अधिकतर राज्य सरकारें संविधान के अनुच्छेद 47 की परवाह क्यों नहीं करतीं?

शराब पर पाबंदी के पक्षकारों के लिए अच्छी खबर यह है कि भारत में शराब पीने वाले पुरुषों का प्रतिशत 2015-16 के 29 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 22 प्रतिशत हो गया है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़ों से यह पता चलता है. यह मई में जारी हुआ था.

संविधान का अनुच्छेद 47 कहता है, “राज्य अपने लोगों के पोषण और जीवन स्तर को बेहतर करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को अपना प्राथमिक कर्तव्य मानेगा और विशेष रूप से, मेडिकल जरूरतों को छोड़कर मादक पेय और नशीली दवाओं, जो सेहत के लिए हानिकारक हैं, की खपत पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करेगा.”शराब पर पाबंदी के पक्षकारों के लिए अच्छी खबर यह है कि भारत में शराब पीने वाले पुरुषों का प्रतिशत 2015-16 के 29 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 22 प्रतिशत हो गया है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़ों से यह पता चलता है. यह मई में जारी हुआ था. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि शराब पीने वाली महिलाओं की संख्या में कोई बदलाव नहीं आया है. इस चिंता के बीच अल्कोहल से होने वाली राज्यों की राजस्व आमदनी में लगातार इजाफा हो रहा है. ध्यान रहे कि एक्साइज ड्यूटी राज्यों का मामला है.

1948 में मिली थी अनुच्छेद 47 को मंजूरी

दो दिनों की बहस के बाद 24 और 25 नवंबर 1948 को संविधान सभा ने अनुच्छेद 47 को मंजूरी दी थी. इसमें अन्य बातों के अलावा नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. मेडिकल जरूरतों को छोड़कर, संविधान सभा ने राज्य को पूर्ण निषेध के लिए बाध्य किया. लेकिन सरकारें ऐसा करने में विफल रही हैं. और ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि राज्य प्रतिबंध लगाने में असमर्थ हैं. चार राज्यों गुजरात, बिहार, मिजोरम और नागालैंड ने ऐसा किया है.80 के दशक में एनटीआर शासन में आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु ने शराबबंदी की कोशिश की. कर्नाटक में ऐसा प्रयास किया गया था. लेकिन इन्हें प्रतिबंध हटाना पड़ा. दूसरे राज्य यथार्थवादी दिखाई देते हैं. शायद इसका संबंध सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं और परंपराओं के साथ-साथ जलवायु से भी है.

गोवा में 10 में से 6 पुरुष करते हैं शराब का सेवन

उदाहरण के लिए गोवा को ही लें. एनएफएचएस के अनुसार, देश के शराब प्रेमियों के लिए स्वर्ग माने जाने वाले इस शहर में 10 में से 6 पुरुष शराब का सेवन करते हैं.शराब की खपत की सूची में दूसरे स्थान पर अरुणाचल प्रदेश है. यहां की सबसे अधिक आबादी शराब की आदी है (56.6 प्रतिशत पुरुष और 17.8 प्रतिशत महिलाएं). और ऐसी प्रवृत्ति का कोई भौगोलिक कारण नहीं है. दक्षिण में, दूसरी सबसे ज्यादा खपत तेलंगाना में होती है. यहां 50 फीसदी पुरुष शराब पीते हैं.हालांकि यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है कि शराब पीने से घरेलू हिंसा में वृद्धि और पारिवारिक आय में कमी आ सकती है. इससे मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया में कहीं भी शराबबंदी सफल नहीं हुई है. 1920 में अमेरिका ने ऐसा प्रयास किया था, लेकिन जल्द ही उसने अपने कदम वापस ले लिए.

हालांकि, भारत में कानूनी किताबों पर शराबबंदी को राज्य की प्रतिबद्धता बताया गया है, लेकिन राज्य अधिक यथार्थवादी नजर आते हैं. वे जानते हैं कि इस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते, क्योंकि उनको इससे मोटी आमदनी होती है.

मामला कमाई है, जनाब!

जरा आंकड़े देखिए. योगी के उत्तरप्रदेश ने 2019-20 में उत्पाद शुल्क के रूप में 31,517 करोड़ रुपये कमाए. इसी साल कर्नाटक ने 20,950 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र ने 17,477 करोड़ रुपये जुटाए. जाहिर है, ‘संस्कारी’ विचारधारा का इससे कोई लेना-देना नहीं है. बीजेपी सरकार वाले मध्यप्रदेश ने 13,000 करोड़ रुपये और पवित्र ममता बनर्जी की अगुवाई वाले पश्चिम बंगाल ने 11,873 करोड़ रुपये की कमाई की.24 मार्च 2020 की रात, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में पहली बार लॉकडाउन की घोषणा की तो देश भर के मुख्यमंत्रियों को भी उतनी ही पीड़ा हुई जितनी शराब प्रेमियों को हुई थी. क्योंकि लॉकडाउन का मतलब था हजारों करोड़ रुपये का नुकसान. गहरी निराशा फैली. यहां तक कि नशेड़ियों ने खतरनाक मिथाइल अल्कोहल भी पी लिया और कइयों की मौत हो गई.जब दो महीने बाद लॉकडाउन हटा लिया गया तो शराब की दुकानों पर भीड़ उमड़ गई. यदि देश भर के मुख्यमंत्रियों के बस में होता तो वे भी इनमें शामिल हो सकते थे. आखिर यह कमाई का मामला है जनाब!

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