कुचले हुए सपनों की फटी पोटली बेरोजगारी के रूप में पसर चुकी है
हाल ये हैं कि आम आदमी के दर्द की कहानी को कर्णधारों ने अखबार की कतरन बना दिया है। कुचले हुए सपनों की फटी पोटली बेरोजगारी के रूप में पसर चुकी है और यदि यह लंबे समय तक चली तो इसके दो असर होंगे। या तो युवा पीढ़ी अवसाद में डूब जाएगी या आवारगी में उतर जाएगी। यही हाल महंगाई का है। पहले यह कमर तोड़ती थी, अब आत्मा को आहत कर रही है। तो खासकर बेरोजगारी और महंगाई की पीड़ा से कैसे बचा जाए?
इनसे बचने की कोई कला तो आना चाहिए। इस कला का नाम है अध्यात्म। ईश्वर ने अलग-अलग अवतार लेकर बताया कि मैं जब भी आता हूं, मेरे समय भी दुष्ट, भ्रष्ट व पापी लोग होते हैं और इनके बीच में से ही रास्ता निकालना पड़ता है। कठिन समय तो भगवान राम और कृष्ण ने भी देखा, लेकिन दोनों अवतार सिखा गए कि हमारे पास आत्मा की कला होना चाहिए, अध्यात्म का स्वाद होना चाहिए। फिर कैसा भी कठिन समय हो, उससे पार पा जाएंगे।