यूपी ने प्रियंका की लीडरशिप को नकारा …. दशकों से संभाल कर रखा तुरुप का पत्ता किसी काम का नहीं निकला; डेब्यू में ही प्रियंका सुपर फ्लॉप

2022 यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 30 साल बाद प्रियंका की अगुवाई में सभी 403 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। लड़की हूं,लड़ सकती हूं के नारे के साथ प्रियंका ने 40% महिलाओं को ट‍िकट द‍िए। हालांकि, नतीजों में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले विधानसभा चुनाव से भी खराब रहा । पार्टी 403 सीटों में केवल 2 सीटों पर ही कामयाबी पा सकी।

नतीजों से यह साफ हो गया है कि सूबे की जनता ने प्रियंका की लीडरशिप को नकार दिया है। इससे उनका राजनीतिक डेब्यू सुपरफ्लॉप साबित हुआ है।

बीते 17 साल से कांग्रेस की राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं प्रियंका 2019 में राष्ट्रीय महासचिव बनाई गईं। सबको लगने लगा था कि वो ही कांग्रेस के डूबते हुए जहाज को किनारे तक ले जाएंगी। लेकिन 2022 के चुनाव ने सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। लगभग दो दशकों से संभालकर रखा गया कांग्रेस का तुरुप का पत्ता कैसे अपने पहले ही दांव में बेकार चला गया। आइए एक-एक करके कहानी में उतरते हैं।

ये कहानी शुरू होती है 2004 के लोकसभा चुनाव से…

साल 2004: पॉलिटिक्स में पहली बार आया प्रियंका का नाम
प्रियंका की पढ़ाई दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में हुई। फिर दिल्ली के जेएमसी कॉलेज से साइकोलॉजी पढ़ीं। 1997 में उनकी शादी व्यापारी रॉबर्ट वाड्रा से हो गई। शादी के 7 साल बाद साल 2004 में प्रियंका का नाम पहली बार पॉलिटिक्स के गलियारों में गूंजा। वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब 24 अकबर रोड में इस बारे में तफसील से बताया है।

साल 2004 में मां सोनिया के लिए प्रचार करती प्रियंका गांधी।
साल 2004 में मां सोनिया के लिए प्रचार करती प्रियंका गांधी।

किदवई ने लिखा, “साल 2004 था। देश में लोकसभा चुनाव थे। सोनिया जगह-जगह जाकर रैलियां कर रही थीं। तब प्रियंका भी पहली बार मां के लिए प्रचार करने कई मंचों पर गईं। प्रियंका का जुझारूपन देखकर राजनीतिक जानकार कहने लगे थे कि वो दादी इंदिरा की तरह देश की बड़ी नेता बनेंगी।”

किताब में यह भी लिखा है कि इसी चुनाव के शुरुआती दौर में कांग्रेस की हालत पतली नजर आ रही थी। तब प्रियंका के कहने पर ही एक ऐड एजेंसी रखी गई थी। इसका फायदा कांग्रेस को बाद में मिला।

साल 2009: अमेठी-रायबरेली में चुनाव प्रचार किया तो महिलाओं ने कहा – चौखट पर फिर आ गईं इंदिरा

अमेठी में राहुल के साथ कार चलाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंची प्रियंका। तस्वीर 2009 की है।
अमेठी में राहुल के साथ कार चलाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंची प्रियंका। तस्वीर 2009 की है।

लोकसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी में प्रचार के लिए कांग्रेस ने प्रियंका को जिम्मा दे दिया था। इस चुनाव में प्रियंका गांव-गांव घूमीं। सड़क पर पैदल रैलियां भी की। 20 अप्रैल को प्रचार के लिए प्रियंका जब गौरीगंज के एक गांव में पहुंची तो महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। एक महिला ने उनके गाल पर हाथ फेरते हुए कहा, “ लागत है गांव मा इंदिरा आ गईं।” ये वो दौर था जब जनता प्रियंका के चेहरे मोहरे में उनकी दादी इंदिरा की झलक देखने लगे थे।

साल 2014: प्रियंका का भाषण बन गया पॉलिटिकल मुद्दा
2014 के लोकसभा चुनाव में जब सोनिया और राहुल देश के बाकी हिस्सों में प्रचार कर रहे थे। प्रियंका, अमेठी और रायबरेली संभाल रही थी। इस दौरान उन्होंने 5 मई 2014 में नरेंद्र मोदी पर एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, “ नरेंद्र मोदी ने अमेठी की धरती पर मेरे शहीद पिता का अपमान किया है, यहां की जनता इन्हें कभी माफ नहीं करेगी। इनकी नीच राजनीति का जवाब मेरे बूथ कार्यकर्ता देंगे।”

अमेठी में स्मृति ईरानी के लिए प्रचार करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि जब राजीव गांधी कांग्रेस महासचिव थे तो उन्होंने हवाईअड्डे पर आंध्र प्रदेश के तब के सीएम टी अंजैया को सरेआम गाली दी थी। उनका अपमान किया था। अंजैया 1980 से 1982 के बीच आंध्र के सीएम थे। इस बयान पर प्रियंका ने 5 मई 2014 को जवाब दिया था।
अमेठी में स्मृति ईरानी के लिए प्रचार करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि जब राजीव गांधी कांग्रेस महासचिव थे तो उन्होंने हवाईअड्डे पर आंध्र प्रदेश के तब के सीएम टी अंजैया को सरेआम गाली दी थी। उनका अपमान किया था। अंजैया 1980 से 1982 के बीच आंध्र के सीएम थे। इस बयान पर प्रियंका ने 5 मई 2014 को जवाब दिया था।

प्रियंका के इस बयान में कहे गए नीच शब्द को नरेंद्र मोदी ने पकड़ लिया। उसे अपनी जाति से जोड़ दिया। मामला इतना बढ़ गया कि बिहार में प्रियंका के खिलाफ पुलिस कम्प्लेन दर्ज की गई। इस घटना के बाद राजनीतिक पंडित कहने लगे थे कि कांग्रेस जल्द ही प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतार सकती है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

इस समय तक प्रियंका को सक्रिय राजनीति में आने के 3 बड़े मौके मिले। हालांकि, हर बार राजनीति के बारे में पूछने पर प्रियंका यही कहतीं कि 15 साल से कह रही हूं कि राजनीति में कभी नहीं आउंगी। मैं तो अपने बच्चों के साथ ही खुश हूं।

साल 2017: विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने कहा प्रियंका को दी जाए कांग्रेस की कमान… पार्टी नहीं मानी
11 मई 2016, दिन बुधवार, कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बड़ा सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को कांग्रेस की अगुआई दी जानी चाहिए। प्रियंका गांधी के यूपी में इंचार्ज बनने से कांग्रेस की स्थिति सुधर सकती है।

2017 यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका को आगे लाने की सलाह नहीं मानी गई तो इससे नाराज प्रशांत ने कांग्रेस से दूरियां बनाना शुरू कर दिया था।
2017 यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका को आगे लाने की सलाह नहीं मानी गई तो इससे नाराज प्रशांत ने कांग्रेस से दूरियां बनाना शुरू कर दिया था।

प्रशांत के इस सुझाव को कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का समर्थन मिला। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत के इस सुझाव को कांग्रेस ने नकार दिया। सपा-कांग्रेस का गठबंधन हुआ। इस दौरान राहुल और अखिलेश ही मंच पर दिखाई दिए। नतीजा आया तो कांग्रेस को 114 सीटों में केवल सात सीटों पर जीत मिली थी, वहीं सपा को 311 सीटों में 47 सीटों पर जीत मिली।

अब…?

अभी कहानी खत्म नहीं हुई है, दरअसल, असली कहानी तो अब शुरू होती है…

साल 2019 : पवेलियन से निकलकर राजनीति की पिच पर पहली बार उतरी प्रियंका
23 जनवरी 2019, दोपहर का वक्त, कांग्रेस की तरफ से एक प्रेस रिलीज आई। इसके तीसरे पैराग्राफ में लिखा था कि प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव चुना गया है। उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभार दिया गया है। यह पहला मौका था जब प्रियंका ने कोई राजनीतिक पद संभाला था।

अशोक गहलोत की तरफ से जनवरी 2019 में जारी की गई इसी प्रेस रिलीज में ये लिखा था कि प्रियंका कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बनाई गई हैं।
अशोक गहलोत की तरफ से जनवरी 2019 में जारी की गई इसी प्रेस रिलीज में ये लिखा था कि प्रियंका कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बनाई गई हैं।

2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई लेकिन राजनीतिक तौर पर प्रियंका का मजबूत चेहरा पहली बार लोगों के सामने आया। तभी से कांग्रेस ने यह तय कर लिया था कि 2022 विधानसभा चुनाव में प्रियंका को यूपी की जिम्मेदारी दी जाएगी।

साल 2022: ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा यूपीवालों को समझ नहीं आया सूबे में चुनावी प्रचार के दौरान इस बार प्रियंका ने पूरी ताकत झोंकते हुए महिला वोटर्स पर फोकस किया था। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे को लेकर उन्होंने 40% म‍ह‍ि‍ला कैंडिडेट्स को ट‍िकट द‍िए। विधानसभा चुनाव में प्रियंका ने कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए 209 रैलियां और रोड शो किए। इस दौरान उन्होंने लखीमपुर हिंसा, हाथरस कांड, रोजगार और महिला सुरक्षा पर अलग-अलग मंचों से योगी सरकार को घेरा।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया ने प्रियंका को यूपी की कमान दिए जाने को मास्टरस्ट्रोक बताया। पुनिया ने कहा कि ये फैसला कांग्रेस में नई जान फूंक देगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया ने प्रियंका को यूपी की कमान दिए जाने को मास्टरस्ट्रोक बताया। पुनिया ने कहा कि ये फैसला कांग्रेस में नई जान फूंक देगा।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, सचिन पायलट ने भी यूपी में आकर रैलियां की। अकेले प्रियंका ने 42 रोड शो किए। आखिरी चरण के चुनाव प्रचार तक उन्होंने कुल 167 रैलियां और जनसभाएं की। लेकिन नतीजों ने सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।

प्रियंका की राजनीति का होगा आंकलन
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार कुमार भवेश चंद्र कहते हैं, “ प्रियंका ने चुनाव से पहले जो 40% महिलाओं को टिकट देने का एक्सपेरिमेंट किया था। वह कांग्रेस के हक में जाता नहीं दिख रहा है। चुनाव में जिन लोगों का ध्येय था योगी को हटाना, उन्होंने वोट बंटने के डर से कांग्रेस की जगह सपा को वोट दिया। क्योंकि प्रियंका की तुलना में अखिलेश भाजपा के खिलाफ ज्यादा ताकत से लड़ते नजर आए। इसका असर कांग्रेस के वोट ग्राफ पर पड़ा। ”

भवेश कहते हैं, “ इन नतीजों के बाद निश्चित तौर पर प्रियंका की राजनीति का आंकलन होगा। उनके फैसले बेशक वोटों में तब्दील नहीं हो पाए हैं। लेकिन पूरे चुनाव में जिस तरह प्रियंका ने साफ सुथरी राजनीति को आगे बढ़ाया है, कांग्रेस उन्हें डिमोरलाइज नहीं करेगी।”

भवेश आगे कहते हैं, “दूसरे चश्मे से देखें तो इन चुनावों ने कांग्रेस को प्रियंका की राजनीतिक परिपक्वता भी दिखाई है। खुद प्रियंका की राजनीतिक समझ पहले से ज्यादा बढ़ी है। इसलिए कांग्रेस आने वाले चुनावों में भी प्रियंका का सहयोग लेती रहेगी। इस प्रदर्शन से उनके राजनीतिक करियर पर बहुत फर्क नहीं पडे़गा।”

प्रियंका के आने से पहले विधानसभा चुनावों में क्या थी कांग्रेस की हालत
यूपी में कांग्रेस करीब ढाई दशक से अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में कांग्रेस सूबे में सिर्फ दो लोकसभा सीटों तक ही सीमित रह गई।

2019 लोकसभा में प्रचार के दौरान रायबरेली में संपेरों से मिलती सोनिया गांधी।
2019 लोकसभा में प्रचार के दौरान रायबरेली में संपेरों से मिलती सोनिया गांधी।

2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन किया और 114 सीटों पर चुनाव लड़ा। इनमें उसे केवल 7 सीटों पर कामयाबी मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल अपना गढ़ रायबरेली ही बचा पाई थी। इस दौरान प्रियंका रायबरेली में प्रचार कर रही थीं।

कांग्रेस की 144 में से सिर्फ एक महिला प्रत्याशी जीती

क्रमांक प्रत्याशी विधानसभा नतीजा
1 मीनाक्षी सिंह नहटौर हारी
2 हैनरीता राजीव सिंह नागना हारी
3 निदा अहमद संभल हारी
4 अर्चना गौतम हस्तिनापुर हारी
5 बबिता गुर्जर किठौर हारी
6 आभा चौधरी गढ़ मुक्तेश्वर हारी
7 पंखुड़ी पाठक नोएडा हारी
8 शशि शर्मा शिकोहाबाद हारी
9 प्रतिमा पाल सिरसागंज हारी
10 गुंजन मिश्रा एटा हारी
11 विनीता शाक्य मैनपुरी हारी
12 ज्ञानवती यादव करहल हारी
13 प्रज्ञा यशोदा बिसौली हारी
14 रजनी सिंह बदाऊं हारी
15 सुप्रिया ऐरन बरेली कैंट हारी
16 संतोष भारती बहेड़ी हारी
17 अनुज कुमारी पुवायां हारी
18 पूनम पांडेय शाहजहांपुर हारी
19 रितु सिंह मोहम्मदी हारी
20 शमीना शफीक सीतापुर हारी
21 आरती बाजपेई बांगरमऊ हारी
22 मधु वर्मा उर्फ मधु रावत मोहान हारी
23 आशा सिंह उन्नाव हारी
24 ममता चौधरी मोहनलाल गंज हारी
25 निकलेश सरोज कादीपुर हारी
26 सरिता दोहरे औरैया हारी
27 उषा रानी कोरी बिल्हौर हारी
28 लुईस खुर्शीद फर्रुखाबाद हारी
29 कनिष्का पांडेय महाराजपुर हारी
30 उमाकांति सिंह कालपी हारी
31 उर्मिला सोनकर खबर उरई हारी
32 रंजना भारतीलाल पांडेय मानिकपुर हारी
33 आराधना मिश्रा रामपुर खास जीती
34 बीना रानी बाबा गंज हारी
35 अल्पना निषाद इलाहबाद साउथ हारी
36 मंजू संत बारा हारी
37 चित्रा वर्मा दरियाबाद हारी
38 निर्मला चौधरी हैदरगढ़ हारी
39 रामा कश्यप गोंडा हारी
40 कांति पांडेय डुमरिया गंज हारी
41 लबोनी सिंह हर्रैया हारी
42 रजनी देवी खजनी हारी
43 शेहला अहररी रामपुर करखना हारी
44 राना खातून सगड़ी हारी
45 निर्मला भारती मेहनगर हारी
46 सुखविंदर कौर साहरनपुर नगर हारी
47 यास्मीन राना चरथावल हारी
48 सलमा आघा अंसारी ठकुरवारा हारी
49 कल्पना सिंह बिलारी हारी
50 मिथलेश चंदौसी हारी
51 संगीता त्यागी साहिबाबाद हारी
52 नीरज कुमारी प्रजापति मोदी नगर हारी
53 भावना वाल्मीकि हापुड़ हारी
54 पूनम पंडित स्याना हारी
55 सुनीता शर्मा डिबाई हारी
56 मोनिका सूर्यवंशी खैर हारी
57 प्रीति डांगर इगलास हारी
58 पूनम देवी छाता हारी
59 सुमन चौधरी मांट हारी
60 उषा गंगवार नवाबगंज हारी
61 प्रियंका जैसवाल अकबरपुर हारी
62 अकबरी बेगम बिजनौर हारी
63 पूनम कंबोज बेहट हारी
64 दरक्शा अहसान खान कुंदरकी हारी
65 बाला देवी सैनी नूरपुर हारी
66 रेखा सुखराज रानी नौगांवां सादात हारी
67 सरोज देवी हाथरस हारी
68 छवि हर्षने सिकंदरा राव हारी
69 दिव्या शर्मा अमनपुर हारी
70 तारा राजपूत मरहरा हारी
71 नीलिमा राज जलेसर हारी
72 ममता राजपूत भोगांव हारी
73 अलका सिंह बिठारी चैनपुर हारी
74 डॉ. ममता वर्मा हरगांव हारी
75 अनुपमा द्विवेदी लहरपुर हारी
76 ऊषा देवी वर्मा मेहमूदाबाद हारी
77 कमला रावत सिधौली हारी
78 सुनीता देवी गोपामऊ हारी
79 आकांक्षा वर्मा सांडी हारी
80 नीलम शाक्य तिरवा हारी
81 स्नेहलता दोहरे भरथना हारी
82 सुमन व्यास बिधूना हारी
83 मनोरमा शंखवार रसूलाबाद हारी
84 नेहा निरंजन गरौठा हारी
85 निर्मला भारती चित्रकूट हारी
86 कमला प्रजापति जहानाबाद हारी
87 सुनीता सिंह पटेल पट्टी हारी
88 गौरी यादव बाराबंकी हारी
89 नीलम कोरी मिल्कीपुर हारी
90 डॉ. रागिनी पाठक जलालपुर हारी
91 वंदना शर्मा भींगा हारी
92 ज्योति वर्मा श्रवस्ती हारी
93 बबिता आर्य बलरामपुर हारी
94 किरण शुक्ला बांसी हारी
95 मैनिका पांडेय पिपराइच हारी
96 अंबर जहां पथरदेवा हारी
97 शिखा पांडेय बिलासपुर हारी
98 चांदनी श्री नगर हारी
99 जितेन्द्री देवी धौरहरा हारी
100 वंदना भार्गव बिस्वान हारी
101 सुधा द्विवेदी सरेनी हारी
102 शकुंतला देवी कायमगंज (एससी) हारी
103 अर्चना राठौर भोजपुर हारी
104 विनीता देवी कन्नौज हारी
105 करिश्मा ठाकुर गोविंदनगर हारी
106 राजकुमारी हमीरपुर हारी
107 हेमलता पटेल अयाह शाह हारी
108 रीता मौर्या अयोध्या हारी
109 गीता सिंह कैसरगंज हारी
110 सविता पांडेय तरबगंज हारी
111 कमला सिसोदिया मनकापुर (एससी) हारी
112 साबिहा खातून खलीलाबाद हारी
113 दुलारी देवी सलेमपुर (एससी) हारी
114 ओमलता रसारा हारी
115 सोनम बींद बैरिया हारी
116 आरती सिंह बदलापुर हारी
117 गीता देवी मड़िहान हारी
118 विदेश्वरी सिंह राठौर घोरावल हारी
119 बसंती पनिका दुद्धी हारी
120 रीना देवी बींद हंडिया हारी
121 माधवी राय मेजा हारी
122 रिंकी सुनील पटेल करछना हारी
123 किरण भारती बलहा हारी
124 त्वरिता सिंह तरबगंज हारी
125 पूनम आजाद बांसगांव हारी
126 सोनिया शुक्ला चिल्लूपार हारी
127 प्रियंका यादव घोषी हारी
128 चेतना पांडेय गोरखपुर (शहरी) हारी
129 श्यामरति देवी कुशीनगर हारी
130 पुष्पा शुक्ला मल्हानी हारी
131 माला देवी सोनकर मछली शहर हारी
132 मीरा पांडेय मड़ियाहूं हारी
133 लक्ष्मी नागर जफराबाद हारी
134 सीमा देवी सैदपुर हारी
135 फरजाना खातून जमानिया हारी
136 विमला देवी सैयदराजा हारी
137 आशादेवी अजगरा हारी
138 गुलराना तबस्सुम वाराणसी नार्थ हारी
139 मुदिता कपूर वाराणसी साउथ हारी
140 अंजू कनौजिया औराई हारी
141 ताहिरा बेगम कटरा बाजार हारी
142 मोनिका सूर्यवंशी खैर हारी
143 सीमा देवी चुनार हारी
144 अंजू सिंह सेवापुरी हारी
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