके लिए वे हर एक गांव के किसी न किसी व्यक्ति को संकल्प दिलवाने में भी लगे हैं।

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