भिण्ड : 300 बिस्तर के अस्पताल में सिर्फ 23 डॉक्टर, फर्श पर सोने को मजबूर

जिला अस्पताल में रोज औसतन 400 से 450 मरीजों का कर रहे उपचार, उमस से बढ़ रहे उल्टी-दस्त के मरीज

300 बिस्तर के अस्पताल में सिर्फ 23 डॉक्टर, फर्श पर सोने को मजबूर

39 पद स्वीकृत हैं अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टर के 06 विशेषज्ञ चिकित्सक दे रहे स्वास्थ्य सेवाएं 33 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पद पड़े हैं खाली 06 महिला मेडिकल ऑफिसर हैं पदस्थ 11 पुरुष मेडिकल ऑफिसर 01 सिविल अस्पताल जिले में 07 सीएचसी जिले भर में

जिला अस्पताल की ओपीडी में पर्ची बनवाने के लिए लगी कतार

जमीन पर इलाज लेती महिला के साथ बैठे उसके मासूम बच्चे

भिण्ड. 300 बिस्तरीय जिला अस्पताल में इन दिनों महज 23 चिकित्सक हर रोज औसतन 400 से 450 मरीजों का इलाज कर रहे हैं। दो दशक से भी अधिक समय से डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे जिला अस्पताल में उमस भरी गर्मी के चलते उल्टी व दस्त के बढ़ रहे मरीजों को संभालना मुश्किल हो रहा है। आलम ये है कि बिस्तर फुल हो जाने के कारण 100 से ज्यादा मरीजों को फर्श पर ही इलाज लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।

जिला अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों के कुल 39 पद स्वीकृत हैं जिनमें से महज सात स्पेशलिस्ट डॉक्टर ही पदस्थ हैं। 32 विशेष चिकित्सकों के पद नहीं भरे जाने से आम नागरिक को स्वास्थ्य संबंधी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। फिलहाल हालात ये हैं कि ओपीडी में रोज 1200 से 1300 मरीज डॉक्टर को मर्ज दिखाने के लिए पर्चा बनवाने कतार में लग रहे हैं। घंटों की जद्दोजहद के बाद जब पर्चा बन जाता है तो मरीज को कैबिन में चिकित्सक ही मौजूद नहीं मिल पाते। दरअसल, चिकित्सकों को अस्पताल के विभिन्न वार्डों में भर्ती मरीजों को देखने के लिए राउण्ड लगाने के लिए जाने के अलावा शासकीय कार्य से संबंधित बैठकों एवं न्यायालयों में पेशी के लिए भी जाना होता है। इसके अलावा दो से तीन चिकित्सक व्यक्तिगत आवश्यकता पर अवकाश पर भी रहते हैं।

प्राइवेट इलाज ले पाने में असमर्थ कई मरीज

आर्थिक रूप से कमजोर तबके के वह मरीज जो प्राइवेट इलाज करा पाने में समर्थ नहीं हैं उन्हें मजबूरन समस्याओं के भंवर में कूदकर जिला अस्पताल में इलाज लेने के लिए विवश होना पड़ रहा है। ज्यादातर मरीजों को डॉक्टरों की चिकित्सा सलाह नहीं मिल पा रही। वहीं वार्ड में भर्ती मरीजों का इलाज नर्सिंग स्टाफ के भरोसे होता नजर आ रहा है। भले ही अस्पताल की साफ सफाई एवं संसाधनों के रूप में व्यवस्थाएं दुरुस्त नजर आ रही हों, लेकिन मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं।

कस्बाई एवं ग्रामीण अंचल के अस्पतालों की स्थिति और बदतर : लहार का सिविल अस्पताल हो या गोहद, मेहगांव, अमायन, फूप आदि कस्बाई इलाकों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रत्येक अस्पताल चिकित्सकों की भारी कमी की समस्या से गुजर रहा है। आलम ये है कि लोगों को प्राइवेट इलाज लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में जिले भर में सक्रिय झोलाछापों के क्लिनिक फल-फूल रहे हैं। गौरतलब है कि झोलाछाप क्लिनिकों पर पिछले पांच साल में 50 से ज्यादा मरीजों की मौत हो चुकी हैं। गरीब तबके के मरीज झोलाछाप क्लिनिक से इलाज लेने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

जितने चिकित्सक उपलब्ध हैं उन्हीं से बेहतर सेवाएं लिए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। हमारी कोशिश है कोई भी मरीज बिना उपचार के अस्पताल से न लौट पाए। भले ही उसे इलाज फर्श पर ही क्यों न देना पड़े।

डॉ. अनिल गोयलसिविल सर्जन जिला अस्पताल भिण्ड

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