ग्वालियर : माफिया के सामने सरेंडर सरकारी सिस्टम, हर महीने चंबल नदी से निकल रही ‌‌पांच करोड़ रुपए की रेत

सिस्टम की पड़ताल ….

डाकुओं के चंगुल से मुक्त होने के बाद चंबल नदी-बीहड़ पर अब रेत माफिया का कब्जा है। चंबल नदी से रेत खनन पर 2006 यानी कि पिछले 16 सालों से रोक लगी है। लेकिन सरकार की यह रोक खनन माफिया के लिए बेमानी है इसीलिए वे बेखौफ होकर 24 घंटे पनडुब्बी और पोकलेन मशीन लगाकर चंबल नदी का सीना छलनी कर रोज हजारों टन रेत निकाल रहे हैं।

ये रेत देर रात से अलसुबह तक मप्र, राजस्थान व उप्र तक सप्लाई भी की जा रही है और वह भी उस सिस्टम के अधिकारियों की आखों के सामने से, जिन्हें इस अवैध खनन व इसके परिवहन को रोकने की जिम्मेदारी दी गई है। चंबल नदी से निकाली गई रेत की 1200-1300 ट्रॉलियां रोजाना ग्वालियर भी आ रही हैं। इस काराेबार से जुड़े लोगों के अनुसार लगभग 5 करोड़ रुपए तक की रेत हर महीने चंबल नदी से निकालकर माफिया बेच रहे हैं। दैनिक भास्कर टीम ने बेखौफ माफिया और उसे रोकने के लिए बने सिस्टम की पड़ताल की।

कहीं कोई नहीं रोकता वाहनों को

मुरैना-धौलपुर के बीच चंबल नदी पर बने राजघाट पुल के पास से रोजाना ग्वालियर तक ट्रैक्टर-ट्रॉली से रेत लाई जा रही है। ये दूरी लगभग 62 किलोमीटर है और इतनी दूरी में मुरैना जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन एवं वन विभाग के अलावा दूसरे विभागों के भी चैक पोस्ट व चौकियां हैं। लेकिन कहीं भी किसी माफिया को रोका नहीं जाता। चंबल पुल से निकलते ही अल्लाबेली चौकी, सरायछोला थाना, बानमौर थाना, बानमोर में वन विभाग की चैक पोस्ट पार करके गाड़ियां ग्वालियर पहुंच रही हैं।

उत्खनन रोकने करते हैं कार्रवाई

चंबल नदी से रेत निकालने पर पूरी तरह रोक लगी है और माफिया खनन नहीं कर पाए, इसलिए वन विभाग को एसएएफ के 200 जवान भी दिए गए हैं। जिला प्रशासन अधिकारी अपने स्तर पर रेत व पत्थर के अवैध खनन की कई गाड़ियां पकड़ रहे हैं।
– नरोत्तम भार्गव, एडीएम मुरैना

सुबह 6 बजे बानमोर में आगरा-मंुबई मार्ग पर निकलतीं चंबल नदी की रेत से भरी ट्रैक्टर-ट्रालियां। इनसेट- बानमोर में चैकपोस्ट, जो खाली रहता है …

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