डाक्टर बोले- सरकार विश्वास दिलाए कि जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता बेहतर है तो हम लिखना शुरू करें

 पड़ताल में सामने आया है कि शहर के अधिकांश निजी अस्पतालों में भी डाक्टर जेनेरिक दवाएं मरीज के पर्चे पर नहीं लिखते … 

जेनेरिक दवाएं कारगर हैं या नहीं, इसका भरोसा अभी डाक्टरों को ही नहीं है, इसलिए वह हर मरीज के पर्चे पर ब्रांडेड दवा ही लिखते हैं। न्यूरोलाजिस्ट डा. संतोष त्रिपाठी का कहना है कि ब्रांडेड दवाओं पर वर्षों का तजुर्बा है, इसलिए उन पर भरोसा है। जेनेरिक दवाएं अभी आई हैं, यह भी नहीं पता कि वह किस कंपनी में और कहां बन रही हैं। सरकार भले ही जेनेरिक दवाओं को प्रोत्साहित कर रही हो पर उनके ही डाक्टर सरकार की बातों पर पूर्ण भरोसा नहीं करते। डाक्टरों का कहना है सरकार यह विश्वास दिलाए कि जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता बेहतर है तो हम इन्हें लिखना शुरू कर देंगे। इन दवाओं का प्रचार-प्रसार तक नहीं होता, जबकि निजी दवा कंपनियां खूब प्रचार करती हैं।

नईदुनिया पड़ताल में सामने आया है कि शहर के अधिकांश निजी अस्पतालों में भी डाक्टर जेनेरिक दवाएं मरीज के पर्चे पर नहीं लिखते। मरीजों के उपचार पर्चे पर डाक्टर फार्मूला न लिखकर दवा का ब्रांड लिख देते हैं। इन ब्रांडेड दवाओं को खरीदने पर मरीजों को हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि यही दवा जेनेरिक में कम दाम पर मिलती है। मरीज डाक्टर द्वारा लिखी गई दवा पर विश्वास कर जेनेरिक दवाएं नहीं खरीदता। प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर सस्ते दाम पर जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

अग्रवाल हास्पिटल: दवा का ब्रांड लिखा था, फार्मूला नहीं थाः चेतकपुरी स्थित अग्रवाल हास्पिटल की ओपीडी में इलाज के लिए मरीजों की भीड़ जमा थी। डा. बीना अग्रवाल से परामर्श लेकर मरीज अस्पताल से बाहर निकल रहे थे। मरीजों के हाथ में जो पर्चा था उस पर सिर्फ दवा का ब्रांड लिखा था, जबकि दवा का फार्मूला भी लिखा जाना था। डाक्टर द्वारा न लिखे जाने से मरीज भी जेनेरिक दवाओं विश्वास नहीं कर पाता।

धोंडे हास्पिटल: पर्चे पर लिखी थी बांडेड दवाएंः गाड़वे की गोठ स्थित धोंडे हास्पिटल में डा. कीर्ति धोंडे के मेडिकल परामर्श लेकर बाहर आए मरीजों के दवा पर्चे पर भी दवा का ब्रांड ही लिखा हुआ था। इन्होंने भी दवा के ब्रांड के साथ उसका फार्मूला नहीं लिखा था। ऐसे में मरीज जेनेरिक दवाएं नहीं खरीदता। ब्रांड नाम लिखा होने पर मरीज मेडिकल से वही दवा खरीदता है जो डाक्टर ने पर्चे पर लिखी होती है।

मेट्रो हास्पिटल: अस्पताल के स्टोर पर मिल रही थीं ब्रांडेड दवाएंः चेतकपुरी स्थित न्यूरोलाजिस्ट डा संतोष त्रिपाठी को दिखाने के लिए मरीजों की कतार लगी हुई थी। डाक्टर लगातार मरीजों को देख रहे थे और उन्हें जांच के साथ दवा भी लिखते जा रहे थे। जो ब्रांडेड दवा पर्चे पर लिखी जा रही थी वह उन्हीं के अस्पताल में संचालित दवा स्टोर पर उपलब्ध थी। यदि दवा के साथ फार्मूला लिखा जाता तो जेनेरिक दवाएं सस्ते दाम पर मिल जाती।

वर्जन-

जेनेरिक दवाएं सस्ती और अच्छी हैं। इनका प्रचार-प्रसार नहीं होता, इसलिए उन्हें याद नहीं रखा जा पाता। जिस तरह निजी दवा कंपनियां प्रचार-प्रसार करती हैं उसी तरह से इनका भी प्रचार हो तो अधिकांस डाक्टर जेनेरिक दवाएं ही लिखेंगे। शासन को निजी कंपनियों से मुकाबना करने प्रचार बढ़ाना चाहिए।

डा. एसआर अग्रवाल, संचालक अग्रवाल हास्पिटल

वर्जन-

यदि कोई मरीज ब्रांडेड दवा खरीदने में असमर्थता जताता है तो हम उसे जेनेरिक दवाएं लिखते हैं। यह दवाओं हर स्थान पर उपलब्ध न होना सबसे बड़ी समस्या है। हर मरीज या अटेंडेंट को पता नहीं होता कि जेनेरिक दवाएं कहां मिलेंगी, इसलिए नहीं लिखी जाती।

डा. संतोष त्रिपाठी मेट्रो हास्पिटल

वर्जन-

मरीजों के दवा पर्चे पर जेनेरिक दवाएं लिखी जाना चाहिए, पहले कुछ समय लिखीं भी गई, लेकिन बाद में बंद कर दिया। इसकी मुख्य वजह यह थी कि यह सभी जगह उपलब्ध नहीं होतीं। मरीजों की परेशानी को देखते हुए इन दवाओं को लिखना बंद कर दिया था, पर अब फिर से चालू कर देंगे।

डा. सुहास धोंडे, संचालक धोंडे नर्सिंग होम

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