दुनिया में अनेक राजनीतिक समूहों के समर्थन के बावजूद प्रेस की आजादी दांव पर
यह मानना एक भूल होगी कि यह केवल विकीलीक्स या जूलियन से जुड़ा प्रश्न है, या यह केवल अमेरिका का अंदरूनी मामला है। वास्तव में अमेरिकी अभियोजन ने पत्रकारिता की सक्रियता, मूल्यों और मानदण्डों पर प्रहार किया है। इसके राजनीतिक निहितार्थ हैं। पत्रकारों के लिए नए पैमाने रचे जा रहे हैं, जहां आज वे अपना काम करते हुए स्वयं को खतरे में पाते हैं। पूरी दुनिया के लिए यह घटना एक नजीर बन गई है। लेकिन बहुत सम्भव है कि दूसरे देशों की सरकारें यह सब देखें और इसी राह पर चलने को प्रेरित हों।
आज दुनिया में सरकार-विरोधी विचारों को दबाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। प्रेस की आजादी पर इससे बड़ा हमला और क्या होगा? आज यूरोप और दुनिया के लिए यह समझना जरूरी हो गया है कि कितना कुछ दांव पर लगा है। क्या राज्यसत्ता द्वारा किए जाने वाले अपराधों का कभी कोई खुलासा नहीं होगा और क्या इसके लिए उन्हें कभी दंडित नहीं किया जाएगा? अगर कोई- जिसकी अंतश्चेतना अभी सजीव है- सरकार के अपराधों का खुलासा करेगा तो क्या उसे खदेड़ा जाएगा, उसे निशाना बनाया जाएगा?
ये बुनियादी महत्व के प्रश्न हैं। लोकतंत्र की स्थापना जिन मूल्यों के आधार पर की गई है, ये प्रश्न उनसे सीधे मुकाबला करते हैं। अब हम जूलियन के मामले में निर्णय की ओर अग्रसर हैं और बात वर्षों की नहीं महीनों की है। आगामी कुछ महीनों में निर्णय हो जाएगा। अगर जूलियन इस मामले को जीतते हैं तो यह मानवाधिकारों की यूरोपियन अदालत में ही सम्भव है। चूंकि यह एक राजनीतिक मुकदमा है, इसलिए इसमें एक कुशाग्र समझ का निर्माण जरूरी है।
लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि जूलियन तीन साल से जेल में हैं और उनका अपराध केवल इतना ही है कि वे एक पत्रकार और प्रकाशक के रूप में अपना काम भर कर रहे थे। यूरोप में लोकतंत्र का भविष्य कसौटी पर है। फ्रांस, जर्मनी, यूके आदि की संसद में अनेक राजनीतिक समूहों ने प्रेस की आजादी का समर्थन किया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल और फ्रीडम ऑफ प्रेस ऑर्गेनाइजेशन भी वस्तुस्थिति से अवगत हैं।
वास्तव में सरकारों को सफाई देना भारी पड़ जाएगा, अगर उनसे पूछा जाए कि पत्रकारिता के बुनियादी मूल्यों का उल्लंघन करने की कोशिशें क्यों की जा रही हैं। जूलियन के मामले में जो रहा है, वह राजनीतिक मुकदमों की चिर-परिचित कड़ी में है, जिसमें ऊपर-ऊपर तो एक प्रक्रिया चलती हुई दिखाई देती है, लेकिन ब्योरों में जाएं तो आप अन्याय और अत्याचार ही पाएंगे। जूलियन को सबकी आंखों से छुपाकर रखा गया है।
जनवरी 2021 के बाद से उन्हें अदालत में भी आने की अनुमति नहीं दी गई है। प्रेस तक को उनका चित्र खींचने या उनसे बात करने की इजाजत नहीं है। जब वे कोर्ट में आए थे, तो उन्हें अपने वकीलों के साथ बैठने तक नहीं दिया गया। जेल में ही जूलियन से मेरा विवाह हुआ था और उन्होंने वेडिंग फोटोग्राफर को भी नहीं आने दिया।
वे ऐसा जता रहे हैं जैसे जूलियन मनुष्य नहीं हैं। ये तमाम बातें सबकी नजरों में आना चाहिए। इसके बावजूद मैं उम्मीद से भरी हूं कि अन्याय का अंत होगा। आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, उसमें हर संस्थान की निष्पक्षता, दृढ़ता और स्वतंत्रता की परीक्षा ली जा रही है और प्रेस भी इसमें शामिल है। किंतु सत्ता कभी निरंकुश नहीं हो सकेगी।
मैं उम्मीद से भरी हूं कि अन्याय का अंत होगा। आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, उसमें हर संस्थान की निष्पक्षता, दृढ़ता और स्वतंत्रता की परीक्षा ली जा रही है और प्रेस भी इसमें शामिल है। किंतु सत्ता कभी निरंकुश नहीं हो सकेगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं। लेख voxeurop से साभार)