यूपी के सियासी पिच पर आउट हो गई हैं प्रियंका गांधी!
उत्तर प्रदेश में (up Assembly Election 2022) में कांग्रेस (Congress) फिर हाशिए पर आ गयी है. कांग्रेस खुद को ‘ओल्ड ग्रांड पार्टी’ कहलाना पसंद करती है. लेकिन नए बदलावों को स्वीकार करने में पार्टी नेतृत्व अभी भी हिचक रहा है. क्योंकि कांग्रेस में पार्टी की धुरी दस जनपथ को ही माना जाता है और नए प्रयोग करने में गांधी परिवार और हाई कमान हमेशा ही हिचकता है. कांग्रेस राज्य में पिछले तीन दशक से ज्यादा के समय से सत्ता से बाहर और लगातार कमजोर होती जा रही है. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव ठीक पहले कांग्रेस ने एक नया प्रयोग किया और प्रिंयका गांधी को यूपी का प्रभारी बनाकर चुनाव की जिम्मेदारी दी. लेकिन प्रियंका के आने के बाद भी कांग्रेस कुछ खास नहीं कर सकी और अब विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन के बाद प्रियंका गांधी के सियासी भविष्य ही सवाल उठने लगे हैं. क्योंकि कांग्रेस महज दो सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं. वहीं उसका वोट फीसदी भी गिर गया है.
प्रियंका गांधी के नेतृत्व को लेकर अब सवाल उठने शुरू हो गए हैं. विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदर्शन के साथ ही प्रियंका गांधी के प्रदर्शन पर सवाल करेंगे. शायद कांग्रेस इन सवालों को देने में सहज ना हो. क्योंकि सवाल गांधी परिवार और प्रियंका गांधी को लेकर होंगे. क्योंकि यूपी विधानसभा की कमान प्रियंका गांधी ने अपने हाथों में ही रखी थी और उन्होंने चुनाव के दौरान जनता से बड़े-बड़े वादे भी किए. लेकिन चुनाव के नतीजों के बाद वहीं ढाक के तीन पात वाली स्थिति कांग्रेस की रही. राज्य के विधानसभा चुनाव में किसी भी नेता का दखल नहीं था. लेकिन उसके बावजूद राज्य में कांग्रेस पार्टी महज दो सीटों में सिमटती दिख रही है. राज्य में हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात सीटों पर जीत दर्ज की थी और उस वक्त उसने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटें मिली थी. लेकिन कांग्रेस इस प्रदर्शन को अगले दो विधानसभा चुनाव में बरकरार नहीं रखी है. वहीं अगर बात प्रिंयका गांधी की करें तो लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद प्रियंका गांधी के खाते में ये दूसरी बड़ी हार है. हालांकि बीच में हुए पंचायत चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था और वह अमेठी और रायबरेली में भी चुनाव नहीं जीत पायी थी.
कांग्रेस का हाथ छोड़ चुके हैं जमीनी नेता
कांग्रेस लगातार खराब प्रदर्शन कर रही है और राज्य में उसके पास कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है जो कांग्रेस को राज्य में जीत दिला सके. राज्य में पंचायत चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव. कांग्रेस लगातार हार रही है और उसकी जमीन कमजोर हो रही है. लेकिन शायद कांग्रेस के नेता इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है. क्योंकि कांग्रेस में भी ज्यादातर नेता पार्टी की राजनीति को गांधी परिवार के इर्दगिर्द रखना चाहते हैं. क्योंकि गांधी परिवार के कारण ही उन नेताओं को वजूद बचा हुआ है. लिहाजा कांग्रेस में सक्रिय या फिर जमीनी नेताओं को पार्टी में वो तवज्जो नहीं मिल पाती है. जिसके लिए पार्टी में रहना एक कारण हो सकता है. पिछले एक साल के दौरान ही राज्य में कांग्रेस के जितने बड़े नेता थे, उन्होंने पार्टी को छोड़कर दूसरे दलों का हाथ थामा. इसमें आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, ललितेश त्रिपाठी समेत कई नेता की फेहरिस्त है, जिन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान या फिर चुनाव से पहले पार्टी को अलविदा कहा था.
2.35 तक पहुंचा मत प्रतिशत
कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव तुलना में बहुत खराब प्रदर्शन किया है. 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को 6.5 फीसदी वोट मिला था. वह 2022 के विधानसभा चुनाव के अभी तक के रूझान में 2.35 फीसदी तक सिमट गया है. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस दो सीटों पर दर्ज करने में कामयाब रही वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल रायबरेली सीट पर ही जीत दर्ज कर सकती थी और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी अमेठी से चुनाव हार गए थे.
इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व की जाती है प्रियंका गांधी की तुलना
कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि प्रियंका का व्यक्तित्व उनकी दादी इंदिरा गांधी से मिलता-जुलता था और प्रियंका गांधी की पार्टी को आगे ले जा सकती है. असल में ये नेता प्रियंका गांधी की तारीफ कर उन्हें पार्टी की जमीन सच्चाई से दूर ले जाने की कोशिश करते हैं. प्रियंका ने सक्रिय राजनीति में कदम रखे दो साल हो गए हैं और उन्होंने 2019 का भी चुनाव देखा है और 2022 का विधानसभा चुनाव भी. लेकिन इन दोनों चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन पूरी तरह से निराशाजनक रहा. ऐसा नहीं है कि यूपी में ही कांग्रेस का खराब प्रदर्शन रहा. प्रियंका गांधी ने असम चुनाव में भी कांग्रेस के लिए प्रचार किया और वह पर भी पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी.