डॉलर के मुकाबले रुपये में सबसे बड़ी गिरावट, 78.85 के लेवल तक गिरा रुपया

 23 फरवरी, 2022 को युद्ध शुरू होने से पहले रुपया डॉलर के मुकाबले 74.62 रुपये पर था. जानकारों का मानना है कि रुपये डॉलर के मुकाबले 80 रुपये के लेवल तक गिर सकता है.

डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपये में मंगलवार को ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली. निवेशकों द्वारा जबरदस्त बिकवाली के चलते एक डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 49 पैसे की गिरावट के साथ 78.85 रुपये तक जा लुढ़का. करेंसी बाजार में आज के ट्रेड के खत्म होने पर एक डॉलर के मुकाबले 78.77 रुपये पर बंद हुआ है.

डॉलर के आगे रुपया पस्त
इंटरबैंक करेंसी एक्सचेंज मार्केट में रुपया डॉलर के मुकाबले 15 पैसे गिरकर 78.51 पर खुला. लेकिन निवेशकों की भारी बिकवाली के चलते 78.85 रुपये तक जा लुढ़का. दरअसल अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में आई उछाल के चलते कच्चे तेल के दामों में अंतरराष्ट्रीय बाजार तेजी देखने को मिली है. जिससे महंगाई बढ़ने का खतरा मंडराने लगा है.

क्यों आई रुपये में गिरावट
रूस और  यूक्रेन के बीच युद्ध होने के बाद से रुपया लगातार डॉलर के मुकाबले कमजोर होता जा रहा है. विदेशी निवेशकों द्वारा अपने निवेश को वापस निकालने के चलते डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के अपने ऐतिहासिक निचले स्तर 78.85 रुपये पर जा गिरा है. आपको बता दें 23 फरवरी, 2022 को युद्ध शुरू होने से पहले रुपया डॉलर के मुकाबले 74.62 रुपये पर था. जानकारों का मानना है कि रुपये डॉलर के मुकाबले 80 रुपये के लेवल तक गिर सकता है.

महंगे डॉलर का क्या होगा असर 
महंगा डॉलर का भारत को बड़ा खामियाजा उठाना होगा. सरकारी तेल कंपनियां ( Oil Marketing Companies) डॉलर में भुगतान कर कच्चा तेल ( Crude Oil) खरीदती हैं. अगर रुपये के मुकाबले डॉलर महंगा हुआ और रुपया में गिरावट आई तो सरकारी तेल कंपनियों को कच्चा तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर का भुगतान करना होगा. इससे आयात महंगा होगा और आम उपभोक्ताओं को पेट्रोल डीजल के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी.

भारत से लाखों बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं जिनके अभिभावक फीस से लेकर रहने का खर्च भेजते हैं. उनकी विदेश में पढ़ाई महंगी हो जाएगी. क्योंकि अभिभावकों को  ज्यादा रुपये देकर डॉलर खरीदना होगा जिससे वे फीस चुका सकें. महंगे डॉलर का खामियाजा अभिभावकों को उठाना होगा.

खाने का तेल पहले से ही महंगा है जो आयात तो पूरा किया जा रहा है. डॉलर के महंगे होने पर खाने का तेल आयात करना और भी महंगा होगा. खाने के तेल आयत करने के लिए ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ेगा. जिससे आम लोगों को पाम आयल से लेकर दूसरे खाने के तेल के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी.

कंज्यूमर ड्यूरेबल्स से लेकर ऑटोमोबाइल कंपनियां अपनी कई पार्ट्स विदेशों से इंपोर्ट करती है. इन चीजों के दामों में बढ़ोतरी आ सकती है.

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