महिला सशक्तिकरण का मजाक है बिलकिस बानो गैंगरेप के मुजरिमों की रिहाई और सम्मान

2002 के सांप्रदायिक दंगों के बेहद बदनाम बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में उम्रकैद की सज़ा पाए सभी 11 मुजरिमों को रिहा कर दिया गया. गुजरात सरकार ने समय से पहले रिहा करने की राज्य सरकार की नीति के तहत ये फैसला किया है. इसे लेकर कई तरह के गंभीर सवाल उठ रहे हैं.

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गुजरात से बेहद हैरान करने वाली ख़बर आई है. 2002 के सांप्रदायिक दंगों के बेहद बदनाम बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में उम्रकैद की सज़ा पाए सभी 11 मुजरिमों को रिहा कर दिया गया. गुजरात सरकार ने समय से पहले रिहा करने की राज्य सरकार की नीति के तहत ये फैसला किया है. इसे लेकर कई तरह के गंभीर सवाल उठ रहे हैं. इस फैसले के बाद बिलकिस बानो के पति ने कहा है कि उन्हें मीडिया से ही इस खबर क बार में पता चला है. उनके इस दावे के बाद दोषियों की रिहाई के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

बहुचर्चित बिलकीस बानो के साथ गैंगरेप और उसके परिवार के सात लोगों की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सज़ा पाए सभी 11 मुजरिमों को सोमवार को स्वतंत्रती दिवस के मौके पर गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया. गुजरात सरकार ने ये फैसला एक समिति की सर्वसमम्मति से की गई सिफारिश के आधार पर किया है. एक कैदी की सज़ा माफी की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने मई के महीने में गुजरात सरकार को कैदियों की समय से पहले रिहाई की 1992 की नीति के तहत गौर करने और दो महीने में फैसला करने के निर्देश दिए थे. समिति ने सरकार को सर्वसम्मति से सभी 11 कैदियों को रिहा करने के हक में सिफारिश की थी. इसे स्वीकार करते हुए गुजरात सरकार ने ये फैसला किया है.

मुजरिमों के हीरो की तरह सम्मान पर सवाल

गुजरात सरकार के फैसले के बाद जब 11 मुजरिम गोधरा की जल से बाहर आए तो स्थानीय लोगों न उनका सम्मान किया. उनके सम्मान का वीडियो गुजरात के कुछ न्यूज़ चैनलों पर दिखाया गया. यह शर्मनाक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. इसमें साफ देख सकता है कि कोई मुजरिमों को मिठाई खिला रहा है तो कोई उनके पैर छू रहा है. कुछ महिलाएं मुजरिमों का तिलक करती हुईं भी दिख रही हैं. गैंगरेप और हत्या जैसे संगीन अपराधों में उम्रकैद की सजा पाए अपराधियों का ऐसा स्वागत और सम्मान बताता है कि लाल किले से की गई पीएम मोदी की अपील का इन लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा है. वैसे भी मुसलमानों के खिलाफ अपराध को अंजाम देने वाले अपराधियों के जमानत पर छूटने के बाद उनके स्वागत समारोह अब देश में आम बात हो गई है. यहां तो अपराधियों की सज़ा माफ करके बाकायदा रिहाई हुई है.

मुजरिमों की रिहाई पर उठ रहे हैं सवाल

यहां ये सवाल महत्वपूर्ण है कि आखिर इतने संगीन अपराधों में उम्रकैद की सज़ा पाए अपराधियों को 15 साल की सज़ा के बाद क्यों रिहा कर दिया गया. क्या उनकी रिहाई में कोई राजनीतिक संदेश छिपा हुआ है? आख़िर कौन है उनकी रिहाई का जिम्मेदार? गुजरात सरकार या सज़ा पूरी होने से पहले कैदियों की रिहाई को लेकर बनी नीति?बिलकिस बानो गैंगरेप के मुजरिमों की समय से पहले रिहाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं. गुजरात के मानवाधिकार वकील शमशाद पठान कहते हैं कि इससे कम जघन्य अपराध करने वाले बड़ी संख्या में दोषी बिना किसी छूट के जेलों में बंद हैं. उनके बारे में तो सरकार ने कोई फैसला नहीं किया. जब कोई सरकार ऐसा फैसला लेती है तो सिस्टम से पीड़ित की उम्मीदें कम हो जाती हैं. वो कहते हैं कि ऐसे कई कैदियों की सजा की अवधि पूरी हो गई है, लेकिन उन्हें इस आधार पर जेल से रिहा नहीं किया गया है कि वे किसी गिरोह का हिस्सा हैं. या फिर एक या ज्यादा हत्याओं में शामिल रहे हैं. लेकिन इस तरह के जघन्य मामलों में, गुजरात सरकार दोषियों को छूट दे देती है, उन्हें जेल से बाहर निकलने की अनुमति मिल जाती है. ये सिर्फ हत्या और गैंगरेप का ही नहीं बल्कि जघन्य प्रकार के गैंगरेप का मामला था.

क्या था बिलकिस बानो गैंगरेप मामला?

तीन मार्च 2002 को गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था. अभियोजन पक्ष के अनुसार बिलकिस उस समय पांच महीने की गर्भवती थीं. उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. इतना ही नहीं, उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. इस पर देशभर में काफी नाराजगी देखी गई थी. इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए. इस मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था. अहमदाबाद में ट्रायल शुरू हुआ. हालांकि, बिलकिस बानो ने आशंका जताई थी की कि गवाहों पर दबाव बनाया जा सकता है और सीबीआई के हाथ लगे सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट को ट्रांसफर कर दिया था.

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