भारत की जमीन पर नेपाली कब्जे का इन्वेस्टिगेशन …?
भारत की जमीन पर नेपाली कब्जे का इन्वेस्टिगेशन:ब्रह्मदेव में 200 दुकानें, 40 झोपड़ियां और 70 मकान; वे इसे बता रहे उनकी भूमि
दैनिक भास्कर ग्राउंड पर पहुंचा। वहां नेपालियों ने 200 से ज्यादा पक्की दुकानें, 40 से ज्यादा अस्थाई झोपड़ियां और करीब 70 पक्के मकान बना रखे हैं। विवादित जगह पर बंटवारे वाले पिलर भी गायब हैं। नेपाल सरकार ने वहां सड़क, बिजली, पानी की व्यवस्था कर रखी है। सीमा प्रहरी चौकी भी बनी हुई है। हमने इसकी पूरी इन्वेस्टिगेशन की।
आइए चलते हैं वहीं…
ब्रह्मदेव, भारत का या नेपाल का?
उत्तराखंड का टनकपुर शारदा नदी के इस पार है, ब्रह्मदेव उस पार। बीच में एक 700 मीटर लंबा ब्रिज है। ब्रिज पर एक बच्ची मिलती है। प्रसाद बेचती है। उम्र 7-8 साल। कहती है, “भैया हमारा 10 रुपए का प्रसाद ले लो। उस पार नेपालियों ने कब्जा जमा लिया है। वो 50 रुपए में प्रसाद देते हैं।’’
दरअसल, ब्रिज पार करने पर सिद्ध बाबा का प्राचीन मंदिर मिलता है। वहीं पर कब्जे की बात है। मंदिर में रोजाना दोनों देशों से सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। अब ये जगह नेपाल के लोगों के कब्जे में है।
जंगल में बने इस मंदिर के चारों ओर नेपालियों की दुकानें, झोपड़ियां और मकान हैं। खाने की दुकानों पर नेपाली शराब बिक रही है। दुकानों के स्टार्टिंग पॉइंट पर नेपाल की APF यानी आर्म्ड पुलिस फोर्स की चौकी भी बनी हुई है।
ठीक 100 कदम दूरी पर भारत की SSB यानी सशस्त्र सीमा बल की चौकी बनी हुई है। दोनों चौकियों पर बैठे जवानों को खूब कुरेदने पर भी दो टूक कहते हैं, “हमारे साब बताएंगे। हमें कुछ नहीं पता। ऑर्डर है इसलिए बैठे हैं।”
बड़े अधिकारी ने रेंजर को डांट लगाई, इसलिए एक शब्द नहीं बोले
“ब्रह्मदेव में नेपाल ने 12 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया है।” मीडिया में सबसे पहले यह बयान टनकपुर के रेंजर महेश बिष्ट ने दिया था। हमने उनसे फोन पर बात की। उन्होंने हमें कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा, “भाई साहब, मुझे इस बात को लेकर बड़े अफसरों से डांट पड़ी है। मैं एक शब्द भी नहीं बोल सकता। आप बड़े अधिकारियों से बात करिए।”
बड़े अधिकारी को ढूंढ़ा। वे अलग-अलग क्षेत्रों के दौरे पर रहते हैं। मिलने अवसर मांगा। मगर, नहीं मिला। फोन पर जितनी बात हुई, वो ये रही…
DFO ने कहा- सरकार में हलचल मच गई, मंत्री जी का कॉल आ गया था
डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर बाबूलाल ने कहा, “कई मीडिया संस्थानों में नेपाल के कब्जे की खबर छपने के बाद मंत्री जी का फोन आया था। उन्होंने हमें फटकार लगाई। दरअसल, ये कब्जा अभी का नहीं है। ये 1995 से पहले का कब्जा है। उस जगह पर बंटवारे वाले पिलर मौजूद नहीं हैं, इसलिए विवाद बना हुआ है।”
उन्होंने आगे कहा, “हम मानते हैं कि ये हमारी जमीन है और नेपाल ने तो कब्जा कर ही रखा है। कई बार विवाद भी हुआ है। हर तीन महीने में हमारी नेपाल से मीटिंग होती है। तीन महीने पहले ही सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने सर्वे किया था। अब तक फाइंडिंग्स नहीं आई है।”
वो आगे कहते हैं, “पुराने कब्जे का पता नहीं। मगर, अब बॉर्डर पर भारी मात्रा में SSB तैनात है। इसलिए, उसके आगे नेपाल किसी भी तरह से कब्जा कर ही नहीं सकता।”
टनकपुर से लखीमपुर खीरी तक 111 पिलर गायब
साल 1923 में भारत और नेपाल का बंटवारा हो गया था। सीमा का बंटवारा पत्थरों को लगा करके कर दिया गया था। अब उन पत्थरों को सीमेंटेड पिलर का रूप दे दिया है। साल 2020 में सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारी सीएचवीएसएस प्रसाद ने बताया था, “नेपाल के लोग पिलर्स को तोड़ कर जमीन पर कब्जा कर लेते हैं। समय-समय पर दोनों देशों की सर्वे टीमें सर्वे कर दोबारा पिलर बनाती हैं। 2019 में नए सर्वे को लेकर दोनों देशों में सहमति बनी थी, लेकिन फिर कोरोना की वजह से ये काम पूरा नहीं हो पाया।”
उन्होंने आगे कहा था, “सिक्किम से लेकर उत्तराखंड तक हजारों पिलर टूटे हुए हैं। लखीमपुर खीरी के पिलर नंबर-700 से लेकर ब्रह्मदेव के पिलर नंबर 811 तक पिलर गायब हैं।”
2010 से 2021 के बीच तीन बार शासन को भेजी रिपोर्ट
अफसरों के मुताबिक, SSB और वन विभाग से 2010 और 2021 के बीच तीन बार इस अतिक्रमण की रिपोर्ट गृह मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार को भेजी जा चुकी है। SSB के असिस्टेंट कमांडेंट अभिनव तोमर ने बताया, “पिछले महीने भारत और नेपाल के अधिकारियों के बीच हुई बैठक में भी यह मुद्दा उठा था। आपसी सहमति के बाद दोनों देशों की सर्वे टीमों ने विवादित जगह के सर्वे की बात कही थी। सर्वे के बाद ही इस विवाद का निपटारा हो पाएगा।