ग्वालियर … ? 100 टंकियां होने के बाद भी नलकूपों और टैंकरों से होगी सप्लाई, गर्मी में कुछ क्षेत्रों में लोगों को पानी के लिए होना पड़ेगा परेशान

शहर की पेयजल सप्लाई व्यवस्था को सुधारने के लिए पिछले एक दशक में 410 कराेड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इनसे प्रोजेक्ट उदय के तहत 27 और अमृत योजना में 42 नई टंकियां बनाई गईं। इन योजनाओं में शहर में 440 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इसके साथ ही शहर में टंकियों की संख्या 100 के पास पहुंच गई है।

दोनों के योजनाओं में 1000 किलोमीटर से अधिक की लाइनें भी बिछाई गई हैं। इसके बाद भी गर्मियों में शहर के कुछ हिस्से को नलकूप और टैंकरों की सप्लाई पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसके लिए नगर निगम ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। ऐसे इलाकों में गर्मियों में पेयजल सप्लाई व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नगर निगम 80 टैंकर और 60 बोरिंग के टेंडर भी मंगवा रहा है।

शहर की पेयजल समस्या के समाधान के लिए पिछले डेढ़ दशक से अलग योजनाओं के तहत काम किया जा रहा है। इसमें पानी की लाइने बिछाने के साथ टंकियों के निर्माण और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के अपग्रेडेशन का काम किया गया। हर योजना का उद्देश्य लोगों को तिघरा का पानी पहुंचाना था, लेकिन इन सबके बाद भी शहर का कुछ हिस्से में अभी तक तिघरा का पानी नहीं पहुंच सका है। ये हिस्सा नलकूपों की सप्लाई पर निर्भर है। शहर के कोने पर बसे क्षेत्रों में टैंकरों की सप्लाई का क्रम कम जरूर हुआ है, लेकिन गर्मियों में भू-जल स्तर तेजी से गिरने के कारण इन क्षेत्रों में टैंकरों से सप्लाई की जरूरत पड़ती है।

2200 नलकूपों से आज भी सप्लाई

पेयजल वितरण व्यवस्था में सुधार के दावों के बीच अब भी शहर में 2280 नलकूपों और 1713 हैंडपंपों से पानी की सप्लाई की जा रही है। शहर के पॉश इलाके माने जाने वाले पड़ाव और सिटी सेंटर जैसे क्षेत्रों के अधिकांश हिस्से में नलकूपों से ही पानी सप्लाई किया जा रहा है। उपनगर ग्वालियर के कुछ हिस्सों सहित मुरार में भी नलकूपों से पानी की सप्लाई दी जा रही है।

एक्सपर्ट व्यू- केके सारस्वत, रिटायर्ड अधीक्षण यंत्री, पीएचई

पहले स्रोत तलाशना था टंकियां बाद में बनतीं

शहर की पहली जरूरत पानी का नया स्रोत तलाशने की थी। क्याेंकि हम तिघरा का विकल्प अभी तक नहीं तलाश पाए हैं। 100 टंकियों को भरने के लिए पर्याप्त पानी की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में तिघरा से रोजाना सप्लाई दे पाना संभव नहीं है। यही कारण है कि चंबल से पानी आने तक नलकूपों के साथ टैंकरों पर भी निर्भरता बनी रहेगी।

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