अगर काम ईमानदारी और एकाग्रता के साथ किया जाता है तो प्रकृति भी हमारा साथ देती है
बघेलखंड में रीवा राज्य के एक राजा थे वीर सिंह जूदेव। उनकी राजधानी में एक बस्ती थी, जहां बहुत सारी झोपड़ियां थीं। वहां एक सेन नाम के व्यक्ति थे, वे बहुत सेवाभावी, संतोषी, उदार थे। वे भगवान के सच्चे भक्त थे। पैसों की कितनी भी कमी आ जाए, वे किसी से उधार नहीं मांगते थे।
सेन या तो भगवान का ध्यान करते थे या राज महल जाकर राजा की सेवा करते थे। वे हर रोज अपना भजन-पूजन करके राज महल पहुंच जाते थे। राजा के बाल बनाना, उनकी मालिश करना, उन्हें स्नान कराना, ये उनका दैनिक काम था। बाकी समय में वे भजन-पूजन में लगे रहते थे।
एक दिन सेन अपने घर से निकले तो उन्होंने देखा कि भक्तों की एक मंडली चली आ रही है। वे सभी कीर्तन कर रहे थे। सेन को भगवान का नाम सुनाई दिया और भक्तों को देखा तो वे भी भक्ति में डूब गए। सेन ने सभी भक्तों को प्रणाम किया और सभी भक्तों को लेकर अपने घर पहुंचे। जलपान कराया और उनके साथ भजन करने लगे।
सेन ये बात भूल गए कि उन्हें राज महल जाना था। महल में राजा वीर सिंह सेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने सोचा कि सेन कभी देर नहीं करते, आज क्या हो गया? उसी समय स्वयं भगवान सेन जी का रूप लेकर राजा के पास पहुंच गए।
सेन जी के चेहरे का तेज देखकर राजा हैरान हो गए। राजा ने उस दिन सेन जी से मालिश कराई और बाल भी बनवाए। राजा ने कहा, ‘आज मुझे जैसा महसूस हो रहा है, ऐसी तरंगे मैंने पहले कभी महसूस नहीं कीं।’
भगवान जो सेन जी बनकर आए थे, वे अपना काम करके चले गए।
कुछ समय बाद असली सेन जी को याद आया कि मैं तो भजन में डूब गया, राजा जी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। वे दौड़कर महल पहुंचे तो पहरेदारों ने पूछा, ‘क्या बात है दौड़कर आ रहे हो, क्या कोई सामान भूल गए हो?’
सेन जी बोले, ‘सामान नहीं भूला, मैं तो अभी आया हूं।’ कुछ देर बाद वे राजा के सामने पहुंचे और बोले, ‘क्षमा कीजिए, आज मैं समय पर नहीं आ सका।’
राजा ने कहा, ‘थोड़ी देर पहले अगर आप नहीं थे तो वे कौन थे?’ राजा समझ गए कि उस समय मुझे जो आनंद आ रहा था, मेरे आसपास जो सकारात्मक तरंगें थीं, वह इस वजह थे कि इस सेन के बदले सेवा करने स्वयं भगवान आ गए थे। राजा ने पूरी घटना सेन जी को सुनाई तो वे रोने लगे। सेन जी ने कहा, ‘मेरे भगवान को मेरे कारण आज ये काम करना पड़ा।’
राजा ने कहा, ‘आपकी सेवा ही ऐसी है कि उससे प्रसन्न होकर स्वयं भगवान ही चले आए।’
सीख
इस कहानी ने हमें सदेश दिया है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। अगर काम ईमानदारी और सेवा भाव के साथ किया जाता है तो प्रकृति और परमात्मा भी मदद करते हैं।