ट्राइबल से ‘पॉलिटिकल ट्रैवल’ करेगी BJP … अमित शाह का 7 महीने में MP का दूसरा दौरा; किस तैयारी में जुटी भाजपा? जानिए दौरों के मायने
MP में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा सरकार चुनावी मोड में है। वह हर वर्ग को खुश करने में लगी है। प्रदेश में आदिवासी वर्ग बड़ा वोट बैंक है। भाजपा की नजरें इसी पर हैं। इन्हीं को ध्यान में रखकर पार्टी के टॉप 2 लीडर में से एक केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 22 अप्रैल को भोपाल आ रहे हैं। बीते 7 महीने में प्रदेश का ये उनका दूसरा दौरा है। राजधानी के जम्बूरी मैदान में होने वाले इस आयोजन की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। पार्टी विधानसभा चुनाव 2018 के परिणामों से सबक लेकर अपनी जमीन को मजबूत करने में लगी है।
राज्य सरकार 22 अप्रैल को तेंदूपत्ता संग्राहकों का सम्मेलन आयोजित कर रही है। इसके मुख्य अतिथि अमित शाह होंगे। इससे पहले वे 18 सितंबर 2021 को आदिवासियों से जुड़े कार्यक्रम में शामिल होने जबलपुर आए थे। उनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आदिवासियों के कार्यक्रम में शामिल होने भोपाल आ चुके हैं। वे 15 नवंबर 2021 को आदिवासी वर्ग के कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
चुनावी मोड में भाजपा, चल रही तैयारियां
गुजरात में इस साल के अंत में और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा इन प्रदेशों में चुनावी मोड में है। पार्टी का पूरा फोकस उन जिलों और विधानसभा सीटों पर है, जहां पिछले चुनाव में पार्टी को हार मिली थी। इस लिहाज से शाह का ये दौरा अहम माना जा रहा है। इस बारे में प्रदेश प्रवक्ता हितेश बाजपेयी कहते हैं कि अमित शाह बड़े नेता और केंद्रीय गृहमंत्री हैं। दोनों दायित्वों के निर्वहन के लिए उनका यह दौरा महत्वपूर्ण हैं। वे एक ओर भारत के गृहमंत्री के रूप में लोगों को एड्रेस करेंगे, तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के नाते कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करेंगे।
आदिवासी कल्याण के जरिए ताकत बढ़ाना चाहती है भाजपा
राजनीतिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर कहते हैं कि राजनीतिक दलों का विकास और विस्तार निरंतर सक्रियता की अपेक्षा करता है। पार्टी संपर्क और संवाद में जितनी अधिक सक्रिय रहती और सहभागिता करती है, उतनी ही उसकी ताकत बढ़ती जाती है। जनता के बीच में उसका स्थान बनता जाता है। इस दृष्टि से देखें तो PM नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह भाजपा में दूसरे स्थान पर हैं।
संगठन में उन्होंने दक्षता और क्षमता को बार-बार सिद्ध किया है। मध्यप्रदेश में 2023 में चुनाव होंगे। जाहिर है कि उस दृष्टि से बीजेपी ने पहले से तैयारी शुरू कर दी है। मप्र में आदिवासी वर्ग बहुत बड़ा है। मप्र में पार्टी की ताकत बढ़ाने और उसकी पहुंच बढ़ाने में वह अपनी ताकत का पूरा उपयोग करना चाहेंगे। बीजेपी और उसके नेता इस काम में बहुत माहिर हैं। आदिवासियों का कल्याण पहला मुद्दा है। दूसरा मुद्दा पार्टी को जनता के बीच में और गहरी पैठ बनाना है।
पिछले चुनाव में यह थी स्थिति, 25 सीटों का हुआ था नुकसान
प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। कांग्रेस को 114, बीजेपी को 109, बसपा को 2, सपा को 1 सीट मिली थी। 4 निर्दलीय जीते थे। प्रदेश में कुल 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में इनमें से भाजपा ने 34 सीटें जीती थीं। 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले उसे 25 सीटों का नुकसान हुआ था। आदिवासियों का गढ़ मानी जाने वाली विधानसभा सीटों पर भी भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा था। अजा की 47 सीटों में से वर्तमान में 30 पर कांग्रेस का कब्जा है, तो 17 पर बीजेपी है। भाजपा इस गणित को बदलकर अपने पक्ष में करने में जुटी है।
जनजातीय लोगों को सशक्त बनाने MP सरकार के फैसले
जनजातीय लोगों को सशक्त बनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने फैसला लिया है कि प्रदेश में सामुदायिक वन प्रबंधन का अधिकार जनजाति समाज को दिया जाएगा। पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत तेंदूपत्ता बेचने का कार्य ग्राम वन समिति, ग्राम सभा को दिया जाएगा। मध्यप्रदेश औषधीय पादव बोर्ड का गठन किया जाएगा।
देवारण्य योजना के अंतर्गत वनोत्पाद और वन औषधि को बढ़ावा देकर इसके अंतर्गत वन उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाएगा। तेंदूपत्ता लाभ का 75 प्रतिशत संग्राहकों को बोनस के रूप में दिया जाएगा। पेसा कानून के तहत 5 प्रतिशत ग्राम सभा को मिलेगा। वन ग्रामों के विकास के लिए 800 ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदला जाएगा। रहने की जमीन के पट्टे भी दिए जाएंगे।