3 राज्यों में AFSPA का दायरा घटा …. असम, नगालैंड, मणिपुर के कुछ हिस्सों से हटा सेना को स्पेशल पावर देने वाला कानून …

भारत सरकार ने दशकों बाद नगालैंड, असम और मणिपुर राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट में यह जानकारी दी है।

शाह ने लिखा- AFSPA के इलाकों का दायरा घटाने में सरकार के शांति लाने के लिए किए जा रहे प्रयास मददगार रहे हैं। इन इलाकों में उग्रवाद पर भी नियंत्रण बढ़ा है। कई समझौतों के कारण सुरक्षा के हालात और विकास ने भी कानून हटाने में मदद की।

गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट करके यह जानकारी शेयर की है।
गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट करके यह जानकारी शेयर की है।

नगालैंड से उठी थी AFSPA हटाने की मांग
पिछले साल दिसंबर में नगालैंड में सेना के हाथों 13 आम लोगों के मारे जाने और एक अन्य घटना में एक व्यक्ति के मारे जाने के बाद असम में अफ्सपा हटाने की मांग ने जोर पकड़ लिया था। यह एक्ट मणिपुर में (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़ कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगदिंग और तिरप जिलों में, असम से लगने वाले उसके सीमावर्ती जिलों के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों के अलावा नगालैंड और असम में लागू है। केंद्र सरकार ने जनवरी की शुरुआत में नगालैंड में इसे छह महीने के लिए बढ़ा दिया था।

गृह मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक पूर्वोत्तर में विद्रोह की घटनाएं घटकर 2021 में केवल 209 रह गईं, जबकि 1999 में इनकी संख्या 1749 थी। 2019 से 2022 तक 6900 से ज्यादा उग्रवादियों ने 4800 हथियारों के साथ सरेंडर किया है।

क्या है AFSPA
AFSPA को केवल अशांत क्षेत्रों में लागू किया जाता है। इन जगहों पर सुरक्षाबल बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं। कई मामलों में बल प्रयोग भी हो सकता है। पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों की सहूलियत के लिए 11 सितंबर 1958 को यह कानून पास किया गया था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने पर यहां भी 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया। अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे, ये भी केंद्र सरकार ही तय करती है।

अभी तक इन जगहों पर लागू है AFSPA
AFSPA कानून असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर समेत कई हिस्सों में लागू किया गया था। हालांकि बाद में कई इलाकों से इसे हटा भी दिया गया। अमित शाह की घोषणा से पहले ये कानून जम्मू-कश्मीर, नगालैंड, मणिपुर (राजधानी इम्फाल के 7 क्षेत्रों को छोड़कर), असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है। त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय से इसे पहले ही हटा दिया गया है।

विरोध में हुई थीं ये घटनाएं

  • AFSPA के विरोध का जिक्र हो तो सबसे पहले मणिपुर की आयरन लेडी भी कही जाने वाली इरोम शर्मिला का जिक्र होता है। नवंबर 2000 में एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना के वक्त इरोम शर्मिला वहीं मौजूद थीं। इस घटना का विरोध करते हुए 29 वर्षीय इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, जो 16 साल चली। अगस्त 2016 में भूख हड़ताल खत्म करने के बाद उन्होंने चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें नोटा (NOTA) से भी कम वोट मिले।
  • 10-11 जुलाई 2004 की दरमियानी रात 32 साल की थंगजाम मनोरमा का कथित तौर पर सेना के जवानों ने रेप कर हत्या कर दी थी। मनोरमा का शव क्षत-विक्षत हालत में बरामद हुआ था। इस घटना के बाद 15 जुलाई 2004 को करीब 30 मणिपुरी महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था।

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