6 लड़कों ने शुरू किया था श्रीलंका में प्रोटेस्ट …?

उस आंदोलन की कहानी, जिसने 4 महीने में ही ताकतवर राजपक्षे परिवार को सत्ता से उखाड़ फेंका….

1 मार्च 2022: श्रीलंका के कोहुवाला शहर में 6 लड़के हाथों में मोमबत्तियां और पोस्टर लिए अपने घरों से निकल पड़े। ये लड़के IT प्रोफेशनल थे और उनके घरों में रोज 10-10 घंटे बिजली कट रही थी।

13 जुलाई 2022: ताकतवर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर मालदीव भाग चुके हैं। कोलंबो में PM हाउस पर गुस्साए श्रीलंकाई लोगों ने कब्जा कर लिया है। देश में 4 महीने में तीसरी बार इमरजेंसी लगा दी गई है।

इस एक्सप्लेनर में हम आपको बताएंगे कि श्रीलंका में बिजली कटौती को लेकर शुरू हुआ 6 लड़कों का विरोध प्रदर्शन कैसे सवा दो करोड़ लोगों के बीच फैल गया, जिसने राजपक्षे परिवार को सत्ता से उखाड़ फेंका?

इस जनक्रांति की पूरी कहानी को समझने के लिए ऊपर बताए पहले किस्से पर लौटते हैं…

दरअसल, वो 6 लड़के जिस 10 घंटे की बिजली कटौती से परेशान थे, उसकी वजह श्रीलंका की आर्थिक बदहाली थी।

श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका था। वह जरूरी चीजों का आयात नहीं कर पा रहा था, क्योंकि श्रीलंका दवाओं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए इम्पोर्ट पर निर्भर है।

इससे लोगों को रोजमर्रा से जुड़ी चीजें भी नहीं मिल पा रही थीं या कई गुना महंगी मिल रही थीं। यही नहीं अनाज, चीनी, मिल्क पाउडर, सब्जियों तक हर जरूरी सामान की कमी हो गई थी।

 

शुरुआती प्रदर्शन में शामिल रहे 6 लड़कों में से एक विमुक्ति दुशांत ने एक श्रीलंकाई मीडिया से बातचीत में इस आंदोलन के शुरू होने से लेकर फैलने तक की कहानी बताई है…

‘शुरुआत में जब हम रास्ते पर पोस्टर लेकर खड़े होते थे, तो बाकी लोगों को ये मजाक लगता था। विरोध प्रदर्शन के पहले दिन हम केवल 6 लोग थे, लेकिन दूसरे दिन करीब 50 लोग जुटे। देश में डॉलर की कमी थी। देश में विदेशी मुद्रा लाने वाले प्रमुख सेक्टरों में से एक IT सेक्टर था। IT सेक्टर के लोग भी 10-10 घंटे की बिजली कटौती से बहुत परेशान थे।

तब हमें पता था कि सरकार बढ़ते आर्थिक संकट से निपटने में असफल रही है, लेकिन एक और मुद्दा ये था कि कोई भी विपक्षी पार्टी लोगों के लिए खड़ी नहीं हो रही थी। उस समय हम सोच रहे थे कि एक नागरिक के तौर पर हम कैसे प्रतिरोध कर सकते हैं। आमतौर पर विरोध या प्रदर्शनों का आयोजन राजनीतिक पार्टियां करती हैं।

हमने अलग-अलग साइनबोर्ड के साथ सड़कों पर उतरने का फैसला किया। दो हफ्ते बाद राजधानी कोलंबो के प्रमुख हिस्सों में शांतिपूर्वक प्रदर्शन किए गए। इसके बाद आंदोलन से कुछ दिनों में ही सैकड़ों और फिर हजारों लोग जुड़ते गए। दो हफ्ते बाद ही ये जन आंदोलन बनकर श्रीलंका की राजधानी कोलंबो और मिरिहाना और गाले तक फैल गया।

ये तस्वीर श्रीलंका में राजपक्षे सरकार के खिलाफ सबसे पहले प्रोटेस्ट में शामिल विमुक्ति दिशांत समेत 6 प्रदर्शनकारियों की है। शुरू में लोगों ने इनके प्रोटेस्ट को गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन ये छोटा सा प्रोटेस्ट कुछ ही दिनों बाद एक बड़े जन आंदोलन में तब्दील हो गया।
ये तस्वीर श्रीलंका में राजपक्षे सरकार के खिलाफ सबसे पहले प्रोटेस्ट में शामिल विमुक्ति दिशांत समेत 6 प्रदर्शनकारियों की है। शुरू में लोगों ने इनके प्रोटेस्ट को गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन ये छोटा सा प्रोटेस्ट कुछ ही दिनों बाद एक बड़े जन आंदोलन में तब्दील हो गया।

अब इस आंदोलन के दूसरे कैरेक्टर से मिलते हैं-

श्रीलंका के जन आंदोलन में एक और बड़ा नाम बनकर उभरे 28 साल के बुद्धि प्रबोध करुणारत्ने बताते हैं कि बिजली संकट के प्रोटेस्ट से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन कैसे श्रीलंका की आर्थिक बदहाली के खिलाफ जन आंदोलन बन गया।

‘मैंने शुरू में फेसबुक पर एक पोस्ट करते हुए कहा था कि कई घंटों की बिजली कटौती के विरोध में मैं खुद और दूसरों के लिए भी एक विरोध प्रदर्शन करूंगा। कुछ ही घंटों में मुझे ढेरों रेस्पॉन्स मिले। अगले दिन मैंने कोलंबो के विहार महादेवी पार्क में विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया। मैंने सोचा था कि लगभग 50 लोग आएंगे, लेकिन उस प्रदर्शन में करीब 400 लोग पहुंच गए।

मेरा नेतृत्व करने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन मैंने भाषण दिया। इसके बाद हमने नेलम पोकुना तक विरोध मार्च निकाला और वहां विरोध प्रदर्शन किया। तभी हमें अगले दिन मिरिहाना में विरोध प्रदर्शन होने का पता चला और हमने वहां जाने का फैसला किया।

चलिए अब 7 पॉइंट्स में समझते हैं कि कैसे ये विरोध पूरे श्रीलंका में फैला…

1. पुलिस और प्रदर्शनकारी पहली बार मिरिहाना में आए आमने-सामने

31 मार्च को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के मिरिहाना में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित हुआ, जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। इस आंदोलन में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े।

इस हिंसक झड़प में कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए और कइयों को हिरासत में लिया गया। यहां तक कि पुलिस ने इस घटना को कवर करने गए 6 पत्रकारों को भी हिरासत में ले लिया। कुछ पत्रकारों की पुलिस ने पिटाई भी की।

31 मार्च को कोलंबो के मिरिहाना स्थित राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के निजी घर के बाहर प्रदर्शन के लिए जुटे हजारों प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस झड़प में कई प्रदर्शनकारी घायल हुए थे, जबकि कई पत्रकारों को भी पीटा गया था। पुलिस ने 50 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों और 6 पत्रकारों को हिरासत में लिया था। नाराज प्रदर्शनकारियों ने एक बस को आग के हवाले कर दिया था। हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों का केस लड़ने के लिए 300 वकील सामने आए थे।
31 मार्च को कोलंबो के मिरिहाना स्थित राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के निजी घर के बाहर प्रदर्शन के लिए जुटे हजारों प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस झड़प में कई प्रदर्शनकारी घायल हुए थे, जबकि कई पत्रकारों को भी पीटा गया था। पुलिस ने 50 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों और 6 पत्रकारों को हिरासत में लिया था। नाराज प्रदर्शनकारियों ने एक बस को आग के हवाले कर दिया था। हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों का केस लड़ने के लिए 300 वकील सामने आए थे।

2. चर्चित लोग और विपक्षी पार्टियां भी लोगों के प्रदर्शनों से जुड़ने लगीं

आम लोगों के विरोध प्रदर्शनों से जल्द ही चर्चित लोग भी जुड़ने लगे। श्रीलंका की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समागी जान बालवेगया यानी SJB के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति आर प्रेमदासा के बेटे सजित प्रेमदासा मार्च के अंत तक इस जन आंदोलन से जुड़ चुके थे।

SJB के अलावा तमिल नेशनल अलायंस, नेशनल पीपुल्स पावर, जनता विमुक्ति पेरामुना, फ्रंटलाइन सोशलिस्ट पार्टी जैसी पार्टियां भी राजपक्षे सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में उतर गईं।

अप्रैल आते-आते लोगों के आंदोलन से ईसाई, बौद्ध और मुस्लिमों के धर्मगुरु भी जुड़ गए। ये तस्वीर विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेती कैथोलिक नन की है।
अप्रैल आते-आते लोगों के आंदोलन से ईसाई, बौद्ध और मुस्लिमों के धर्मगुरु भी जुड़ गए। ये तस्वीर विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेती कैथोलिक नन की है।

3. जयसूर्या, संगकारा, रणतुंगा समेत कई पूर्व क्रिकेटर भी विरोध की पिच पर उतरे

यही नहीं मिरिहाना में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ कई पूर्व क्रिकेटरों ने आवाज उठाई और प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया।

इनमें अर्जुन रणतुंगा, कुमार संगकारा, मर्वन अटापट्टू, रौशन महानामा, सनथ जयसूर्या और मुथैया मुरलीधरन जैसे पूर्व क्रिकेट भी शामिल थे। महानामा, जयसूर्या और अटापट्टू ने तो 2 अप्रैल को कोलंबो में हुए विरोध प्रदर्शनों में भी हिस्सा लिया।

4. राजपक्षे सरकार ने लगाई इमरजेंसी, पर प्रदर्शनकारियों को रोक नहीं पाई

राजपक्षे सरकार ने इन प्रदर्शनों को कुचलने की पुरजोर कोशिश की। 1 अप्रैल को श्रीलंका में आपातकाल लगा दिया गया।

2 अप्रैल को श्रीलंकाई सरकार ने प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए फेसबुक, वॉट्सऐप, ट्विटर, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, टिकटॉक और स्नैपचैट समेत सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया। हालांकि, ये बैन 15 घंटे बाद ही हटा लिया गया।

लोगों के बढ़ते विरोध के बीच तब के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को छोड़कर श्रीलंका की पूरी कैबिनेट को इस्तीफा देना पड़ा।

5 अप्रैल को राजपक्षे ने सदन में अपना बहुमत गंवा दिया, साथ ही आपातकाल भी हटा दिया गया। लोगों की नाराजगी खत्म करने के लिए गोटबाया ने विपक्षी दलों को उनकी सरकार में शामिल होने का न्योता दिया, लेकिन विरोध प्रदर्शन नहीं रुका।

5. गाले फेस बना आंदोलनकारियों का गढ़, 8 प्रदर्शनकारी मारे गए

राजधानी कोलंबो में 5 हेक्टेयर (करीब 5.4 लाख स्क्वायर फीट) में फैला चर्चित टूरिस्ट स्थान गाले फेस ग्रीन अप्रैल में राजपक्षे सरकार के खिलाफ प्रदर्शनकारियों का मजबूत गढ़ बन गया।

9 अप्रैल को प्रदर्शनकारियों ने गाले फेस ग्रीन पर कब्जा करते हुए वहां प्रोटेस्ट कैंप बना दिए। इन कैंपों में बेसिक जरूरतों की सभी चीजें मसलन-खाना, पानी, टॉयलेट और मेडिकल फैसिलिटी के साथ ही लाइब्रेरी की भी व्यवस्था की गई है।

राजधानी कोलंबो के पास स्थित चर्चित गाले फेस ग्रीन प्रदर्शनकारियों के नारे #GotaGoGama यानी 'गोटाबाया गांव जाओ' के नाम से भी चर्चित हो गया। यहीं राजपक्षे के समर्थकों ने 9 प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी थी।
राजधानी कोलंबो के पास स्थित चर्चित गाले फेस ग्रीन प्रदर्शनकारियों के नारे #GotaGoGama यानी ‘गोटाबाया गांव जाओ’ के नाम से भी चर्चित हो गया। यहीं राजपक्षे के समर्थकों ने 9 प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी थी।

6. प्रदर्शनकारियों ने PM आवास को घेरा, महिंदा राजपक्षे परिवार समेत भाग खड़े हुए

मई आते-आते रोजमर्रा की चीजों और पेट्रोल-डीजल की किल्लत से विरोध और उग्र हो चुका था। राजपक्षे ने प्रदर्शनकारियों को भगाने की कोशिश में वहां सेना भेजी।

9 मई को गाले फेस ग्रीन में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोटबाया की पार्टी श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना के समर्थकों ने हमला कर दिया। इसमें 9 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई, जबकि 100 से ज्यादा घायल हो गए।

इस हमले के बाद देश भर में लोगों का प्रदर्शन हिंसक हो उठा। नाराज प्रदर्शनकारियों ने श्रीलंका के कई राजनेताओं के घरों पर हमला किया और उसे आगे के हवाले कर दिया। इसमें हंबनटोटा स्थित राजपक्षे परिवार का पैतृक घर भी शामिल था।

9 मई को ही महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो स्थित प्रधानमंत्री आवास टेंपल ट्रीज पर हमला बोल दिया। महिंदा राजपक्षे ने जान बचाने के लिए परिवार समेत त्रिंकोमाली नेवल बेस में शरण ली।

इस दौरान श्रीलंका में 6 मई को 20 मई तक दोबारा आपातकाल भी लगाया गया, लेकिन ये भी प्रदर्शन रोक पाने में नाकाम रहा।

श्रीलंका की राजनीति के दो सबसे ताकतवर चेहरे गोटबाया राजपक्षे (बाएं) और महिंदा राजपक्षे। गोटबाया राष्ट्रपति हैं, जो जनता के विरोध की वजह से देश छोड़कर भाग चुके हैं। वहीं महिंदा ने विरोध के चलते मई में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। गोटबाया 2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बने थे। वहीं महिंदा 2004 में प्रधानमंत्री रहने के बाद 2005-2015 तक राष्ट्रपति रहे थे।
श्रीलंका की राजनीति के दो सबसे ताकतवर चेहरे गोटबाया राजपक्षे (बाएं) और महिंदा राजपक्षे। गोटबाया राष्ट्रपति हैं, जो जनता के विरोध की वजह से देश छोड़कर भाग चुके हैं। वहीं महिंदा ने विरोध के चलते मई में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। गोटबाया 2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बने थे। वहीं महिंदा 2004 में प्रधानमंत्री रहने के बाद 2005-2015 तक राष्ट्रपति रहे थे।

7. राजपक्षे परिवार का किला ढहा, राष्ट्रपति गोटबाया देश छोड़कर भागे

राजपक्षे को सत्ता से उखाड़ने इस जन आंदोलन का आखिरी चरण जुलाई के पहले हफ्ते में शुरू हुआ। 9 जुलाई को आम जनता ने राष्ट्रपति आवास और प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा जमा लिया।

राष्ट्रपति गोटबाया अपना आवास छोड़कर भाग खड़े हुए। 13 जुलाई को परिवार समेत गोटबाया देश छोड़कर मालदीव भाग गए। इसी दिन श्रीलंका में फिर से इमरजेंसी लगा दी गई।

श्रीलंका के आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले ताकतवर राजपक्षे परिवार को सत्ता से उखाड़ फेंकने का श्रेय आम जनता के आंदोलन को जाता है, जो श्रीलंका के इतिहास में अनूठा है।

9 जुलाई को कोलंबो स्थित राष्ट्रपति ऑफिस के बाहर उमड़ा भारी जनसैलाब। जनता के भारी विरोध की वजह से राष्ट्रपति गोटबाया पहले राष्ट्रपति आवास और फिर देश छोड़कर भाग गए।
9 जुलाई को कोलंबो स्थित राष्ट्रपति ऑफिस के बाहर उमड़ा भारी जनसैलाब। जनता के भारी विरोध की वजह से राष्ट्रपति गोटबाया पहले राष्ट्रपति आवास और फिर देश छोड़कर भाग गए।

श्रीलंका में 4 महीने से जारी जन आंदोलन की टाइमलाइन

1 मार्च 2022

श्रीलंका में राजपक्षे सरकार के खिलाफ पहला विरोध प्रदर्शन 6 लड़कों ने कोहुवाला में शुरू किया।

31 मार्च

मिरिहाना शहर में पहली बार पुलिस-प्रदर्शनकारियों की झड़प, कई प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों को हिरासत में लिया गया।

1 अप्रैल

राष्ट्रपति गोटबाया ने देश में आपातकाल लगाया।

3 अप्रैल

राष्ट्रपति गोटबाया और PM महिंदा राजपक्षे को छोड़कर श्रीलंका सरकार के पूरे मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दिया।

5 अप्रैल

गोटबाया ने सदन में बहुमत गंवाया, श्रीलंका से आपातकाल हटाया गया।

9 अप्रैल

श्रीलंकाई प्रदर्शनकारियों ने गाले फेस ग्रीन पर कब्जा जमाकर वहां प्रोटेस्ट कैंप बनाए।

19 अप्रैल

सरकार विरोधी प्रदर्शनों में पुलिस की गोली से पहले प्रदर्शनकारी की मौत।

6 मई

श्रीलंका में दूसरी बार आपातकाल लगा और 14 दिन 20 मई को बाद हटाया गया।

9 मई

सरकार समर्थकों ने प्रदर्शनकारियों पर हमला बोला, 9 की मौत, 100 से ज्यादा घायल।

प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे परिवार के पैतृक घर को आग लगाई।

प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दिया। रानिल विक्रमसिंघे बने PM

27 जून

सरकार ने कहा श्रीलंका में फ्यूल लगभग खत्म, जरूरी सेवाओं को छोड़कर पेट्रोल-डीजल की सभी बिक्री पर रोक लगाई।

9 जुलाई

प्रदर्शनकारियों के कब्जे के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति आवास से भागे।

प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने इस्तीफा दिया।

13 जुलाई

गोटबाया राजपक्षे पत्नी और दो बॉडीगार्ड्स के साथ देश छोड़कर मालदीव भागे।

रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया।

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