अर्थ डे 2022:रोती तड़पती धरती की पुकार सुनें; 52 साल पहले अमेरिका से हुई थी शुरुआत, अब पूरे विश्व की जरूरत है
पृथ्वी अथवा ‘पृथिवी’ एक संस्कृत शब्द हैं। जिसका अर्थ ‘एक विशाल धरा’ होता है। ब्रह्मांड में एक पृथ्वी ही है, जहां जीवन संभव है। पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 22 अप्रैल को ‘पृथ्वी दिवस’ मनाया जाता है। वर्ष 2022 के लिए पृथ्वी दिवस की थीम ‘इन्वेस्ट इन अवर प्लानेट’ है।
यहां आपको ये बता दें कि पृथ्वी दिवस के मनाने के लिए 22 अप्रैल 1970 को अमेरिका के लगभग 2 करोड़ लोग पर्यावरण की रक्षा के लिए पहली बार सड़क पर उतरे थे। अमेरिकी जनता की इस पहल को आधुनिक पर्यावरण आंदोलन का प्रारंभ माना जाता है। इस शुरुआत के समय किसी ने सोचा तक नहीं था कि पृथ्वी दिवस दुनिया के सबसे बड़े नागरिक आयोजन का रूप ले लेगा।
संसाधनों की भूख बना रही है धरती को कंगाल
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘पृथ्वी पर हर इंसान की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कुछ है। लेकिन हर इंसान की लालच को पूरा करने के लिए नहीं’। वर्तमान में हम लोग पृथ्वी की संसाधन उत्पादन करने की जितनी क्षमता है। उससे ज्यादा उसका दोहन कर रहे हैं। आलम ये है कि आज हम पृथ्वी के एक साल के संसाधनों की उपभोग लगभग सात महीनों में ही कर जा रहे हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि हमारी साल भर की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें अपनी इस समय की पृथ्वी से 60 प्रतिशत बड़े आकार की कोई दूसरी पृथ्वी मिलनी चाहिए।
वैसे तो पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों और उनके उपयोग का कोई सटीक आकलन संभव नहीं है। फिर भी वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी साल भर में हमारे लिए 91 ट्रिलियन (910 खरब) डॉलर मूल्य के बराबर प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध करती है। ये अनुमान डॉलर के 2005 के मूल्य के आधार पर 2014 में लगाया गया था। 2022 तक यह मूल्य काफी बढ़ गया होना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन है धरती पर जीवन के लिए एक गंभीर खतरा
पिछले कुछ दशकों में मानवजनित गतिविधियों से उपजी ग्रीन हाउस गैसों के कारण वैश्विक तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। समुद्र का जल स्तर ऊपर उठ रहा है। जिसके फलस्वरूप समुद्र के आस-पास के द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता धीरे-धीरे पानी में डूबती जा रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियां वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था ।जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे। वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर देखा जा रहा है। मलेरिया, डेंगू जैसी अनेक बीमारियां इसी का नतीजा हैं।
हमें पर्यावरण को बचाना है, खुद को बचाना है
आज हमारी धरती माता हमसे चीख-चीख कर कह रही है कि, मुझे बचा लो। हमारी पृथ्वी इस समय की हमारी खर्चीली जीवन शैली और अदूरदर्शी अर्थव्यवस्थाओं का बढ़ता हुआ बोझ लंबे समय तक वहन नहीं सकती । कोरोना वायरस से मिला अनुभव चाहे जितना कटु व कष्टदायक हो। उसने विश्व-स्तर पर कम से कम यह तो दिखाया ही है कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों की खपत अभी से जितनी कम कर सकेंगे। अपने भविष्य को उतना ही लंबा और बेहतर बना सकेंगे। यदि हमें पृथ्वी पर्यावरण को बचाना है, खुद को बचाना है तो फिर से अपनी परम्पराओं को, शाश्वत चेतना को जगाना होगा। आइये हम पूरे साल पृथ्वी से दोस्ती करके और उसकी देखरेख करके अर्थ डे को मनाये।
(ये लेख सुशील द्विवेदी ने लिखा है। उन्हें टेरी द्वारा आयोजित ग्रीन ओलिंपियाड के स्टेट कोऑर्डिनेटर व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अर्थ डे नेटवर्क स्टार 2020 दिया गया था।)