आज जम्मू-कश्मीर में अनेक सकारात्मक घटनाएं हो रही, लेकिन नकारात्मकता से प्रेरित राजनीति इन पर बट्‌टा लगा सकती है

जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने को तीन साल पूरे होने को आए हैं और उम्मीद की किरणें नजर आने लगी हैं। रिकॉर्ड संख्या में सैलानी कश्मीर उमड़ रहे हैं। इस साल अभी तक छह लाख पर्यटक कश्मीर जा चुके हैं। बुनियादी ढांचे की नई परियोजनाओं पर काम शुरू हो गया है। पूरे राज्य में बांध से बिजली निर्माण के लिए पॉवर प्लांट्स बनाए जा रहे हैं।

अलबत्ता आतंकवाद का खतरा अभी बरकरार है, लेकिन जिहादी हमलों में भारी कमी आई है। वर्ष 2021 में कश्मीर से 184 आतंकवादियों का सफाया कर दिया गया। इस साल के शुरुआती चार महीनों में 62 और आतंकी मारे गए। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक घाटी में सक्रिय आतंकियों की संख्या घटकर 200 रह गई है। लेकिन स्थानीय लोगों का एक नेटवर्क आतंकवादियों को सुरक्षा बलों के मूवमेंट की जानकारियां देता रहता है।

वो उन्हें अपने घर में पनाह भी देता है और दूसरी सुविधाएं मुहैया कराता है। इसी के कारण समय-समय पर सॉफ्ट टारगेट माने जाने वाले लोगों जैसे ऑफ ड्यूटी पुलिस कर्मचारी, सरपंच, नागरिकगण आदि पर आतंकी हमले होते रहते हैं। हाल ही में अमेरिका की सांसद इल्हान उमर- जो कि कट्‌टर वामपंथी और इस्लामिस्ट हैं- ने आर्थिक रूप से पिछड़े पीओके की यात्रा की थी।

वहीं कश्मीर घाटी में यूएई के अग्रणी निवेशक आए थे। इन दोनों यात्राओं में जो अंतर है, उसे देखा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर में चल रही बुनियादी ढांचे की 50 परियोजनाओं ने ऊर्जा, सड़क, स्वास्थ्य, कृषि आदि सेक्टरों में 58,477 करोड़ रुपयों के निवेश को आकृष्ट किया है। यूनियन टेरिटरी में आईआईटी, आईआईएम और एआईआईएम जैसी संस्थाओं की स्थापना से कश्मीरियों को विश्वस्तरीय तकनीकी और प्रबंधन की शिक्षा के साथ ही अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं भी मिलेंगी।

आईपीएल में जम्मू के तेज गेंदबाज उमरान मलिक की कामयाबी से प्रेरित होकर कश्मीरी युवा भी खेलों में दिलचस्पी ले रहे हैं और वे देश की मुख्यधारा का हिस्सा बनना चाहते हैं। ये सभी सकारात्मक घटनाएं हैं, लेकिन नकारात्मकता से प्रेरित राजनीति इन पर बट्‌टा लगा सकती है। कश्मीर के सामंती कुलीन यानी अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार अभी तक इस सच को स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि वे सत्ता गंवा चुके हैं।

अब्दुल्ला परिवार का लगभग 70 सालों तक जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर दबदबा रहा। 1950 के दशक में जब शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार किया गया था या 1990 में जब कश्मीर में गवर्नर शासन लगाया गया था, उसे छोड़ दें तो अधिकतर समय यहां अब्दुल्लाओं की तीन पीढ़ियों का राज रहा। 2000 के आसपास मुफ्ती मोहम्मद सईद का राजनीतिक वंश उभरा, जिसने अब्दुल्लाओं को चुनौती दी। 2002 में पीडीपी ने कांग्रेस से गठजोड़ करके सरकार बनाई।

इससे जमीन पर कुछ नहीं बदला। आतंकवादी प्रशिक्षण लेते रहे। उन्हें पाकिस्तान से फंडिंग और हथियार मिलते रहे। वे भारतीय सुरक्षा बलों और नागरिकों पर प्रहार करते रहे। मुफ्ती के घर पर भारी पहरेदारी रहती थी। अपनी एक श्रीनगर यात्रा के दौरान मैंने देखा कि खाली सड़कों पर फौजियों का हुजूम था और वे सभी मुफ्ती के घर की तरफ जा रहे थे। लंच के दौरान मुख्यमंत्री ने बड़ी मासूमियत से घाटी में आतंकी वारदातों के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने की बात कही थी।

अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के बाद केंद्र सरकार के सामने तीन बड़े काम थे। पहला, पाकिस्तान से सम्भावित आतंकी हमले से निपटना, क्योंकि इस घटना से पड़ोसी मुल्क तिलमिलाया हुआ था। दूसरा, घाटी में कानून-व्यवस्था का राज कायम करना और निवेशकों को न्योता देना। तीसरा, कश्मीर में परिसीमन और चुनावों की तैयारी करते हुए राज्य के दर्जे को बहाल करना। पहले दो काम तो आसानी से कर दिए गए। लेकिन तीसरा जटिल है।

अनेक दलों का गुपकार गठजोड़ चाहता था कि पहले राज्य का दर्जा मिले, फिर चुनाव हों। केंद्र सरकार ने इस प्रक्रिया को उलटकर कहा कि पहले परिसीमन पूरा हो, फिर चुनाव होंगे और फिर राज्य का दर्जा बहाल होगा। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा, राज्य का दर्जा तभी बहाल किया जाएगा, जब कश्मीर में जमीनी परिस्थितियां अनुकूल होंगी। सरपंचों और पुलिसकर्मियों पर आतंकी हमलों की घटनाओं से तो स्थितियां अनुकूल होने से रहीं।

यहां यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि कश्मीर मामले में पाकिस्तान की नई शाहबाज शरीफ सरकार क्या रुख अपनाती है। इमरान खान ने तो भारत के विरुद्ध मोर्चा खोल रखा था। लेकिन शरीफ परिवार कारोबारी है। उसके शीर्ष भारतीय व्यवसायियों से इस्पात उद्योग में गहरे ताल्लुक हैं। उनका रवैया इमरान जितना आक्रामक नहीं रहेगा।

नवम्बर में पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख जावेद कमर बाजवा रिटायर हो रहे हैं। उनकी जगह कौन लेगा, इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है, क्योंकि इसी से पाकिस्तान की भारत-नीति तय होगी और यह निश्चित होगा कि जम्मू-कश्मीर में होने जा रहे चुनावों में किस सीमा तक व्यवधान उत्पन्न किया जा सकता है।

बिलावल भुट्‌टो पर भी नजर रहेगी, जो शरीफ सरकार में विदेश मंत्री हैं। भारत जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात चाहता है। अगर पाकिस्तानी अंदरूनी मोर्चे पर संघर्ष करता है, आर्थिक रूप से कमजोर बना रहता है और तालिबान से उसका टकराव चलता रहता है तो यह हमारे हित में अच्छी बात ही कही जाएगी।

परिसीमन से बदलेंगे सियासी समीकरण
जम्मू और कश्मीर में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने की सम्भावना है। परिसीमन की प्रक्रिया से राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई है। जम्मू में छह सीटें बढ़ी हैं और अब वहां 43 सीटें हो गई हैं। घाटी में एक सीट बढ़ी और अब वहां 47 सीटें हैं। इससे भाजपा को जो लाभ मिल सकता है, उससे अब्दुल्ला और मुफ्ती तमतमाए हुए हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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