जीवन रक्षक उपायों के लिए भी हमें जरूरत होती है एक बड़े हादसे या त्रासदी की

में आंदोलित होने, स्फूर्त होने के लिए हादसों की जरूरत पड़ती है। जब तक सब कुछ ठीक चलता रहता है, अपनी सुरक्षा, जीवन रक्षा लिए कोई भी उपाय हमें बेमानी लगता है। कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन लगाने की बारी आई तो हम तभी जागे जब दूसरी लहर ने कई लोगों के प्राण ले लिए।

फटाफट दो डोज लगवा लिए लेकिन दूसरी लहर जैसे ही गई, हम बेफिक्र हो गए। होना ही था। सब कुछ पहले जैसा हो गया। तीसरी लहर हमारा कुछ बिगाड़ नहीं पाई। हम और बेफिक्र हो गए। सरकार ने कहा अब वैक्सीन का बूस्टर डोज लगाना जरूरी है। केवल तीन- साढ़े तीन प्रतिशत लोगों ने ही बूस्टर डोज लगवाया।

निश्चित ही इसमें सरकार की भी गलती थी। पहले दो डोज फ्री लगाने के बाद बूस्टर डोज का शुल्क तय कर दिया गया। दुनिया के किसी देश में इस वैक्सीन का पैसा नहीं लिया जा रहा है। ज्यादातर देश वैक्सीन मुफ्त ही लगा रहे हैं, लेकिन हमारी सरकार ने अलग – अलग बूस्टर खुराक की अलग अलग फीस तय कर दी।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले हफ्ते वैक्सीन की दूसरी और एहतियाती खुराक के बीच के अंतर को 9 महीने से घटाकर 6 महीने कर दिया था।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले हफ्ते वैक्सीन की दूसरी और एहतियाती खुराक के बीच के अंतर को 9 महीने से घटाकर 6 महीने कर दिया था।

पहले 1200 और 600 रु. कीमत रखी गई। फिर इसे घटाकर 225 रु. और सर्विस चार्ज अलग, तय कर दिया गया। सशुल्क बूस्टर डोज केवल प्राइवेट अस्पतालों में ही लगाए जा रहे थे। सरकारी अस्पतालों और सेंटरों पर केवल फ्रंट लाइन वर्कर्स और बुजुर्गों को फ्री बूस्टर दिया जा रहा था।

सवाल शुल्क या निःशुल्क का नहीं है। जीवन रक्षक वैक्सीन को जब सशुल्क कर दिया गया तो लोगों ने समझा इसकी इतनी अनिवार्यता नहीं होगी। डर होता तो सरकार पहले की तरह फ्री रखती। हमने बूस्टर डोज को गैर जरूरी समझ लिया। चूंकि दूसरा डोज लगाए हुए लोगों को नौ महीने से साल पूरा होने को आ गया।

हाल ही में कुछ राज्यों में धीरे- धीरे ही सही, केस बढ़ने लगे। सरकार के कान खड़े हुए। बुधवार को सरकार ने 18 से 59 साल की उम्र वालों के लिए भी बूस्टर डोज को फ्री कर दिया। क्योंकि किसी बड़ी त्रासदी से देश को बचाने का यही एक तरीका रह गया था। अब बूस्टर डोज कहीं भी, किसी भी सरकारी सेंटर पर लगवाइए, फ़्री ही लगेंगे। प्राइवेट अस्पतालों में यह सशुल्क ही रहेगा।

वैक्सीनेशन में तेजी लाने और बूस्टर शॉट्स को बढ़ावा देने के लिए 1 जून से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 'हर घर दस्तक अभियान 2.0' शुरू किया गया ।
वैक्सीनेशन में तेजी लाने और बूस्टर शॉट्स को बढ़ावा देने के लिए 1 जून से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ‘हर घर दस्तक अभियान 2.0’ शुरू किया गया ।

जब बूस्टर डोज लगवाने की रफ़्तार धीमी देखी तो पहले सरकार ने नौ महीने की मियाद (दूसरा डोज लगने के बाद ) को घटाकर छह महीने की। हम फिर भी नहीं जागे। आखिर इसे निःशुल्क ही करना पड़ा। जाने क्यों हम लोग भी जीवन की रक्षक दवा के भी निःशुल्क होने की राह तकते रहते हैं।

जबकि सरकार इसे फ्री करती है तो भी उसका बोझ तो हम पर ही आना है। या तो टैक्स बढ़ाया जाएगा या टैक्स में जो राहत मिलने वाली थी, वह अब नहीं मिलेगी। …और निश्चित मानिए, यह बोझ बूस्टर डोज की कीमत से बहुत ज्यादा होगा। फर्क बस इतना सा है कि यह बोझ हमें तुरंत नहीं चुकाना है।

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