कप्तान साहब! इस नाकामी का जिम्मेदार कौन?
जुलूस को लेकर सोशल मीडिया पर हो रही थीं भड़काऊ पोस्ट, फिर भी न एक्शन, न इंतजाम…..
रविवार रात मौके पर पहुंचे SSP ने गली में जाकर हालात का जायजा लिया।
रविवार रात शहर के अमन में पलीता लगते-लगते बचा। गनीमत रही कि दोनों ही वर्गों के समझदार लोगों ने आगे आकर टकराव से पहले ही हालात संभाल लिए। मगर, शहर कोतवाली की चौखट पर हुई इस घटना ने पुलिस की नाकामी को सबके सामने ला दिया। अफसर बेशक सब कुछ ठीक और दुरुस्त होने का दावा करें, लेकिन रविवार रात को उपजे हालात बता रहे हैं कि जुलूस के इंतजामों में स्थानीय पुलिस की दूरदर्शिता और सूझबूझ का टोटा था।
मुरादाबाद वेस्ट यूपी के संवेदनशील शहरों में शुमार है। बावजूद इसके बजरंग दल के भगवा जुलूस के दौरान रूट पर आने वाली मिश्रित आबादियों और दूसरे समुदाय के धर्मस्थलों पर सुरक्षा के खास बंदोबस्त नहीं थे। यकीनन पुलिस और प्रशासन के सेकेंड लेयर के अफसर जुलूस के साथ में थे। मगर, ये अफसर जुूलूस के आगे चलते रहे। जुलूस में शामिल युवाओं की टोली पर निगरानी रखने के लिए मुकम्मल इंतजाम नही थे। सबसे अधिक विफलता कोतवाली पुलिस का है, जिसकी चौखट पर यह घटना हुई।
कोतवाली के ठीक सामने की गली में मुस्लिम आबादी रहती है। यह जानने के बावजूद जुलूस पास होने के दौरान इस गली के मुहाने पर पुलिस की नाकाबंदी नहीं की गई। पुलिस जागी, लेकिन कोतवाली के सामने हुई घटना के बाद। इसके बाद आगे के बचे रूट पर मस्जिदों और दूसरे समुदाय की आबादी वाले हिस्से में पुलिस तैनात की गई। मगर, सवाल उठता है कि जब हनुमान जयंती के जुलूस को लेकर पूरे देश में माहौल गरम है, तो फिर पहले से ये इंतजाम क्यों नहीं किए गए।
जुलूस में शामिल लोगों ने युवाओं को हटाया
सोमवार को बजरंग दल के भगवा जुलूस के दौरान कोतवाली के सामने जब DJ पर जयश्रीराम के नारे लगने शुरू हुए, तो सामने वाली गली से अल्लाह-हू अकबर के नारे लगने लगे। इसी दौरान दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे को दूर से ही हाथ दिखाने शुरू किए। नौबत भिड़ंत तक आती, इससे पहले ही जुलूस में शामिल कुछ समझदार लोगों ने युवाओं को उस गली से वापस खींचकर आगे जुलूस की तरफ कर दिया। ऐसी ही समझदारी गली के अंदर मौजूद दूसरे समुदाय के कुछ लोगों ने भी दिखाई।
उन्होंने अपने वर्ग के लोगों को घरों में करने का प्रयास किया। चंद कदमों की दूरी से जब दोनों पक्षों में शुरुआती नोकझोंक हाे रही थी, तब पुलिस नहीं थी। पुलिस दौड़कर वहां पहुंची और फिर गली में दोनों वर्गों के लोगों के बीच दीवार बनकर खड़ी हो गई। पुलिस की ये कोशिश काबिल ए तारीफ थी। मगर, सवाल यही उठता है कि नोकझोंक के बाद ही क्यों पुलिस जागी। इस गली को पहले ही जुलूस पास होने के दौरान क्यों पुलिस ने ब्लॉक नहीं किया?
कई दिन से हो रही थीं भड़काऊ पोस्ट
पुलिस की नाकामी सिर्फ यहीं तक नहीं सिमटी है। इस घटना में इंटेलीजेंस और सोशल मीडिया नेटवर्किंग का फेल्योर भी सामने आया है। हनुमान जयंती के जुलूस को लेकर पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर उत्तेजक पोस्ट डाली जा रही थीं। पुलिस और खुफिया तंत्र को या तो इन पोस्ट की भनक नहीं लगी या फिर वह जानकार इधर से आंखें मूंदे रहा। पोस्ट उत्तेजक हैं, इसलिए हम उन्हें यहां शेयर नहीं कर सकते। मगर, फेसबुक से लेकर वॉट्सऐप तक ये उत्तेजक पोस्ट अभी तक मौजूद हैं।
क्या होगा जिम्मेदारों पर एक्शन
SSP हेमंत कुटियाल ने घटना के बाद मौके पर पहुंचकर बार-बार कहा कि हालात एकदम सामान्य हैं। कप्तान की बात सही भी है। मगर, सवाल पुलिस की नाकामी का है। संवेदनशील शहर में पुलिस की नाकामी को इस तरह ढंका गया, तो आने वाले समय में इसके नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं।