राष्ट्रपति चुनाव लड़ते थे हरि राम और धरती-पकड़ जैसे लोग…?

1967 में 17 में से 9 को एक वोट भी नहीं मिला; शपथ का भी अलग किस्सा …

1969 में देश के कानून निर्माता उस समय चिंता में पड़ गए जब राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का पद पर रहने के दौरान ही निधन हो गया। उस समय तक किसी ने ये नहीं सोचा था कि अगर राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाए या वह इस्तीफा दे दे तो फिर सरकार के प्रमुख का दायित्व कौन संभालेगा? इस संकट के समाधान से नींव पड़ी एक नए नियम की।

इसी तरह 1967 के राष्ट्रपति चुनावों में 17 उम्मीदवार और 1969 के चुनाव में 15 उम्मीदवार मैदान में उतर गए, तो कैंडिडेट्स की संख्या पर लगाम लगाने के लिए भी एक नए नियम की नींव पड़ी।

चलिए राष्ट्रपति चुनाव की इस स्पेशल सीरीज में विस्तार से उन घटनाओं को जानते हैं, जिसने न केवल राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया, राष्ट्रपति पद से जुड़ा नियम बल्कि शपथ ग्रहण की तारीख भी बदल दी।

1. एक राष्ट्रपति चुनाव में उतर गए 17 कैंडिडेट्स, बदलना पड़ा नियम:

वैसे तो पिछले कई वर्षों से भारत में राष्ट्रपति चुनाव में दो ही कैंडिडेट उतरते रहे हैं। कम से कम पिछले करीब दो दशकों से यही चलन रहा है, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। 1967 में हुए देश के चौथे राष्ट्रपति चुनाव में 17 कैंडिडेट मैदान में उतर गए थे।

इन कैंडिडेट्स में एक चौधरी हरि राम नाम के व्यक्ति भी थे, जो राष्ट्रपति पद के शुरुआती 4 चुनाव लड़े थे। चौथे, यानी 1967 के चुनाव में उन्हें एक भी वोट नहीं मिला, जबकि इस समय तक किसी कैंडिडेट के लिए दो प्रस्तावक और दो अनुमोदक चाहिए थे। यानी, उनकी सिफारिश करने वालों ने भी उन्हें वोट नहीं दिया। इसके बाद से ही उन्होंने चुनाव लड़ना बंद किया।

चौधरी हरि राम चार बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़े थे। 1962 के चुनाव के बाद राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के आमंत्रण पर वह परिवार समेत राष्ट्रपति भवन गए थे। 1967 के राष्ट्रपति चुनाव में एक भी वोट नहीं मिलने के बाद उन्होंने चुनाव लड़ना छोड़ दिया।

ये अब तक के किसी राष्ट्रपति चुनाव में सबसे ज्यादा कैंडिडेट के उतरने का रिकॉर्ड है। इन 17 कैंडिडेट्स में से 9 को एक भी वोट नहीं मिला। वहीं 4 अन्य को 250 से कम वोट वैल्यू के मत मिले। इस चुनाव में जाकिर हुसैन ने जीत हासिल की थी।

जाकिर हुसैन के निधन से दो साल बाद ही 1969 में फिर से राष्ट्रपति चुनाव हुए। इस बार भी 15 कैंडिडेट मैदान में उतरे। इनमें से 5 कैंडिडेट्स को एक भी वोट नहीं मिला। इन दो चुनावों ने आने वाले चुनावों में कैंडिटेट्स की संख्या पर लगाम कसने वाले नियम की नींव डाली।

इसके बाद राष्ट्रपति चुनावों में नॉन-सीरियस कैंडिडेट्स के खड़े होने पर रोक लगाने के लिए 1974 में राष्ट्रपति निर्वाचन एक्ट में बदलाव करके एक नया नियम बनाया गया। इसके तहत, राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए किसी कैंडिडेट को कम से कम 20 इलेक्टर्स का समर्थन (10 प्रस्तावक, 10 अनुमोदक) होना जरूरी बना दिया गया। एक इलेक्टर एक ही कैंडिडेट के नाम का प्रस्ताव दे सकता है या अनुमोदन करता है।

दरअसल, राष्ट्रपति का चुनाव दोनों सदनों के निर्वाचित सांसद और सभी राज्यों के निर्वाचित विधायक करते हैं। सभी सांसदों और विधायकों को मिलाकर इलेक्टरोल कॉलेज बनता है और इनमें से प्रत्येक को इलेक्टर कहते हैं।

कैंडिडेट के लिए 20 इलेक्टर्स के समर्थन का नियम लाने का नतीजा ये हुआ कि 1974 के राष्ट्रपति चुनाव में केवल 2 ही कैंडिडेट उतरे, लेकिन समय के साथ ये नियम भी कमजोर पड़ गया और आगे चलकर इसमें फिर से बदलाव करना पड़ा।

1992 के राष्ट्रपति चुनाव में उतरे ‘धरती पकड़’ और राम जेठमलानी, फिर बदला नियम

1992 के राष्ट्रपति चुनाव ने दिखाया कि नॉन-सीरियस कैंडिडेट्स को रोकने के लिए बना 20 इलेक्ट्रर्स के समर्थन वाला नियम नाकाफी था। 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में चर्चित वकील राम जेठमलानी के साथ ही काका जोगिंदर सिंह उर्फ ‘धरती पकड़’ भी न केवल खड़े हुए, बल्कि वोटिंग स्टेज तक पहुंच गए। ‘धरती पकड़’ सैकड़ों चुनाव लड़ने और हारने के लिए प्रसिद्ध थे।

चार कैंडिडेट वाले चुनाव में राम जेठमलानी को कुल 2704 वैल्यू के वोट मिले, वहीं ‘धरती पकड़’ को 1135 वोट। नतीजा इन दोनों की ही जमानत जब्त हो गई। इस चुनाव को जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को हराते हुए डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने जीता था।

काका जोगिंदर सिंह उर्फ ‘धरती पकड़’ एक खास आदत के लिए चर्चित थे। दरअसल, वे चुनाव हारने पर लोगों को सूखे मेवे और मिश्री खिलाकर उनका मुंह मीठा करते थे। कहा जाता है कि काका ने 36 सालों में 300 से ज्यादा चुनावों में नामांकन दाखिल किया, जिनमें से कुछ में उनका नामाकंन खारिज हुआ और बाकियों में वे हार गए।

1992 के चुनावों से सबक लेते हुए 1997 से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए कैंडिडेट्स के लिए 20 इलेक्टर्स के समर्थन की संख्या को बढ़ाकर 100 इलेक्टर्स (50 प्रस्तावक, 50 अनुमोदक) कर दिया गया। 1997 के बाद से अब तक किसी भी राष्ट्रपति चुनाव में कोई तीसरा कैंडिडेट वोटिंग स्टेज तक नहीं पहुंचा है।

1992 के राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हुए प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी की जमानत जब्त हो गई थी।

2.जब राष्ट्रपति के निधन से खड़ा हुआ संवैधानिक संकट, ऐसे निकला समाधान

डॉ.जाकिर हुसैन 13 मई 1967 में देश के तीसरे राष्ट्रपति बने थे। वह देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति भी थे। राष्ट्रपति बनने के महज 2 साल बाद ही 3 मई 1969 को उनका निधन हो गया। ये पहली बार था जब कार्यकाल से पहले ही राष्ट्रपति का पद खाली हुआ था। जाकिर हुसैन की मौत ने देश में संवैधानिक संकट पैदा कर दिया।

दरअसल, संविधान में भी इस बात का जिक्र ही नहीं था कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति की अचानक मौत या इस्तीफे से पद खाली होने पर सरकार के प्रमुख का दायित्व कौन निभाएगा?

इस संकट से निपटने के लिए सदन ने करीब तीन हफ्ते बाद ही, यानी 28 मई 1969 को प्रेसिडेंट (डिस्चार्ज ऑफ फंक्शंस) ऐक्ट, 1969 बनाया। इस ऐक्ट में इस संवैधानिक संकट का समाधान निकाला गया, जो इस प्रकार है:

किन परिस्थितियों में खाली हो सकता है राष्ट्रपति पद:

  • 5 साल का कार्यकाल खत्म होने पर
  • इस्तीफा देने पर
  • मौत हो जाने पर
  • महाभियोग से

प्रेसिडेंट (डिस्चार्ज ऑफ फंक्शंस) ऐक्ट, 1969 के मुताबिक, अगर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति मौजूद नहीं हैं, या उनकी मौत हो जाए तो सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस राष्ट्रपति के रूप में काम करेगा या उनके दायित्वों को निभाएगा।

अगर सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस भी मौजूद नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट का सबसे सीनियर जज राष्ट्रपति के रूप में काम करेगा या उनके दायित्वों को निभाएगा।

जब कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में काम करता है तो उसे राष्ट्रपति को मिलने वाले सभी अधिकारों के साथ ही उन्हें मिलने वाला वेतन, भत्ते और विशेषाधिकार भी मिलते हैं

जाकिर हुसैन ऐसे पहले राष्ट्रपति थे, जिनका पद पर रहते हुए निधन हुआ था।

3. कब से शुरू हुई 25 जुलाई को ही शपथ लेने की परंपरा?

भारत में हमेशा से ही 25 जुलाई को राष्ट्रपति के शपथ लेने की परंपरा नहीं थी। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। वह 12 साल 107 दिन तक, यानी 12 मई 1962 तक पद पर रहे थे।

13 मई 1962 को सर्वपल्ली राधाकृष्णन दूसरे राष्ट्रपति बने, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया और 13 मई 1967 तक पद पर रहे।

13 मई 1967 को डॉ. जाकिर हुसैन तीसरे राष्ट्रपति बने, लेकिन कार्यकाल पूरा करने से पहले ही 3 मई 1969 को उनका निधन हो गया।

हुसैन के निधन के बाद वीवी गिरी 3 मई 1969 से 20 जुलाई 1969 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे। जुलाई-अगस्त 1969 में फिर से राष्ट्रपति चुनाव हुए और इस दौरान कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका निभाई मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने।

1969 राष्ट्रपति चुनावों में जीत के साथ 24 अगस्त 1969 को वीवी गिरी देश के चौथे राष्ट्रपति बने और 5 साल का कार्यकाल पूरा कर 24 अगस्त 1974 तक पद पर रहे।

24 अगस्त 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद देश के पांचवें राष्ट्रपति बने, लेकिन करीब सवा दो साल बाद 11 फरवरी 1977 को उनका निधन हो गया। अहमद के निधन के बाद करीब 5 महीने बीडी जत्ती कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे।

नीलम संजीव रेड्डी 25 जुलाई को शपथ लेने वाले पहले राष्ट्रपति थे। इसके बाद से इसी तारीख को राष्ट्रपति के शपथ लेने की परंपरा बन गई।

1977 में हुए राष्ट्रपति चुनावों में जीत के बाद 25 जुलाई 1977 को नीलम संजीव रेड्डी देश के छठे राष्ट्रपति बने। यहीं से शुरू हुई देश के राष्ट्रपति पद की शपथ 25 जुलाई को लेने की परंपरा, जो अब तक जारी है। इसके बाद हर राष्ट्रपति ने अपना कार्यकाल पूरा किया है। दरअसल, तब से हर राष्ट्रपति का 5 साल का कार्यकाल 25 जुलाई को पूरा होता है और इसलिए उसी दिन, यानी 25 जुलाई को ही अगले राष्ट्रपति शपथ लेते हैं। अब तक 9 राष्ट्रपति 25 जुलाई को शपथ ले चुके हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *